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जहरीली शराब और मौत का तांडव
अजय झा.
किसी नेता की जिद या व्यक्तिगत पसंद और नापसंद कैसे औरों के लिए जानलेवा बन सकती है इसका जीता जागता उदाहरण बिहार है. प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शराब से एलर्जी है. वह अकेले ऐसे शासक नहीं हैं जो शराब के सेवन से कोसों दूर रहते हैं. पर उन्होंने अपने नापसंद को राजनीति का जामा पहना दिया. 2015 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले नीतीश कुमार ने चुनाव जीतने की स्थिति में बिहार में पूर्ण नशाबंदी की घोषणा की. इस घोषणा से खुश होकर ग्रामीण महिलाओं ने नीतीश कुमार के पक्ष में जम कर मतदान किया और अप्रैल 2016 में बिहार में शराब के सेवन, संग्रहण, व्यापार और वितरण को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया.
नीतीश कुमार को आज तक चुनावों में इसका राजनीतिक फायदा मिल रहा है. साढ़े पांच साल गुजर गए. शराबबंदी लागू है, शराब का व्यापार भी चल रहा है, लाखों लोग शराब के व्यापार में संलग्न होने के आरोप में जेलों में बंद हैं, फिर भी आए दिन प्रदेश में कच्ची और जहरीली देसी शराब पी कर लोग मर रहे हैं. बिहार में शराबबंदी की लचर स्थिति की पोल एक बार फिर से खुल गई जब गोपालगंज और पश्चिम चंपारण जिले में कम से कम 25 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने के कारण हो गयी.
कहीं भी पूर्ण नशाबंदी सफल नहीं रही है
नीतीश कुमार ने सरकारी तंत्र पर डंडा चलाना शुरू कर दिया है और बिहार के आबकारी मंत्री सुनील कुमार ने घोषणा की है कि छठ पूजा के बाद सरकार शराबबंदी नीति की समीक्षा करेगी. बिहार एकलौता प्रान्त नहीं है जहां पूर्ण नशाबंदी लागू है. गुजरात, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम चार अन्य ड्राई स्टेट हैं पर इन राज्यों में कभी जहरीली शराब पी कर मरने की घटना की खबर नहीं आती है. नशाबंदी कभी और कहीं भी पूर्ण रूप से सफल नहीं रहा है. हरियाणा में बंसीलाल सरकार ने नशाबंदी लागू की थी, पर इससे शराब के सेवन में कमी नहीं आयी, शराबबंदी असफल रही और सिर्फ सरकार को ही राजस्व का घाटा उठाना पड़ा. हरियाणा के अलावा आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र आदि ऐसे कई अन्य राज्य हैं जहां शराबबंदी का नियम बना और इसकी असफलता के कारण इसे ख़त्म कर दिया गया.
शराबबंदी से केवल सरकार को नुकसान हो रहा है
शराब की बिक्री से मिला टैक्स राज्य सरकारों के आय का एक बड़ा हिस्सा होता है. दिल्ली में शीला दीक्षित की जब सरकार थी तो सरकार भी मानती थी कि दिल्ली के उन दिनों दर्ज़नों फ्लाईओवर का निर्माण शराब से आर्जित आय के कारण ही संभव हो पाया. गुजरात में विदेशों, अन्य राज्यों से आये लोगों और डॉक्टर की सलाह पर मरीजों के लिए परमिट का प्रावधान है. और स्थानीय लोगों को सिर्फ फोन घुमाना पड़ता है और शराब की डिलीवरी घर पर ही हो जाती है. पुलिस और एक्साइज डिपार्टमेंट की संरक्षण में यह भूमिगत व्यापार खुले आम चलता है और माना जाता है कि इस धंधे से कमायी गयी राशी उपर तक पहुंचती है. यानि जिसे पीना है पिए, सरकार आंख मूंद लेती है. सबका फायदा होता है सिवाय सरकार के.
