सम्पादकीय

जिंदगी से खिलवाड़, देश की राजधानी में सुरक्षा संबंधी मानकों की हो रही घोर अनदेखी

Gulabi Jagat
15 May 2022 8:44 AM GMT
जिंदगी से खिलवाड़, देश की राजधानी में सुरक्षा संबंधी मानकों की हो रही घोर अनदेखी
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दिल्ली में एक इमारत में आग लगने से 27 लोगों की मौत ने फिर से यह चीख-चीखकर बताया कि
दिल्ली में एक इमारत में आग लगने से 27 लोगों की मौत ने फिर से यह चीख-चीखकर बताया कि देश की राजधानी में सुरक्षा संबंधी मानकों की किस तरह घोर अनदेखी हो रही है। दिल्ली में किसी इमारत में आग लगने और उसमें लोगों के काल-कवलित होने की यह पहली घटना नहीं। यहां रह-रहकर ऐसा होता ही रहता है। कभी कोई कारखाना, कभी गोदाम, कभी रिहायशी इमारत और कभी कोई होटल आग की चपेट में आता ही रहता है।
ऐसा लगता है कि जिन भी विभागों पर यह देखने-निगरानी करने का दायित्व है कि हर तरह की इमारतों में आग से बचाव के साथ सुरक्षा के अन्य उपायों का सही तरह पालन हो, उन्होंने यह ठान लिया है कि कुछ भी हो जाए, कितने भी लोग मारे जाएं, उन्हें अपनी जिम्मेदारी की रत्ती भर भी परवाह नहीं करनी। चूंकि घातक अनदेखी और असंवेदनशीलता का यह भाव ऊपर से लेकर नीचे तक व्याप्त है, इसलिए न तो कहीं कोई सुधार हो पा रहा है और न ही जरूरी सबक सीखने की इच्छाशक्ति दिखाई जा रही है। हमारे नीति-नियंताओं को यह आभास हो तो अच्छा कि इस तरह की घटनाएं केवल जान-माल की क्षति का कारण ही नहीं बनतीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को शर्मसार भी करती हैं।
आखिर ऐसे किसी देश की प्रतिष्ठा की रक्षा कैसे हो सकती है, जिसकी राजधानी में कभी आग लगने और कभी जर्जर इमारतों के गिरने से लोग मरते ही रहते हों? सवाल यह भी है कि सार्वजनिक सुरक्षा के मामले में जब दिल्ली ही कोई उदाहरण नहीं पेश कर पा रही है, तब फिर देश के अन्य हिस्सों से कोई अपेक्षा कैसे की जाए? अपने देश में सार्वजनिक स्थलों में आम लोगों की सुरक्षा की जैसी खुली और खतरनाक अवहेलना होती है, उसकी मिसाल मिलना कठिन है। समस्या केवल यह नहीं कि सुरक्षा उपायों के प्रति सतर्कता और अनुशासन का अभाव है, बल्कि यह भी है कि नियोजित विकास के मानकों को जानबूझकर धता बताया जाता है। इससे भी खराब बात यह है कि इसके लिए कभी किसी को कठोर दंड का भागीदार नहीं बनाया जाता।
आमतौर पर एक विभाग दूसरे को दोष देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। इसी रवैये के कारण ही सार्वजनिक सुरक्षा के मामले में भारत अनेक विकासशील देशों से भी मीलों पीछे है। स्थिति में तब तक सुधार नहीं होने वाला, जब तक इस मानसिकता के तहत काम होता रहेगा कि जब हम विकसित देशों जैसे बन जाएंगे, तब सब कुछ ठीक कर लेंगे। यह एक निठल्ला चिंतन है, क्योंकि यदि भारत को विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा करना है तो सुरक्षा उपायों को शीर्ष प्राथमिकता देनी होगी और हर क्षेत्र में नियम-कानूनों का पालन सख्ती के साथ करना होगा।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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