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भारतीय जनता पार्टी (BJP) मणिपुर (Manipur) राज्य में अपनी सरकार बनाने के लिए तैयार है
सयंतन घोष
भारतीय जनता पार्टी (BJP) मणिपुर (Manipur) राज्य में अपनी सरकार बनाने के लिए तैयार है. राज्य विधानसभा चुनाव 2022 (Assembly Election 2022) में बीजेपी ने मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के नेतृत्व में यहां अकेले चुनाव लड़ा और 40 में से 32 सीटों पर जीत हासिल की. एक समय ऐसा था जब नॉर्थ ईस्ट कांग्रेस पार्टी का गढ़ हुआ करता था. लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद, उत्तर पूर्व की तस्वीर बदलने लगी. कांग्रेस पार्टी 2002 से 2017 के बीच लगातार 15 सालों तक मणिपुर राज्य में सत्ता में रही. लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी सिर्फ पांच सीटों पर सिमट गई है.
2017 तक मणिपुर राज्य में भारतीय जनता पार्टी को वहां के लोगों ने गंभीरता से लेना शुरू नहीं किया था. हालांकि, 2017 के चुनावों में वे दो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों – नागा पीपुल्स फ्रंट और नेशनल पीपुल्स पार्टी की मदद से राज्य में सत्ता में आए. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान, बीजेपी ने बिना कोई पूर्व गठबंधन किए चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया. 2017 में 21 सीटों से इस बार बीजेपी की संख्या बढ़कर 32 हो गई है.
विकास पर बीजेपी का फोकस
भारतीय जनता पार्टी को पता था कि मणिपुर जैसे राज्य में हिंदुत्व का मुद्दा या राष्ट्रवाद की बातें काम नहीं करेगी. इसलिए पार्टी ने विकास मॉडल पर फोकस किया. बीजेपी ने वादा किया था कि वे राज्य में बेरोजगारी को कम करेंगे. COVID-19 महामारी के बाद, मणिपुर की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई और मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को लगा कि केंद्र की मदद से मतदाताओं को लुभाने का यह एक अच्छा मौका साबित हो सकता है. सिंह ने "गो टू विलेज" और "गो टू हिल्स" जैसी कुछ अनोखी पहल की शुरुआत की.
इस तरह की विकास परियोजनाओं से उन्होंने पहाड़ियों और घाटी दोनों के मतदाताओं को लुभाया. इस कदम ने भारतीय जनता पार्टी को चुनाव जीतने में मदद की. मणिपुर घाटी में 40 विधानसभा सीटें हैं जबकि पहाड़ी इलाकों में 20 सीटें हैं. आमतौर पर माना जाता है कि घाटी में बीजेपी मजबूत है, लेकिन इस बार पार्टी ने पहाड़ी इलाकों में भी अच्छा प्रदर्शन किया है. जिसके पीछे वजह है राज्य सरकार की अनूठी विकास परियोजनाएं जिन्होंने मतदाताओं को लुभाया.
कैसे 'डबल इंजन' सरकार के लुभावने वादों ने की बीजेपी की मदद?
मणिपुर राज्य में उसी राजनीतिक दल को वोट देने की परंपरा रही है जो राजनीतिक दल केंद्र में सत्ता में है. भारतीय जनता पार्टी ने मणिपुर में 'डबल इंजन' सरकार के पैंतरे को बहुत सावधानी से इस्तेमाल किया और सफल भी हुई. 2017 से, नरेंद्र मोदी सरकार अब तक मणिपुर में 30 से अधिक बड़ी विकास परियोजनाएं ला चुकी है. चुनाव से ठीक पहले मोदी ने खुद इनमें से कई परियोजनाओं का उद्घाटन भी किया था. बीजेपी ने मतदाताओं से कहा कि केवल 'डबल इंजन' सरकार ही इतने बड़े पैमाने पर विकास कर सकती है. बीजेपी नेताओं ने रोजगार पैदा करने के मुद्दे पर भी फोकस किया और इसे 'डबल इंजन' सरकार के एक और फायदे के रूप में गिनाया.
