सम्पादकीय

साजिश के तार

Subhi
7 May 2022 3:00 AM GMT
साजिश के तार
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पंजाब सुरक्षा को लेकर काफी संवेदनशील राज्य माना जाता है। पाकिस्तान सीमा से सटा होने की वजह से वहां आतंकी गतिविधियों की आशंका लगातार बनी रहती है। इसे लेकर अब चिंता इसलिए बढ़ गई है

Written by जनसत्ता: पंजाब सुरक्षा को लेकर काफी संवेदनशील राज्य माना जाता है। पाकिस्तान सीमा से सटा होने की वजह से वहां आतंकी गतिविधियों की आशंका लगातार बनी रहती है। इसे लेकर अब चिंता इसलिए बढ़ गई है कि पिछले कुछ दिनों में वहां पुराने अलगाववादी संगठन सक्रिय नजर आए हैं। कुछ दिनों पहले ही खालिस्तान आंदोलन से जुड़े संगठन सिख फार जस्टिस के समर्थकों ने पटियाला में एक जुलूस निकाला, जिसके विरोध में शिव सेना (बाल ठाकरे) नामक संगठन उतरा और दोनों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ।

पंजाब सरकार उसे लेकर लग रहे आरोपों से अभी उबर नहीं पाई है। इस बीच वहां के एक दूसरे अलगाववादी संगठन बब्बर खालसा के चार सदस्य हरियाणा के करनाल में भारी असलहे, गोला-बारूद, नगदी और खतरनाक विस्फोटक से भरी गाड़ी के साथ पकड़े गए। इन युवकों को फोन के जरिए पाकिस्तान में बैठा उनका सरगना संचालित कर रहा था। पुलिस और खुफिया एजेंसी के संयुक्त दल ने लक्ष्य बना कर उन्हें पकड़ा। पता चला कि ये विस्फोटक तेलंगाना भेजे जा रहे थे। सुरक्षा बलों और पंजाब सरकार के लिए यह इसलिए भी चिंता का विषय है कि जिन अलगाववादी संगठनों को निष्क्रिय मान लिया गया था, वे फिर से सिर उठाने लगे हैं।

हालांकि इस बात के पहले से प्रमाण मौजूद हैं कि सिख फार जस्टिस और बब्बर खालसा को कनाडा और पाकिस्तान से वित्तीय मदद मिलती रही है। दोनों संगठनों के मुखिया पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों के गहरे संपर्क में हैं। यानी पाकिस्तानी दहशतगर्द पंजाब के अलगाववादी संगठनों के जरिए अशांति फैलाने की फिराक में रहते हैं। कश्मीर में चौकसी बढ़ने की वजह से जब उन्हें पहले की तरह कामयाबी नहीं मिल पा रही, तो उन्होंने पंजाब में अपने ठिकाने तलाशने शुरू किए हैं। कुछ समय पहले फिरोजपुर में ड्रोन के जरिए जो विस्फोटक गिराया गया, उसमें बब्बर खालसा के मुखिया का ही हाथ था।

ताजा मामले में पुलिस ने उसके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज किया है। मगर इससे स्पष्ट है कि पंजाब में सिर उठा रहे अलगाववादी संगठनों की गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत है। पंजाब पहले ही अलगाववाद की आग में काफी झुलस चुका है, अगर जरा भी लापरवाही हुई तो फिर से नई चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। इसे केवल कश्मीर में पाकिस्तानी दहशतगर्दों की नाकामी से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए, यह भी समझने की जरूरत है कि ये संगठन अचानक क्यों सक्रिय हो उठे हैं।

पंजाब में नई सरकार बनी है और मुख्यमंत्री की प्रशासनिक क्षमता को लेकर सवाल उठते रहते हैं। जब-तब विपक्षी दल उनकी कमजोरियों को रेखांकित करते रहते हैं। फिर चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी के मुखिया पर खालिस्तान समर्थक संगठन का समर्थक होने का आरोप भी लगा था, जिसका उन्होंने सीधा खंडन नहीं किया था। इस तरह कई सवाल उठते हैं कि क्या इन अलगाववादी संगठन पंजाब सरकार के नरम रवैए का लाभ उठाते हुए तो सक्रिय नहीं हो उठे हैं।

हालांकि भगवंत मान सरकार पटियाला में हुई हिंसक घटना के बाद काफी सख्ती से पेश आई और वह बार-बार दोहराती रही है कि वह इस तरह की हरकतों को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं करेगी। मगर उसे इस दिशा में अपना रुख स्पष्ट रखना पड़ेगा कि वह किसी भी रूप में अलगाववादी ताकतों को अपने पांव पसारने नहीं देगी। उसे सख्ती और चौकसी बढ़ानी होगी, ऐसे संगठनों पर लगातार पैनी नजर रखनी होगी।


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