सम्पादकीय

प्रधानमंत्री का दौरा

Rani Sahu
26 Sep 2021 6:30 PM GMT
प्रधानमंत्री का दौरा
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भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विदेश दौरा देश के लिहाज से सकारात्मक और स्वागतयोग्य रहा है।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विदेश दौरा देश के लिहाज से सकारात्मक और स्वागतयोग्य रहा है। यह दौरा मूल रूप से संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के लिए था, जहां दुनिया के 100 से ज्यादा राष्ट्राध्यक्षों या राष्ट्र-प्रतिनिधियों ने अपना-अपना उद्बोधन पेश किया। अत्यंत महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ी दुनिया में कई नेताओं ने परोक्ष, तो कई नेताओं ने प्रत्यक्ष उपस्थिति से महासभा को सार्थक सिद्ध किया। वहां भारतीय प्रधानमंत्री की प्रत्यक्ष उपस्थिति से भारत के पक्ष को नि:संदेह मजबूती मिली है। ऐसे अवसर बहुत कम आते हैं, जब दुनिया के राष्ट्र आपकी बात सुनते हैं। जम्मू-कश्मीर की सांविधानिक स्थिति में परिवर्तन, कोरोना महामारी के तांडव, भारत-चीन संघर्ष, अमेरिका की अफगानिस्तान से वापसी और तालिबान के शिकंजेकी पृष्ठभूमि में संयुक्त राष्ट्र की यह बैठक कमोबेश हर देश के लिए महत्व रखती थी। अब अमेरिका की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह आक्रामक हो। वह ऑकस और क्वाड जैसे नए गठजोड़ों में भविष्य तलाशता दिख रहा है और महासभा के दौरान भी उसकी कोशिशें इस दिशा में तेज थीं। यह एक ऐसा मोर्चा है, जहां भारत की अपनी चिंताएं और सीमाएं हैं।

हालांकि, यह कोई अच्छा संकेत नहीं है कि हम महासभा के समय छोटे गठजोड़ों का महत्व देख रहे थे। क्या दुनिया की महाशक्तियां संयुक्त राष्ट्र के प्रति पूरी तरह ईमानदार हैं? संयुक्त राष्ट्र में अगर हम दुनिया के अन्य देशों के प्रतिनिधियों के संबोधनों पर गौर करेंगे, तो पाएंगे कि दुनिया तालिबान और कट्टरपंथियों के उभार के चलते चिंतित है, दुनिया के बहुत से देशों को आर्थिक-सामाजिक रूप से मदद चाहिए, दुनिया के ज्यादातर देश परस्पर मिलजुल कर चलना चाहते हैं। ऐसे में, गौर करने की बात है कि इस बार दुनिया की महाशक्तियों को अलग-अलग ढंग से निशाना भी बनाया गया है, जो एक तरह से जरूरी भी था। भारतीय प्रधानमंत्री की अगर बात करें, तो विशेष रूप से चीन की ओर इशारा खास मायने रखता है। उन्होंने न केवल कोरोना की उत्पत्ति, बल्कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग से खिलवाड़ का भी मामला उठाया है। पूरे साहस के साथ समुद्र पर अधिकार की कोशिश में लगे देशों को भी आईना दिखाया है। भारत पहले दिन से इस प्रयास में लगा है कि अफगानिस्तान में जिसके भी हाथों में सत्ता हो, वह समावेशी सरकार चलाए। अगर तालिबान अपने समाज, अपने लोगों के प्रति समावेशी नजरिया नहीं रखते, तो उन्हें मान्यता देने से पहले इंतजार करने में ही दुनिया की भलाई है। भारत के इस रुख को दुनिया के अधिकतर देशों ने समर्थन दिया है। रूस और चीन जैसी शक्तियों के साथ ही पाकिस्तान की कोशिशें भी नाकाम रही हैं। तालिबान पर महासभा से जो दबाव पड़ा है, उसकी रोशनी में हम सुधार की उम्मीद रख सकते हैं। जहां तक भारत की उपलब्धियों का सवाल है, तो प्रधानमंत्री का यह दौरा अमेरिका से किसी सौदे-समझौते के लिए नहीं था। फिर भी अमेरिकी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री की मुलाकात को हम सकारात्मक करार दे सकते हैं। बातचीत में भारत के लिए कोई अप्रिय बात नहीं हुई है। जहां तक कश्मीर का सवाल है, तो उसकी बात इक्का-दुक्का देशों ने की है, जिनको वहीं यथोचित जवाब दे दिया गया है

क्रेडिट बाय हिंदुस्तान

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