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यूक्रेन-रूस युद्ध विवाद देश के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है
यूक्रेन-रूस युद्ध विवाद देश के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है, तो कोई आश्चर्य नहीं। मामले का संज्ञान लेते हुए प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को बचाने की याचिका पर सुनवाई की है और एक सोशल मीडिया पोस्ट का हवाला दिया है, जिसमें उनसे सवाल किया गया था कि युद्धग्रस्त देश से भारतीय नागरिकों को वापस लाने के लिए उन्होंने क्या कदम उठाए हैं? प्रधान न्यायाधीश का यह कहना दिलचस्प है कि इस मामले में वह क्या कर सकते हैं, क्या वह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से युद्ध रोकने के लिए कह सकते हैं? मामला प्रधान न्यायाधीश के ऐसे प्रतिप्रश्न से कहीं अधिक गंभीर है। दरअसल, जब लोग निराश या परेशान होते हैं, तभी हर संभव दरवाजे पर दस्तक देते हैं। दरअसल, 200 से अधिक छात्रों की ओर से यह याचिका दायर हुई है, जो यूक्रेन में फंसे हुए हैं। सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगाई गई है कि वह छात्रों को बचाए। याचिकाकर्ता के वकील ने यह बताया है कि बचाव की उड़ानें पोलैंड और हंगरी से संचालित की जा रही हैं, रोमानिया से नहीं। ऐसे में, छात्राओं सहित भारतीयों की एक बड़ी संख्या है, जो बिना किसी सुविधा के वहां फंसी हुई है। खास यह कि सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने वकील की दलीलों पर गौर किया और अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल को रोमानिया सीमा के पास फंसे छात्रों को सुरक्षित स्वदेश लाने की प्रक्रिया तेज करने के निर्देश दिए।
भारत सरकार लगातार समय-समय पर निर्देश जारी कर रही है कि छात्र तत्काल सुरक्षित इलाकों की ओर निकल जाएं। इसमें कोई संदेह नहीं कि छात्रों की वापसी के अभियान में देरी हुई है। पहले छात्रों को अपने स्तर पर स्वदेश लौटने के लिए इशारा किया गया था और अब सरकार को छात्रों की वापसी के लिए गंगा अभियान छेड़ना पड़ा है। चूंकि भारतीय छात्र वहां बड़ी संख्या में हैं, इसलिए उन्हें लेकर तरह-तरह की चर्चाएं भी उड़ रही हैं। सरकार को इन चर्चाओं पर गंभीरता से गौर करना चाहिए, क्या ऐसे छात्र हैं, जो वहां से लौटना नहीं चाहते? जो छात्र वहां मर्जी से रह जाएंगे, उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी किस पर होगी? क्या यूक्रेन की सेना भारतीय छात्रों को कवच की तरह इस्तेमाल कर रही है? या रूस ने भारतीयों को रिझाने या भरमाने मात्र के लिए यूक्रेनी सेना पर आरोप लगाए हैं? अगर किसी भी भारतीय के साथ बंधक जैसा व्यवहार किया जा रहा है, तो सच्चाई दुनिया के सामने आनी चाहिए। चिंता इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि सात हजार से ज्यादा भारतीय अभी भी युद्धग्रस्त क्षेत्रों में फंसे हुए हैं।
भारत को सजग रहना होगा। संयुक्त राष्ट्र में हुए मतदान में 141 देश रूस के खिलाफ हो गए हैं और महज पांच देश उसके साथ हैं, जबकि भारत सहित 34 देशों ने मतदान नहीं किया है। बहुमत ऐसे देशों का है, जो रूस के खिलाफ हैं, इसमें अचरज की कोई बात नहीं। इससे रूस और उसके समर्थक देशों को भी पता चल गया होगा कि उनके साथ दुनिया के कितने कम देश हैं। दुनिया के ज्यादातर लोग यही चाहते हैं कि यह युद्ध तत्काल रुकना चाहिए और व्लादिमीर पुतिन को संयुक्त राष्ट्र में हुए इस मतदान पर गौर करते हुए रूस को किसी बड़ी हानि से बचाना चाहिए। युद्ध की शुरुआत में ही यह स्थिति है, जब तबाही बढ़ेगी, तब शायद पुतिन के साथ कोई नहीं खड़ा होगा।
लाइव हिंदुस्तान के सौजन्य से सम्पादकीय
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