- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- खेल-खिलाड़ी से पूंजी...

आज दुनिया उनके लिए बनाई जा रही है जो नंबर एक हैं, फिर वह पढ़ाई हो या खेल। करीब 125 करोड़ के हमारे भारत में ऐसे लोग सिर्फ सात ही हो सकते हैं, 34 करोड़ के अमरीका में 130 या फिर 140 करोड़ के चीन में 88! तो कोई गांधी आता है और पूछता है कि भाई, सात के बाद जो बचा करोड़ों का भारत उनका क्या करोगे? यह कैसा नियम है, सफलता का कैसा पैमाना है? मेडल तालिका में सबसे ऊपर खड़े अमरीका में भी केवल 130 लोग जीते हैं कि 34 करोड़ लोग भी जीते हैं? अगर सफलता की गिनती इस तरह करोगे तो उन 134 लोगों में शामिल होने के लिए मारकाट, ईष्र्या, द्वेष, लूट-बेईमानी होगी ही। तब खिलाड़ी नहीं, ड्रग्स जीतेगा, खिलाड़ी नहीं, पैसा खेलेगा! फिर यह जरूरी हो जाएगा कि खुद आगे निकलने के लिए दूसरे हर किसी को, किसी भी रास्ते नीचे धकेला जाए। जो ऊपर पहुंचा वह भी इसी मानसिकता का बीमार और पीछे छूट गया वह भी बीमार। एक बीमार सभ्यता, एक बीमार पागल समाज। यह समझा जाना चाहिए कि समाधान मानसिक बीमारी के इलाज से ज़्यादा बीमारी के कारणों में छिपा है…