बीजेपी की जीत में रेलवे ने कैसे निभाई अहम भूमिका
मणिपुर की बीजेपी सरकार केंद्र सरकार के साथ मिलकर राज्य में पहली रेल लाई. स्वतंत्रता के 75 साल बाद मणिपुर ने भारत के रेलवे के नक्शे में अपनी जगह बनाई. भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने जिरीबाम रेलवे ट्रैक भी खोला और मतदाताओं से वादा किया कि अगर वे सत्ता में लौटते हैं तो अगले पांच सालों के अंदर जिरीबाम-इम्फाल रेल लाइन परियोजना को पूरा कर लिया जाएगा. उनके इस वादे को लेकर मतदाताओं में खासा उत्साह भी देखने को मिला.
AFSPA को कैसे महत्वहीन बना दिया
डबल इंजन सरकार और विकास के वादों के साथ, भारतीय जनता पार्टी ने मणिपुर राज्य में शांति स्थापित करने के मुद्दे पर भी ध्यान केंद्रित किया. कांग्रेस के 15 साल के शासन में बंद और जाम आम बात थी. बीजेपी ने यह सुनिश्चित किया कि पिछले पांच सालों में हड़ताल और नाकेबंदी की घटनाएं कम हों और इस पहलू पर सफलतापूर्वक काम किया. बीजेपी इकलौती ऐसी राजनीतिक पार्टी थी जिसने सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम या AFSPA को निरस्त करने की कोई बात नहीं की थी. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले यह मुद्दा नागालैंड में हुए नरसंहार के बाद सुर्खियों में आया था, जिसमें 14 नागरिकों की जान चली गई थी. बीजेपी ने महसूस किया कि COVID-19 महामारी के बाद, नागरिकों की प्रमुख मांग विकास और शांति होगी, इसलिए उन्होंने AFSPA के मुद्दे को ज्यादा हावी नहीं होने दिया, या ये कहें कि उन्होंने मतदाताओं का ध्यान दूसरी ओर मोड़ दिया. कांग्रेस भी इसे एक चुनावी मुद्दा बनाने में भी नाकाम रही.
मणिपुर में कांग्रेस के पतन से बीजेपी को कैसे मिली मदद?
2017 के मणिपुर विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं, लेकिन पिछले पांच सालों में, कांग्रेस के कई विधायक भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हो गए. कांग्रेस पार्टी के विधायकों की संख्या पिछले पांच सालों में घटकर 27 से मात्र 13 रह गई. कांग्रेस पार्टी को लीड करने के लिए यहां दमदार नेतृत्व का भी अभाव नजर आया. ओकराम इबोबी सिंह पिछले कई दशकों से पार्टी के सबसे बड़े नेता बने हुए हैं, वे तीन बार मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं.
2017 के बाद से सिंह और उनके परिवार के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप सामने आए हैं. कांग्रेस ने न तो उन्हें मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में पेश किया और न ही उन्हें व्यापक प्रचार करने की इजाजत दी. यहां कांग्रेस के घटते कद ने बीजेपी की काफी मदद की. कांग्रेस पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व मणिपुर राज्य की पूरी तरह उपेक्षा करता नजर आया. जबकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत बीजेपी के कई शीर्ष नेताओं ने बीजेपी के लिए यहां बड़े पैमाने पर प्रचार किया.
कुकी फैक्टर ने कैसे की बीजेपी की मदद
मणिपुर राज्य में जनजातीय आबादी की तादाद काफी है. इस चुनाव में, सबसे दिलचस्प घटनाओं में से एक कुकी पीपल एलायंस का उदय था. मणिपुर की पहाड़ी इलाकों में ईसाई नागा और कुकी-जोमी आबादी की तादाद ज्यादा है. नागा समुदाय हमेशा से नागा पीपुल्स फ्रंट को वोट करते रहे हैं लेकिन कुकी कांग्रेस को वोट देते थे.
एक ओर जहां कुकी पीपुल्स अलायंस ने अपना चुनाव लड़ा और दो सीटें जीतने में कामयाब भी रहे. सिंघत और सैकुल इन दो सीटों पर उन्हें कामयाबी मिली. वहीं दूसरी ओर, उसी जनजाति के एक अन्य संगठन ने चुनाव से पहले एक बयान जारी कर अपने समुदाय से बीजेपी को वोट देने की अपील की. गृह मंत्री अमित शाह ने भी समुदाय के बागी नेताओं के साथ खुली बातचीत का वादा किया. इस सबके चलते कूकी मतदाताओं के वोट का एक हिस्सा जहां कुकी पीपुल्स अलायंस को गया तो दूसरा हिस्सा बीजेपी को, लेकिन कांग्रेस को इसका कोई फायदा नहीं मिला. जिससे बीजेपी को काफी मदद मिली.
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