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बिहार में शराबबंदी है। इसका फैसला करते हुए पांच साल पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बढ़-चढ़ कर दावा किया था कि इससे गरीबों की सेहत और समृद्धि में बेहतरी आएगी।
बिहार में शराबबंदी है। इसका फैसला करते हुए पांच साल पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बढ़-चढ़ कर दावा किया था कि इससे गरीबों की सेहत और समृद्धि में बेहतरी आएगी। हालांकि इससे सरकार को राजस्व का भारी नुकसान उठाना पड़ा, पर नीतीश सरकार के इस कदम की सबने मुक्त कंठ से प्रशंसा की थी। नजीर दी जाने लगी कि ऐसा कदम दूसरे राज्यों की सरकारों को भी उठाना चाहिए।
सरकारों के लिए शराब के राजस्व का मोह न पाल कर नागरिकों की सेहत, उनके धन के अपव्यय और सामाजिक बुराइयों की चिंता करनी चाहिए। मगर जल्दी ही बिहार में शराबबंदी के प्रतिकूल प्रभाव उभरने शुरू हो गए। हालांकि वहां शराब रखने, दूसरे राज्यों से ले आने और पीने को लेकर बहुत कठोर कानून हैं। इन कानूनों के तहत बहुत सारे लोगों को सलाखों के पीछे भी भेजा गया।
मगर हकीकत यह है कि शराबबंदी के बाद वहां नकली शराब का कारोबार तेजी से बढ़ गया। लोग चोरी-छिपे शराब बनाने, बेचने और पीने लगे। चूंकि इस तरह बनी शराब की गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा जाता, इसलिए वह अक्सर जानलेवा साबित होती है। बिहार में भी वही हो रहा है। दिवाली से एक दिन पहले से शुरू होकर अब तक वहां जहरीली शराब पीने से करीब तीस से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
आंकड़े गवाह हैं कि बिहार में शराबबंदी के बाद से अब तक हुई एक सौ अट्ठाईस मौतों में से तिरानबे केवल इसी साल में हुई हैं। यानी नीतीश सरकार ने शराबबंदी तो कर दी, पर जहरीली शराब की खरीद-बिक्री पर अंकुश लगाने के मामले में निरंतर शिथिल ही बनी हुई है। छिपी बात नहीं है कि जिन राज्यों या क्षेत्रों में भी शराबबंदी की गई, वहां शराब की खरीद-बिक्री पर कड़ाई से नजर न रखी जा पाने का नतीजा जहरीली शराब पीने से लोगों की मौतों के रूप में सामने आता है। बिहार में शराब की लत बड़े पैमाने पर लोगों को लग चुकी थी।
ऐसे में जब अचानक शराबबंदी का फैसला किया गया तो नशे के आदती लोगों को परेशानियां पैदा होने लगीं। फिर स्थानीय स्तर पर चोरी-छिपे शराब बनाने और बेचने वालों ने उसे एक अवसर के रूप में भुनाना शुरू कर दिया। ऐसा भी नहीं कि बिहार सरकार से यह तथ्य छिपा हुआ है। शराब पीकर नशे में धुत्त सरेआम घूमते लोगों को प्राय: देखा जा सकता है। विपक्षी दल तो लंबे समय से आरोप लगाते आ रहे हैं कि नीतीश प्रशासन की मिली-भगत से वहां शराब का कारोबार खूब चल रहा है।
हमारे देश में लोगों को शराब पीने का उस तरह शऊर नहीं है, जैसे ठंडे देशों और प्रदेशों में है। यहां ज्यादातर लोग नशे के लिए शराब पीते हैं। इसका असर उनके स्वास्थ्य पर तो पड़ता ही है, शराब पीकर बहुत सारे उद्दंडी किस्म के लोग सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने का प्रयास भी करते देखे जाते हैं। हिंसा और दूसरी आपराधिक घटनाओं को अंजाम देते हैं।
एक कल्याणकारी सरकार का कर्तव्य है कि वह इन कुरीतियों पर रोक लगाए। मगर उसकी पाबंदी मकसद भी हासिल करे, इसके लिए ज्यादा ईमानदार परिश्रम की जरूरत पड़ती है। किसी भी चीज पर पाबंदी लगाने का फरमान जारी कर देना जितना आसान है, उस पर अमल कराना उतना ही कठिन है। अगर नीतीश सरकार सचमुच शराबबंदी को लेकर गंभीर है, तो उसे नकली और जहरीली शराब के बनाने-बेचने वाले तंत्र को ध्वस्त करने का पुख्ता इंतजाम करना चाहिए, नहीं तो लोग इसी तरह मौत के मुंह में समाते रहेंगे।
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