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जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने अपने एक और विदेशी दौरे के दौरान हलचल मचा दी है
सुतानु गुरू
जाहिर तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने अपने एक और विदेशी दौरे के दौरान हलचल मचा दी है. जैसा कि पहले से अनुमान था उनके आलोचकों ने विदेश में बसे भारतीय प्रवासियों के साथ बातचीत के दौरान घरेलू राजनीति करने के लिए उनकी निंदा की है. इस बार जगह बर्लिन (Berlin) थी, तीन दिन की जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस की राजकीय यात्रा का उनका पहला पड़ाव. पहले की तरह अपने आधिकारिक काम जर्मनी के चांसलर लीफ स्कोल्ज़ (German Chancellor Leif Scholz) के साथ औपचारिक द्विपक्षीय वार्ता के बाद पीएम मोदी ने जर्मनी में बसे भारतीयों की एक बड़ी भीड़ को अपने "इवेंट" वाली शैली में संबोधित किया. उनके प्रशंसक उत्साह में मोदी, मोदी के नारे लगा रहे थे.
संबोधन के दौरान उनकी दो टिप्पणियों की भारत में आलोचना हो रही है. सबसे पहले उन्होंने कहा कि 2014 में भारत में दशकों की अस्थिरता समाप्त हुई जब मतदाताओं ने पूर्ण बहुमत वाली सरकार चुनी और बाद में 2019 में उन्हें और बड़े जनादेश के साथ "आशीर्वाद" दिया. उन्होंने परोक्ष रूप से पूर्व की सरकारों के दौरान मौजूद भ्रष्टाचार पर भी कटाक्ष किया. भारत में डिजिटल क्रांति की प्रशंसा करते हुए पीएम मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर से कल्याणकारी योजनाओं का तेजी के साथ सीधे लोगों के अकाउंट में पैसे ट्रांसफर हो जाते हैं.
लोकतंत्र इसी तरह से काम करता है
उन्होंने हल्के अंदाज में कहा कि अब किसी भी प्रधानमंत्री को यह शिकायत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि सरकार के भेजे गए एक रुपये में से केवल 15 पैसा ही वास्तव में गरीबों और जरूरतमंदों तक पहुंचता है. वह स्पष्ट रूप से दिवंगत राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए की गई उनकी टिप्पणियों की ओर इशारा कर रहे थे. मोदी ने तीखे अंदाज में पूछा कि कैसे "पंजा" (इसे सीधे तौर पर कांग्रेस का चुनावी निशान समझा जा सकता है) गरीबों का सारा पैसा लूटने में कामयाब रहा.
पीएम मोदी के कई आलोचकों, जिनमें से कुछ तो सिर्फ उनकी कमियां ही निकालने में लगे रहते हैं, ने कहा कि प्रधानमंत्री विदेश में नौटंकी कर रहे थे. उनके मुताबिक प्रधानमंत्री ने एक बार फिर जर्मनी यात्रा के दौरान सस्ता राजनीतिक फायदा उठाने के लिए उस रेखा को पार कर लिया जो उन्हें नहीं करना चाहिए था. उनका दावा है कि यह पहली बार नहीं है जब पीएम मोदी ने अपने विदेशी प्रवास के दौरान भारतीय प्रवासियों के साथ बातचीत करते हुए भारत का अपमान किया है.
उनके आलोचक कहते हैं कि पीएम मोदी विदेशी दौरों पर केवल अपनी और अपनी सरकार की बात ही करते हैं; मानो 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले भारत के पास कोई उपलब्धि या सफलता नहीं थी. कुछ हद तक उनके आलोचक सही हैं. भारत ने वास्तव में 2014 से पहले कई उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं. मगर फिर मोदी एक पूर्ण राजनेता हैं जो अपनी छवि के साथ चुनाव पर भी ध्यान केंद्रित रखते हैं. और इसमें गलत क्या है? सभी सफल राजनेता लोगों को सपने, उम्मीदें और आकांक्षाएं बेचते हैं. यदि उन आकांक्षाओं और आशाओं को पूरा नहीं किया जाता है तो मतदाता राजनेता को बाहर कर देते हैं. लोकतंत्र इसी तरह से काम करता है.
अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की औसत आय 1,25,000 डॉलर प्रति वर्ष है
सच्चाई यह है कि पीएम मोदी 20 से अधिक वर्षों में पीएम और सीएम का चुनाव नहीं हारे हैं. इसका मतलब है कि मतदाता सोचते हैं कि वह केवल सपने नहीं बेचते हैं, बल्कि उनमें से कुछ को पूरा भी करते हैं. दूसरा तथ्य यह है कि आप चाहें या ना चाहें, प्रधानमंत्री मोदी में गहन ध्रुवीकरण करने की शक्ति है, जैसी इनसे पहले इंदिरा गांधी में थी. उनके आलोचक जितनी तीव्र गति से उन्हें नापसंद करते हैं, उनके प्रशंसक उन्हें उससे भी अधिक जोश से प्यार करते हैं. लेखक को अब भी प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की पहली अमेरिका यात्रा और न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन पर उन्माद भरी भीड़ याद है.
उनकी छवि इस तरह से ध्रुवीकरण करती है कि एक जाने-माने पत्रकार की एमडीआई प्रशंसकों के साथ मारपीट हो गई. ह्यूस्टन, टेक्सास में चकाचौंध भरी मस्ती थी जहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की प्रशंसा की. फिर उनकी जापान यात्रा थी जहां पीएम मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ बातचीत के बाद ढोल-नगाड़े पर अपना हाथ साफ किया. संयुक्त अरब अमीरात की राजकीय यात्रा के दौरान भारतीयों से बातचीत के दौरान उन्होंने भारतीयों में गजब की ऊर्जा पैदा कर की. लंदन में जब वो भारतीयों से मिल रहे थे तो लोग दीवाना होकर स्टेडियम के अंदर चिल्ला रहे थे.
लेखक का मानना है कि प्रवासी भारतीयों को उनकी जड़ों पर गर्व करवा कर पीएम मोदी एक अद्भुत काम कर रहे हैं. इसके साथ प्रधानमंत्री इसका भी उल्लेख करना नहीं भूलते कि विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय न सिर्फ एक सामान्य प्रवासी हैं बल्कि शानदार रूप से सफल प्रवासी भी हैं. अमेरिका में भारत मूल के लोगों की औसत आय 1,25,000 डॉलर प्रति वर्ष है जबकि वहां के स्थानीय गोरों की प्रति वर्ष लगभग 80,000 डॉलर ही है. 20वीं सदी के अंत तक अमेरिका में यहूदियों की औसत आय सबसे अधिक थी.
पीएम मोदी की मार्केटिंग से आर्थिक लाभ होता है
इस तरह की सफलता का जश्न मनाने में क्या गलत है? अपने आलोचकों की लगातार आलोचना के बावजूद मोदी सिर्फ तथाकथित "जुमले" वाले शख्स नहीं हैं. 2014 में, जब वह प्रधानमंत्री बने तो 40 प्रतिशत से भी कम भारतीयों के पास शौचालय की सुविधा थी. आज लगभग 100 प्रतिशत के पास शौचालय है. 2014 में, लगभग 500 मिलियन भारतीयों के पास बैंक खाता नहीं था. जन धन योजना की बदौलत आज लगभग सभी भारतीयों के पास बैंक खाता है. मध्यम वर्गीय शहरी भारतीयों के लिए शौचालय और बैंक खाते कोई बड़ी बात नहीं हैं, लेकिन गरीबी में गुजारा करने वालों के लिए सचमुच यह परिवर्तन क्रांतिकारी है.
यह भी न भूलें कि पीएम मोदी की मार्केटिंग अगर "नौटंकी" भी मानें तो भी उससे आर्थिक लाभ होता है. 2014 में प्रवासी भारतीय देश में कुल 66 बिलियन डॉलर भेजते थे; कोविड महामारी के बावजूद 2020 में यह बढ़कर लगभग 90 बिलियन डॉलर हो गया. इसी अवधि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह 25 अरब डॉलर से बढ़कर 87 अरब डॉलर हो गया. कुल विदेशी मुद्रा भंडार भी 330 अरब डॉलर से बढ़कर 630 अरब डॉलर हो गया. मार्केटिंग काम करती है, भले ही आलोचकों को लगे कि यह भड़कीला या दिखावा है.
Rani Sahu
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