- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- कुदरत से खिलवाड़
Written by जनसत्ता: पिछले कुछ वर्षो में मौसम के मिजाज में जिस तरह से बदलाव आया है, उससे आने वाले खतरे का अंदेशा होने लगा है। प्रकृति से खिलवाड़ ने समग्र पारिस्थितिकी को बदल दिया है जिससे नए-नए संकट खड़े हो रहे हैं। प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन एक तरफ इन संसाधनों की भविष्य में उपलब्धता पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ विभिन्न प्रकार की समस्याओं को भी जन्म दे रहा है। आर्थिक प्रगति को विकास की धुरी मान बैठा मानव जिस प्रकार से प्रकृति रूपी उसी डाल को काट रहा है, जिस पर उसका अस्तित्व टिका है, निश्चित तौर पर उसके भविष्य के लिए यह शुभ संकेत नहीं है।
आज बारिश के मौसम में भी देश में बारिश की कमी की वजह से कई राज्य सूखे का दंश झेल रहे हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर मौसम का मिजाज क्यों बदल रहा है और इसके लिए जिम्मेदार कौन है? इस प्रश्न का उत्तर निश्चित तौर पर प्रकृति के प्रति हमारे संवेदनहीन रवैये की तरफ इशारा करता है। प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन कर हम विकास की जिस प्रक्रिया को गति देने में लगे हैं, वह प्रक्रिया हमें धीरे-धीरे विनाश की तरफ ले जाती दिख रही है और आज भी हम कागजी नीतियों के अलावा धरातल से कोसों दूर खड़े दिखत हैं।
सरकार पर्यावरण संबंधी नीतियों के क्रियान्वयन में आज भी पूरी तरह से सफल होती नहीं दिख रही है, क्योंकि सरकारी नीतियां विकास एवं पर्यावरण संरक्षण के बीच तालमेल स्थापित करने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पा रही हैं।आज निश्चित रूप से हम ऐसे दोराहे पर खड़े हैं, जहां एक ओर अर्थव्यवस्था का मकड़जाल है तो दूसरी ओर सृजन का कारक प्रकृति है। इस बात का निर्णय स्वयं लेना होगा कि हमें मजबूत अर्थव्यवस्था की भट्ठी में जीवन को झोंकना है या हमारी प्रत्येक आवश्यकता का ध्यान रखने वाली प्रकृति की तरफ सम्मान की दृष्टि से देखना है।
उद्योग को मजबूती देने एवं आधुनिक जीवन के संसाधन जुटाने के चक्कर में हमने जिस प्रकार से पृथ्वी, जल एवं वायु को दूषित किया है, उसकी भरपाई करना अत्यंत आवश्यक है। यदि हमें अपने भविष्य को सुरक्षित रखना है और भावी पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी है तो प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन छोड़ कर उनके संरक्षण एवं उचित प्रबंधन पर ध्यान देना होगा।