सम्पादकीय

पीएम सुरक्षा का सवाल

Rani Sahu
6 Jan 2022 7:14 PM GMT
पीएम सुरक्षा का सवाल
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अपने सीएम को थैंक्स कहना कि मैं जिंदा लौट पाया

'अपने सीएम को थैंक्स कहना कि मैं जिंदा लौट पाया।' प्रधानमंत्री मोदी की यह व्यंग्यात्मक और पीड़ास्पद टिप्पणी बहुत कुछ बयां कर देती है कि पंजाब की सरज़मीं पर उनके साथ क्या हुआ। यह कथन देश को हिला देने वाला है कि पीएम की सुरक्षा से भी खिलवाड़ किया जा सकता है। जिस स्थान से पाकिस्तान की सीमा मात्र 23 किलोमीटर दूर है, वहां भारत के प्रधानमंत्री करीब 20 मिनट तक फंसे रहे। रास्ता अवरुद्ध था। कोई आकस्मिक या समानांतर योजना नहीं थी। पंजाब सरकार ने अतिरिक्त सुरक्षा मुहैया कराने में असमर्थता जता दी थी। पीएम के विशेष काफिले की कुछ दूरी पर बस, ट्रक और अन्य वाहन खड़े थे। उनमें कौन सवार था और उनके मंसूबे क्या थे, कौन जानता था? सवाल यह है कि पंजाब के पुलिस महानिदेशक ने तमाम सुरक्षा बंदोबस्तों की पुष्टि की, तो पीएम का काफिला उस सड़क मार्ग पर आया। प्रदर्शनकारियों को पीएम के रूट की जानकारी कैसे मिली? यह अत्यंत गोपनीय मामला है और एसपीजी तथा पुलिस के बीच ही साझा किया जाता है। क्या जानबूझ कर पीएम को प्रदर्शनकारियों के विरोध और असंतोष का सामना करने को बाध्य किया गया? क्या यह पीएम बनाम कांग्रेसी नफरत की सियासत का मामला था? आखिर प्रधानमंत्री की सुरक्षा की जिम्मेदारी पंजाब सरकार और पुलिस की नहीं थी, तो फिर किसकी जवाबदेही थी? प्रधानमंत्री संपूर्ण देश का प्रतिनिधि चेहरा होता है। वह कोई सामान्य नेता या मंत्री नहीं है। क्या उसके साथ भी चूक का खेल खेला जा सकता है? क्या डीजीपी ने सुरक्षा को हरी झंडी देकर पीएम के सुरक्षा दस्ते से झूठ बोला था? क्या यह दंडनीय व्यवहार नहीं है? क्या इस शर्मनाक और निंदनीय चूक को राजनीतिक-आपराधिक साजि़श माना जाए?

प्रधानमंत्री मोदी को फिरोज़पुर में एक जनसभा को संबोधित करना था। उस सभा में 70,000 कुर्सियां थीं और लोग 700-800 ही थे, यह मुख्यमंत्री चन्नी की टिप्पणी राजनीतिक हो सकती है, लेकिन तमाम सवाल और सरोकार पीएम सुरक्षा के मद्देनजर हैं। उनसे किसी भी सूरत में समझौता नहीं किया जा सकता। पीएम का काफिला दोपहर करीब 1.40 बजे जब रैली-स्थल से मात्र 11 किमी पहले फिरोज़पुर-मोगा राजमार्ग के प्यारेआना गांव पहुंचा, तो फ्लाईओवर पर कथित किसान धरना दे रहे थे। मुख्यमंत्री के दावे के मुताबिक उन्हें बीती रात वहां से हटा दिया गया था। यदि पीएम काफिले के रूट पर बैठे प्रदर्शनकारी हटने को तैयार नहीं थे, तो पुलिस ने काफिले का रूट क्यों नहीं बदला? पुलिस ने एसपीजी को काफिला शुरू होने से पहले ही ब्रीफ क्यों नहीं किया? पीएम सुरक्षा के तमाम आयामों पर देखें, तो पंजाब पुलिस कोताही या कुछ छिपाने की मुद्रा में लगी। अंततः मुख्यमंत्री का खेद जताना बेमानी है। यदि यह चूक प्रशासन के स्तर पर हुई, तो ऐसे लापरवाह अधिकारियों के लिए सेवा में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। यदि कोई सियासत खेली गई है, तो इससे घृणित पक्ष कोई और नहीं हो सकता। बहरहाल प्रधानमंत्री सुरक्षित राजधानी दिल्ली तो लौट आए हैं, लेकिन पंजाब सरकार और पुलिस को गृह मंत्रालय के चुभते सवालों के जवाब देने पड़ेंगे। गाज किसी पर भी गिर सकती है।
खुद पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने माना है कि प्रधानमंत्री के साथ जो किया गया, वह पंजाबियत के खिलाफ है। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राष्ट्रपति शासन की मांग की है। कइयों ने मुख्यमंत्री चन्नी को नकारा करार देते हुए उनका इस्तीफा मांगा है। ये राजनीतिक सुर हो सकते हैं, लेकिन पीएम सुरक्षा के साथ ऐसी गंभीर चूक स्वीकार्य नहीं है। गृहमंत्री अमित शाह को तो यह बर्दाश्त नहीं है, जाहिर है कि केंद्र की मशीनरी तेजी से सक्रिय होकर जांच करेगी। हालांकि गृह मंत्रालय ने पंजाब सरकार की रपट तलब की है। दरअसल भारतीय प्रधानमंत्री की सुरक्षा की कई परतें होती हैं। प्रमुख जिम्मेदारी एसपीजी के कमांडोज़ की है, जिन्हें अमरीका की अत्याधुनिक सीक्रेट सर्विस की तर्ज पर टे्रनिंग दी जाती है। उनके हाथों के हथियार कुछ पलों में ही गोलियों की बौछार कर आतंकियों को ढेर करने में सक्षम हैं। पीएम को तब तक उनके आवास से भी बाहर नहीं आने दिया जाता, जब तक सुरक्षा को लेकर एसपीजी सुनिश्चित नहीं हो जाता। लिहाजा इस संदर्भ में मुख्यमंत्री और कांग्रेस के बयान बेमानी हैं कि पीएम ने अचानक सड़क मार्ग से जाना तय कर लिया था। बहरहाल अब चुनावों में यह मुद्दा भी भाजपा खूब भुना सकती है।

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