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सम्पादकीय
'परीक्षा पे चर्चा' के माध्यम से पीएम मोदी युवाओं का मार्गदर्शन करने का कर रहे काम
Gulabi Jagat
30 March 2022 6:27 AM GMT
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देश की भावी और होनहार पीढ़ी के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सान्निध्य में होने वाली वार्षिक परिचर्चा ‘परीक्षा पे चर्चा’ एक बार फिर चर्चा में है
अन्नपूर्णा देवी। देश की भावी और होनहार पीढ़ी के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सान्निध्य में होने वाली वार्षिक परिचर्चा 'परीक्षा पे चर्चा' एक बार फिर चर्चा में है। इस आयोजन की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपनी शुरुआत के महज दूसरे वर्ष में देश ही नहीं, बल्कि विदेश तक से इससे जुड़ने वाले प्रतिभागियों की संख्या 30 करोड़ तक पहुंच चुकी थी। इसका प्रमुख कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्कूली और प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से जीवन की परीक्षाओं में भी सफलता का मंत्र देना है। मोदी जी बच्चों के साथ इतनी सहजता, सरलता और सहृदयता से जुड़ते हैं कि उनको पता भी नहीं चलता कि वे विश्व के सबसे विशाल लोकतंत्र के प्रधानमंत्री से संवाद कर रहे हैं।
भारत जैसे विशाल और सामाजिक, आर्थिक विविधताओं से परिपूर्ण राष्ट्र में 'परीक्षा पे चर्चा' जैसे किसी आयोजन की शुरुआत ही अपने आप में अनोखी और दूरदर्शी है। अतीत में शिक्षा में सुधार का अर्थ नए ढांचे के निर्माण, सकल नामांकन अनुपात में बढ़ोतरी का प्रयास, शिक्षा बजट में बढ़ोतरी आदि से लिया जाता था, पर नामांकन के बाद खासकर परीक्षा के समय छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों अथवा माता-पिता को किन कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता था यह पहले सरकार का विषय नहीं हुआ करता था। जबकि वास्तविकता यह है कि वर्तमान शिक्षा पद्धति में देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा वार्षिक परीक्षाओं के समय तनावग्रस्त होने लगता है। परीक्षा में अंक की चिंता, बच्चों के भविष्य की चिंता और साथ ही पारिवारिक-सामाजिक दबाव के चलते विद्यार्थियों और अभिभावकों को कई तनावपूर्ण स्थितियों का सामना करना पड़ता है। लगातार बढ़ते शहरीकरण और एकल परिवारों में बढ़ोतरी के चलते बच्चों की स्थिति और विकट हो रही है। इसकी वजह से कई बार उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके प्रमुख कारण हैं-परीक्षा का भय, तनाव, माता-पिता की एक सीमा से अधिक उम्मीदें, आत्मविश्वास की कमी आदि। अधिकांश मामलों में इन समस्याओं को समय रहते रोका और उनका निदान किया जा सकता है, पर उचित मार्गदर्शन और सलाह के अभाव में ऐसा नहीं हो पाता। जनभावनाओं के प्रति संवेदनशील प्रधानमंत्री मोदी ने इसे ही भांपकर देश के कर्णधारों के लिए यह महत्वपूर्ण कदम उठाया।
'परीक्षा पे चर्चा' की विशेषता यह है कि इससे जुड़े प्रतिभागी किसी खास वर्ग, क्षेत्र, उम्र, जाति या धर्म के न होकर भारत के सभी राज्यों से लेकर विदेश तक के जूनियर और सीनियर कक्षाओं के विद्यार्थी के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं के अभ्यर्थी होते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के संवाद की व्यापकता विद्यार्थियों द्वारा पूछे प्रश्नों के उत्तर में अपनी बात को केवल परीक्षा तक ही सीमित न कर उसे जीवन से जोड़ देती है। विद्यार्थी जीवन में आने वाली अनेक समस्याएं प्राय: किसी न किसी रूप में जीवन के दूसरे पड़ाव में भी जरूर आती हैं। प्रेरणा, आत्मविश्वास, एकाग्रता, आशा, उत्साह, समय और तनाव प्रबंधन आदि ऐसे अनेक विषय हैं, जिनका विद्यार्थी से लेकर आम व्यक्ति जीवन भर सामना करता है।
प्रधानमंत्री इसे अच्छी तरह समझते हैं और यही कारण है कि परीक्षा से संबंधित प्रश्नों के उनके उत्तर में भी जीवन का फलसफा छुपा हुआ होता है। उदाहरण के लिए परीक्षाओं को ही जीवन का आधार मानकर अपने बच्चों पर उम्मीदों का बोझ डाल देने वाले अभिभावकों के प्रश्न पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उत्तर पर गौर किया जाना चाहिए। वह कहते हैं कि परीक्षाओं के महत्व से इन्कार तो नहीं किया जा सकता, पर हमें समझना होगा कि क्या ये परीक्षाएं ही हमारे जीवन की कसौटी हैं? क्या 10वीं एवं 12वीं कक्षा के स्कोरकार्ड ही किसी के जीवन का नियंता हो सकते हैं? अथवा विद्यार्थी बिना स्कोरकार्ड के भी अपना भविष्य बुन सकता है? वह कहते हैं कि अल्बर्ट आइंस्टीन, न्यूटन से लेकर बिल गेट्स और सचिन तेंदुलकर तक अनेक व्यक्तित्व मिल जाएंगे, जिनके अंक-पत्र भले न चमके हों, पर उन्होंने अपना जीवन चमका कर समाज, राष्ट्र और दुनिया को एक नई दिशा दी है। इस तरह प्रधानमंत्री मोदी जब परीक्षाओं के बाहर भी बहुत बड़ी दुनिया होने की बात करते हैं तो वह केवल विद्यार्थी ही नहीं, बल्कि जन सामान्य को भी अपने लक्ष्य निर्धारित करने और उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
एक अन्य स्तर पर अपेक्षाओं को सकारात्मक रूप से लेने पर बल देते हुए वह कहते हैं कि अपेक्षाओं के कारण हममें कुछ ज्यादा करने की इच्छा जगती है। एक मिसाल देकर वह बताते हैं कि एक मरीज, जिसमें जीने की इच्छा ही न हो, उसे कितना ही बढ़िया अस्पताल और डाक्टर क्यों न मिल जाए, वह ठीक नहीं हो सकता। इसलिए आशा और अपेक्षा उध्र्व गति के लिए अनिवार्य होती हैं। सवा सौ करोड़ देशवासियों की सवा सौ करोड़ आशाएं-आकांक्षाएं भी होनी चाहिए और उस पर काम करना चाहिए, तभी देश आगे बढ़ेगा।
[शिक्षा राज्य मंत्री, भारत सरकार]
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