सम्पादकीय

कुदरत से मिलाती कविता

Triveni
10 Oct 2020 7:49 AM GMT
कुदरत से मिलाती कविता
x
अमेरिका के सबसे लोकप्रिय समकालीन कवियों में शुमार की जाने वाली लुइस ग्लूक को इस साल के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना जाना कई दृष्टियों से रेखांकित किए जाने लायक है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| अमेरिका के सबसे लोकप्रिय समकालीन कवियों में शुमार की जाने वाली लुइस ग्लूक को इस साल के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना जाना कई दृष्टियों से रेखांकित किए जाने लायक है। अव्वल तो यह कि साहित्य की नोबेल समिति ही इधर कुछ समय से विवादों में रही है। दो साल पहले यौन दुराचार संबंधी आरोपों के चलते साहित्य का नोबेल पुरस्कार स्थगित करना पड़ा था लिहाजा 2018 में यह पुरस्कार घोषित नहीं हो पाया। 2019 में दोनों साल के पुरस्कार एक साथ घोषित किए गए। 2018 के लिए पोलिश कवयित्री ओल्गा तोकार्चुक और 2019 के लिए ऑस्ट्रिया के पीटर हंडके को चुना गया। मगर हंडके का चयन इस आधार पर विवादों में रहा कि बोस्निया में सर्ब अत्याचारों पर नरम रुख के चलते कुछ लोग उन्हें नरसंहार समर्थक मानते हैं।

साहित्य के किसी भी पुरस्कार को लेकर विवाद उठना आम बात है। लेकिन 2018 के अप्रिय प्रकरण के बाद कम से कम कुछ समय तक सर्वसम्मति नोबेल साहित्य पुरस्कार के हक में मानी जा रही थी, जो पिछले साल उसे नसीब नहीं हुई। ग्लूक का चयन इस अर्थ में नोबेल समिति के लिए भी सुकूनदेह कहा जा सकता है कि उनके इर्द गिर्द ऐसा कोई विवाद उठने की गुंजाइश नहीं है। उनकी कविताओं का ताल्लुक बाहरी दुनिया में जारी उथल-पुथल से उतना नहीं है जितना इंसान की अंदरूनी कशमकश से है। नोबेल समिति के ही शब्दों में कहें तो यह पुरस्कार उन्हें उनकी उस अचूक काव्य दृष्टि के लिए दिया गया है जो 'अपने सादगीपूर्ण सौंदर्य से वैयक्तिक अस्तित्व को सार्वभौमिक बना देती है।' इस कार्य के लिए वे अपने काव्य बिंब भी प्रायः निजी जीवन या प्रकृति से ही उठाती हैं। इसी बिंदु पर हमें वह दूसरा कारक मिलता है जो इतिहास के इस कालखंड में ग्लूक को हमारे लिए महत्वपूर्ण बनाता है। कोरोना वायरस की चुनौती से जूझता इंसान आज कुदरत को लेकर अधिक संवेदनशील, विनम्र और उत्सुक है।

नोबेल समिति के फैसले के पीछे यह बात भी हो सकती है कि प्रकृति को हाहाकार से हटकर देखने में लुइस ग्लूक की कविताएं मददगार साबित होंगी। बाहर की दुनिया को जीतने के उन्माद से अलग ये कविताएं हमें हमारे अंदर की दुनिया में ले जाती हैं, जहां हम कुदरत के अलग-अलग रूपों और उनसे निकलते गहरे सवालों के साथ खुद को खड़ा पाते हैं। उनसे उलझते हुए जहां हम कुदरत से नजदीकी विकसित करते हैं, वहीं खुद को लेकर अपनी समझ को भी बेहतर बनाते हैं। उदाहरण के लिए, अपनी एक कविता 'अनट्रस्टवर्दी स्पीकर' (अविश्वसनीय वक्ता) में वह कहती हैं कि 'मेरी बात मत सुनो/ मेरा दिल टूट गया है/ मैं कुछ भी निष्पक्ष होकर नहीं देखती।' इसी कविता में वह आगे कहती हैं, 'मैं जितनी तीव्रता से कहती हूं, उतनी ही अविश्वसनीय होती हूं/ जब मैं चुप होती हूं तभी सत्य उभरता है।'

Next Story