सम्पादकीय

जहरीली होती हवा

Gulabi Jagat
24 March 2022 4:26 AM GMT
जहरीली होती हवा
x
देश के शहरों, विशेष कर उत्तर भारत के, में वायु प्रदूषण बढ़ना बेहद चिंताजनक है
देश के शहरों, विशेष कर उत्तर भारत के, में वायु प्रदूषण बढ़ना बेहद चिंताजनक है. विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित 100 शहरों में 63 भारत में हैं. यह इसलिए भी चिंता की बात है क्योंकि पिछले तीन वर्षों में प्रदूषण में कमी के रुझान रहे थे. भारत में ऐसा कोई शहर नहीं है, जहां की हवा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर खरा उतर सके.
लगातार चार साल से दिल्ली दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित राजधानी है, जहां यह समस्या 2020 की तुलना में 15 फीसदी अधिक गंभीर हुई है. सबसे ज्यादा प्रदूषित भारतीय शहरों में आधे से अधिक हरियाणा और उत्तर प्रदेश में हैं. उल्लेखनीय है कि हमारे देश में होनेवाली मौतों की तीसरी सबसे बड़ी वजह वायु प्रदूषण है.
इससे हर मिनट तीन मौतें होती हैं तथा यह कई जानलेवा बीमारियों का कारण भी बनता है. इस समस्या से हमारी स्वास्थ्य सेवा पर दबाव तो बढ़ता ही है, कार्य दिवसों पर प्रभाव पड़ने से उत्पादकता भी घटती है. आकलनों की मानें, तो भारत को वायु प्रदूषण से सालाना 150 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान होता है.
पिछले साल नवंबर में दिल्ली और आसपास के इलाकों में स्थिति इतनी बिगड़ गयी थी कि अनेक बड़े ऊर्जा संयंत्रों और औद्योगिक इकाइयों को बंद करना पड़ा था. कभी-कभी निर्माण गतिविधियों को भी रोकना पड़ता है. दक्षिण और पश्चिम भारत में भी प्रदूषण बढ़ने लगा है. वाहन उत्सर्जन, कोयले से चलनेवाले ऊर्जा संयंत्र, औद्योगिक कचरा, निर्माण कार्य आदि के अलावा पराली और कूड़ा जलाने से भी यह समस्या विकराल हो रही है.
यदि प्रदूषण हटाने के लिए व्यापक निवेश हो और वैकल्पिक उपायों को अपनाया जाये, तो न केवल जान-माल के नुकसान को रोक सकेंगे, बल्कि जीवन प्रत्याशा बढ़ा कर उत्पादकता में भी बढ़ोतरी कर सकेंगे. कुछ ठोस अध्ययन बताते हैं कि यदि वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप हो जाए, तो शहरों में बसनेवाले लोगों की जीवन प्रत्याशा में 10 साल और जुड़ सकते हैं.
पिछले कुछ वर्षों से केंद्र सरकार की कोशिशों से वायु एवं जल प्रदूषण तथा मिट्टी के क्षरण की रोकथाम में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. एक अध्ययन के अनुसार, उज्ज्वला योजना से वायु प्रदूषण से होनेवाली मौतों में 13 फीसदी तक की कमी आयी है. बायोमास से चलनेवाली इकाइयों से उत्सर्जित प्रदूषण की सीमा तय की गयी है.
कुछ दिन पहले सरकार ने संसद को जानकारी दी है कि 2020-21 की अवधि में 132 शहरों में से 31 में प्रदूषणकारी पीएम10 कणों में वृद्धि हुई, पर 96 शहरों में इसमें कमी आयी है. चार शहरों में पहले जैसी स्थिति रही. नदियों के किनारे वन क्षेत्र बढ़ाने की योजना से भी लाभ होने की आशा है. जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को देखते हुए स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के विस्तार की गति भी संतोषजनक है. प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन रोकने में सरकारों, उद्योगों और नागरिकों को मिल कर काम करना होगा.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय
Gulabi Jagat

Gulabi Jagat

    Next Story