सम्पादकीय

निरर्थक बहसें

Subhi
15 Jun 2022 5:34 AM GMT
निरर्थक बहसें
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अमूमन अधिकांश टीवी चैनलों पर जो बहस होती हैं, वे स्तरहीन और आग में घी डालने वाली होती हैं। जो शांत और ठहरे हुए पानी में कंकड़ डालने के समान है, जिससे भला तो नहीं, लेकिन नुकसान जरूर हो रहा है।

Written by जनसत्ता; अमूमन अधिकांश टीवी चैनलों पर जो बहस होती हैं, वे स्तरहीन और आग में घी डालने वाली होती हैं। जो शांत और ठहरे हुए पानी में कंकड़ डालने के समान है, जिससे भला तो नहीं, लेकिन नुकसान जरूर हो रहा है। अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार को सांप्रदायिक, धार्मिक और जात-पांत के मुद्दों पर होने वाली बहसों पर कड़ा प्रतिबंध लगाना चाहिए। ये बहसें वैमनस्यता को बढ़ावा देने वाली हैं, जबकि इन चैनलों पर समसामयिक विषयों, देश और जनता के ज्वलंत मुद्दों, विकास निर्माण पर सार्थक बहस होना चाहिए, ताकि देश को नई दिशा मिले, मगर ऐसा नहीं हो रहा है।

सांप्रदायिक विषयों पर होती बहसें केवल पानी को मथने के समान है, जिसमें घी तो नहीं निकलता, आग जरूर लगती है। कीचड़ को कीचड़ से साफ नहीं किया जा सकता, ठीक उसी तरह कट््टरता को भी कट््टरता से नहीं मिटाया जा सकता। जितनी बहसें होंगी, उतना ही कीचड़ फैलेगा।

नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी को ईडी के बुलावे को कांग्रेस राजनीतिक रंग देने में जुट गई है। राहुल गांधी की ईडी के समक्ष पेशी वाले दिन कांग्रेस के मुख्यमंत्री, सांसद और पदाधिकारी भी उनके समर्थन में मार्च करते हुए ईडी के दफ्तर तक गए। क्या यह सब कांग्रेस का ईडी और सरकार पर दबाव बनाने के प्रयास मात्र से ज्यादा कुछ है? अगर राहुल और सोनिया गांधी ने कुछ गलत नहीं किया है, तो ये लोग ईडी के प्रश्नों के जवाब देने और अपने पक्ष में सबूत देने के बजाय सियासी प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं।

क्या कांग्रेस और उसके नेताओं को संवैधानिक संस्थाओं और भारतीय न्याय प्रणाली पर भरोसा नहीं है? कांग्रेस की इस मुद्दे पर रणनीति देख कर तो लगता है कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की अपने पक्ष में सबूत पेश करने और जांच में सहयोग करने के बजाय इस बात में दिलचस्पी ज्यादा है कि जनता को दिखाया जाए कि सरकार केंद्रीय एजेंसियों का गलत इस्तेमाल कर रही है। मगर जनता कांग्रेस की पूछताछ बनाम सियासी प्रदर्शन की रणनीति को समझ चुकी है।

पंजाब में भूजल स्तर गिर रहा है। अगर गंभीरता नहीं दिखाई गई, तो यहां भी रेगिस्तानों की संख्या बढ़ जाएगी। इसी मकसद से पंजाब सरकार ने प्रदेश में किसानों को कहा है कि वे धान की सीधी बिजाई करें। सीधी बिजाई करने वाले किसान को प्रति एकड़ पंद्रह सौ रुपए की वित्तीय सहायता देने का भी एलान किया है। इस तरह बिजाई से खेतों में हर वक्त पानी बनाए रखने की जरूरत नहीं होती है। सरकार के इस फैसले से कितना पानी बचेगा या सरकार इसके लिए किसानों की कैसे मदद करेगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