अब तक सौ से ज्यादा लोगों की हुई मौत
लेकिन इस कारण वहां कच्ची या जहरीली शराब नहीं बनती है और लोग शराब पी कर मरते नहीं हैं. नागालैंड में भी कमोबेश ऐसी ही स्तिति है. जहां शराबबंदी सिर्फ कागजों पर ही है और इसका व्यापर और सेवन खुलेआम होता है. पर बिहार में स्थिति शुरू से ही कुछ भिन्न रही. नीतीश कुमार जिद्दी प्रवृति के नेता हैं, जो ठान लिया तो उससे पीछे नहीं हटते हैं. नतीजा इसी साल सरकारी आंकड़ों के अनुसार 100 से भी अधिक लोगों की जान जहरीली शराब पीने के कारण हुई है. बिहार के जेलों में करीब 3.5 लाख लोग शराब की तस्करी और अवैध वितरण के आरोप में बंद हैं. जब्त माल पुलिस थाने से गायब हो जाता है और कोर्ट में पुलिस की दलील होती है कि चूहों ने उसे नष्ट कर दिया या पी लिया, जबकि हकीकत में जब्त माल फिर से वितरण में चला जाता है और कई ऐसी घटनाओं का वीडियो भी सामने आया है जहां थाने में शराब की पार्टी होती है.
बिहार की अदालतों में कई केस लंबित
नीतीश कुमार को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि बिहार में विदेशी निवेश पर इसका असर पड़ रहा है. कोरिया के कुछ लोगों को जो व्यापार के सिलसिले में पटना आए थे, को शराब सेवन के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया था, जिसके बाद से विदेशी कंपनियों ने बिहार को सलाम कर दिया. विदेशी और देसी पर्यटक भी अब बिहार जाने से कतराते हैं. शराब मिल तो जाता है, पर अगर शराब के सेवन के आरोप में पकड़े गए तो जेल में लम्बे समय तक सड़ना पड़ता है. हालत यह थी कि बिहार में स्थित सेना पर भी नशाबंदी लागू था. अभी हाल ही में इसमें संसोधन किया गया है और सेना के लोगों को कैंटोनमेंट एरिया में शराब बेचने और सेवन की छूट दी गयी है, पर अगर शराब पी कर कोई सैनिक या सेना का अफसर कैंटोनमेंट एरिया के बाहर पकड़ा गया तो फिर उसकी खैर नहीं है.
सरकारी आकड़ों के अनुसार बिहार की नीचली अदालतों में 25 प्रतिशत केस शराबबंदी नियम के उल्लंघन से जुड़े हैं और और पटना हाई कोर्ट में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत का है. इसका नतीजा है कि बिहार में न्यायालयों के लंबित केस की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और छोटे मोटे अपराध के दोष में भी अगर कोई गिरफ्तार हो जाए तो उसे जमानत मिलने में काफी समय लग जाता है.
क्या बिहार में सुधरेंगे शराबबंदी के नियम
वैसे बता दें कि बिहार में शराब की तस्करी पड़ोसी राज्यों उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल और पड़ोसी देश नेपाल से होती है. सीमावर्ती शहरों में शराब के तस्कर दूसरे राज्यों से आ कर व्यापार करने के नाम पर बसने लगे हैं. कागजों पर उनका व्यापार कुछ भी हो पर उनका असली धंधा शराब का होता है. इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं कि बिहार में नशाबंदी पूर्ण रूप से असफल रही है. नीतीश कुमार ने सोचा था कि जब शराब उपलब्ध नहीं होगा तो वह पैसा घर में महिलाओं को मिलेगा, ग्रामीण इलाकों में खुशहाली आएगी, पर अब इसका उल्टा असर दिख रहा है. यहां तो वही गरीब मजदूर अधिक पैसा खर्च करके तस्करों से शराब खरीदते हैं या फिर कच्ची शराब पीने को मजबूर हो जाते हैं, जो कई बार जहरीली भी होती है और लोग बेवजह मारे जाते हैं.
चूंकि पूर्ण रूप से शराबबंदी आज तक किसी भी देश या राज्य में सफल नहीं हो पाई है, बिहार इसका अपवाद नहीं हो सकता है. समय आ गया है कि नीतीश कुमार अपनी जिद छोड़ दें और जिसे पीना ही है तो उसके लिए या तो परमिट सिस्टम लागू करें या फिर नशाबंदी खत्म ही कर दें ताकि सरकार को राजस्व मिले जिसका सदुपयोग जनहित कार्यों में किया जा सके. ताकि जहरीली शराब पी कर लोगों का मरना रुक जाए.
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