सम्पादकीय

जान से खिलवाड़

Subhi
10 Jun 2021 2:45 AM GMT
जान से खिलवाड़
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इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि कोई मरीज अपनी जान बचाने की भूख में अस्पताल की शरण में पहुंचा हो

इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि कोई मरीज अपनी जान बचाने की भूख में अस्पताल की शरण में पहुंचा हो और वहां के कर्ताधर्ता दिखावे के अभ्यास के नाम पर ऐसा कुछ करते हैं, जिससे उसकी मौत हो जाए। खासतौर पर वैसे लोगों की जान के साथ खिलवाड़ करके मौत की नींद सुला देने से ज्यादा आपराधिक और क्या होगा, जिनकी जिंदगी बचाई जा सकती थी। आगरा के एक अस्पताल में इसी तरह की जैसी घटना सामने आई है, वह महज अनुमान पर आधारित कोई आरोप नहीं है, बल्कि चुपके से बनाए गए एक वीडियो में खुद उस अस्पताल के मालिक ने कई चौंकाने वाली बातें कहीं। अगर चारों ओर फैल चुके उस वीडियो में सामने आई बातों को आधार मानें तो अस्पताल के मालिक ने यह कहा कि वहां भर्ती मरीजों पर प्रयोग या अभ्यास के तौर पर आॅक्सीजन की आपूर्ति पांच मिनट के लिए रोक दी गई, जिससे बाईस लोगों की मौत हो गई। इस खबर के बाद स्वाभाविक ही हर तरफ ये तीखे सवाल उठाए जा रहे हैं कि किसी अस्पताल के भीतर इससे ज्यादा अमानवीय और क्या हो सकता है!

गौरतलब है कि आगरा के एक अस्पताल में जिस वक्त करीब सौ मरीज अपनी सांसों के लिए जद्दोजहद कर रहे थे, उस समय आॅक्सीजन कटौती करके उसके नतीजे देखने का यह आपराधिक प्रयोग किया गया। यह किसी सामान्य बुद्धि वाले व्यक्ति को भी पता है कि बीमारी की हालत में अगर कुछ पलों के लिए भी मरीज की सांस बाधित हो जाए तो उसके नतीजे क्या हो सकते हैं। सिर्फ इसी वजह से आॅक्सीजन की सहायता से किसी मरीज की सांस की प्रक्रिया को सामान्य बनाने की कोशिश की जाती है, ताकि उसके जीवन पर आने वाले खतरे को कम किया जा सके। ऐसे समय में सिर्फ प्रयोग या अभ्यास के लिए सांस लेने के लिहाज से पांच मिनट की लंबी अवधि के लिए आॅक्सीजन की आपूर्ति बाधित करने का खयाल भी किसी के भीतर कैसे आ सकता है? खासतौर पर तब, जब वह व्यक्ति अस्पताल का मालिक या फिर कोई डॉक्टर हो! यों भी अगर कोई सफाई के तौर पर 'मॉक ड्रिल' यानी झूठे अभ्यास की बात करता है तो इसका मतलब क्या होना चाहिए? क्या मरीजों की मौत का इंतजाम करने को केवल अभ्यास के तौर पर देखा जा सकता है?
अब जब अस्पताल के मालिक का वीडियो चारों तरफ फैल जाने के बाद मामला तूल पकड़ता दिख रहा है तब प्रशासन की ओर से जांच और कार्रवाई करने की बात कही जा रही है। लेकिन साथ ही वीडियो में बाईस लोगों की मौत की बात कहे जाने के बावजूद जिला प्रशासन ने जिस तरह सिर्फ सात मरीजों की मौत की बात कही है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस मामले की जांच किस दिशा में जा सकती है! बहरहाल, यह सवाल उठना स्वाभावकि है कि दूसरी लहर के दौरान जिस समय आॅक्सीजन की कमी से मौत की खबरें आ रही थीं, उसके पीछे क्या सच्चाई थी! सही है कि किसी एक अस्पताल की घटना के आधार पर सभी मामलों का सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता। ज्यादातर अस्पतालों में डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के साथ-साथ सरकारों ने अपने प्रबंधन के जरिए अपनी सीमा में हर संभव प्रयास किए और इसकी वजह से बहुत सारे मरीजों की जान बचाई जा सकी। लेकिन जब ऐसी घटनाएं सामने आती हैं तब नाहक भी आशंकाओं को बल मिलता है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अगर आॅक्सीजन बाधित करने की वजह से मौतें हुई है तो इसे हत्या के समांतर अपराध माना जाए और इसके दोषियों को सख्त सजा मिले।

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