देश में जहां भूगर्भी जलस्तर में भारी गिरावट आ रही है, वहां कुछ फसलों का उत्पादन बंद कर देना या फसलचक्र में परिवर्तन करना चाहिए और कृषि वैज्ञानिकों को इसके लिए कुछ उपाय निकालना चाहिए, ताकि देश में जल संकट कि समस्या ज्यादा विकराल न हो। पर सवाल है कि देश के जिन राज्यों में भूजल स्तर बहुत गिरता जा रहा है, क्या यहां किसान धान की खेती करना बंद कर दें, क्योंकि इस फसल के लिए पानी की बहुत ज्यादा जरूरत होती है? अगर भविष्य में देश के और क्षेत्र भूगर्भी जलस्तर के गिरने की गिनती में आ गए, तो क्या अन्य उन फसलों के उत्पादन पर रोक लगानी पड़ जाएगी, जिनके लिए पानी की बहुत जरूरत होती है? सरकार को चाहिए कि वह पानी बचाने के दूसरे उपायों पर भी गंभीरता दिखाए, किसानों को जल संरक्षण और बारिश के पानी को एकत्र करने के लिए जागरूक करे।

सरकार को चाहिए कि वह कृषि विशेषज्ञों के साथ मिलकर ऐसी तकनीक विकसित करे जिससे देश के हर राज्य में मौसम की बेरुखी से होने वाले फसलों के नुकसान से किसानों को बचाया जा सके। जिस तरह मौसम का चक्र परिवर्तन हुआ है, उसी हिसाब से फसलों को पैदा किया जाए, उनकी खेती की जाए।

आज हमारे देश में अधिकतम जनसंख्या युवाओं की है। जिस देश में युवाओं की जनसंख्या अधिक हो उस देश को सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक रूप से विकसित होने से कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि उत्पादक से लेकर उपभोक्ता तक युवा ही सम्मिलित होते हैं। पर दुर्भाग्यवश हमारे देश के अधिकतम युवा उद्देश्यहीन, लक्ष्यहीन जीवन व्यतीत कर रहे हैं। गांव के चौराहों से लेकर शहर के पार्क में बैठे युवा या तो सिगरेट पी रहे हैं या लड़कियों को छेड़ने या इंटरनेट आदि में अपना पूरा दिन बिता रहे होते हैं।

यही कारण है कि हमारे देश के कुछ कट्टरपंथी लोग ऐसे ही युवाओं के सहारे देश में उत्पात मचा रहे हैं। इसका एक और कारण है। हमारे देश की कुछ राजनीतिक पार्टियां रोज सामाजिक-धार्मिक कार्यक्रमों में युवाओं को शामिल रखती हैं। यही वजह है कि हमारे देश के अधिकतर युवाओं को धर्म खतरे में नजर आ रहा है। वे धार्मिक मुद्दों पर चर्चा करते नजर आ रहे हैं। अगर इस तरह की घृणित, भ्रमित चर्चाएं तथाकथित धार्मिक पाखंडों को आम बहसों से दूर नहीं किया गया, तो हमारा भविष्य अंधकार में चला जाएगा।

आज डालर के मुकाबले रुपया सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। इसका सबसे बड़ा कारण है, भारत विदेशों से वस्तुएं अधिक आयात करता है। लगभग अस्सी प्रतिशत कच्चे तेल का आयात होता है। इसके बदले हमें और कुछ सोचना चाहिए। पेट्रोल, डीजल और गैस आधारित गाड़ियों के बजाय इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना चाहिए। हमें आत्मनिर्भर बन कर अपने यहां वस्तुओं का निर्माण करना होगा, जिससे आयात कम हो और विदेशी मुद्रा बचे। स्वरोजगार और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के प्रयास के बाद भी बेरोजगारी का स्तर चार दशकों का रिकार्ड तोड़ चुकी है। हम स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करें, तो शायद अर्थव्यवस्था कुछ संभल जाए।


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