- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- प्लास्टिक का दुश्चक्र
Written by जनसत्ता: बाजार से कोई भी सामान लाने के लिए हाथों में टंगी प्लास्टिक की थैलियां लोगों के लिए सुविधाजनक भले हों, लेकिन उसकी वजह से आज पर्यावरण के सामने कैसी चुनौती खड़ी हो गई है, यह छिपा नहीं है।
हालत यह है कि प्लास्टिक आज आसपास के इलाकों को प्रदूषित करने में एक बड़ी भूमिका निभा रहा है और लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी भी बुरी तरह प्रभावित होती है। यह तब है जब बीते काफी समय से पालिथीन की थैलियों के चलते होने वाले प्रदूषण से पर्यावरण के सामने कई नई चुनौतियां खड़ी हो चुकी हैं और इससे आम लोग भी परेशान हैं।
अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इससे पैदा होने वाले भावी संकट के मद्देनजर सरकार की ओर से एकल इस्तेमाल वाली प्लास्टिक की थैलियों पर पाबंदी लगाने को लेकर सख्त कदम उठाए गए हैं, मगर आज भी इसका इस्तेमाल बंद करने के प्रति अपेक्षित जागरूकता पैदा नहीं सकी है।
यह बेवजह नहीं है कि लोगों को आज भी प्लास्टिक की थैलियों में कोई सामान लाने में हिचक महसूस नहीं होती। जबकि एक-एक करके जमा होने वाली ये थैलियां प्रदूषण के सबसे बड़े कारकों में से एक बन चुकी हैं।
गौरतलब है कि करीब दो महीने पहले सरकार ने देश भर में एकल प्रयोग वाले प्लास्टिक पर पूरी तरह रोक लगा दी। इसके बावजूद अमूमन हर जगह इसका इस्तेमाल जारी है। दुकानदार ऐसी थैलियों में लोगों को सामान देते हैं और आम लोग बिना किसी सवाल या हिचक के इन थैलियों में कोई वस्तु लेकर घर जाते हैं।
खुद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, रोक के बावजूद देश में सार्वजनिक जगहों पर सबसे ज्यादा एकल इस्तेमाल वाले प्लास्टिक का लोग प्रयोग कर रहे हैं। हालांकि जुलाई और अगस्त महीने में देश भर में एकल इस्तेमाल वाले प्लास्टिक पर रोक का उल्लंघन करने के आरोप में बानबे हजार से ज्यादा लोगों से जुर्माना वसूला गया, मगर इसका असर जमीन पर कितना पड़ा है, वह आमतौर पर हर जगह देखा जा सकता है।
नया कानून लागू होने के बाद देश भर में पर्यावरण मंत्रालय और स्थानीय निकायों की जांच टीमों ने खासतौर पर हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों को इसके लिए चिह्नित किया और इनमें से बस अड्डों पर इसका सबसे ज्यादा उल्लंघन पाया। इसके अलावा, रिहाइशी बस्तियों की दुकानों और बाजारों में इसका इस्तेमाल आज भी आम है।
यह समझना मुश्किल है कि एकल इस्तेमाल वाले प्लास्टिक के खतरों को जानते-समझते हुए भी लोग इसके प्रयोग से बचने की कोशिश क्यों नहीं करते! एक दौर था जब लोग अगर कुछ खरीदारी करने के लिए दुकान पर या बाजार में जाते थे तो वे अपने घर से कपड़े के या कोई अन्य थैले लेकर जाते थे। वह थैला काफी दिन तक इस्तेमाल में आता रहता था। कपड़े से तैयार थैला शायद ही किसी रूप में प्रदूषण का कारक या पर्यावरण के लिए नुकसानदेह बनता है।
मगर आज बाजार में जाते हुए खाली हाथ जाना और प्लास्टिक की थैलियों में सामान लाना लोग अपने शौक या हैसियत का पैमाना मानते हैं। घरों में जमा हुईं इस तरह की थैलियां किस तरह लापरवाही से फेंक दी जाती हैं, यह जगजाहिर रहा है। चूंकि इनके नष्ट होने की प्रक्रिया बेहद जटिल है, इसलिए नालियों और इस रास्ते नदियों में जाकर या फिर कचरे के ढेर में जमा होकर ये आबोहवा को दूषित करने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाएं करती हैं।
इसके खतरे का अंदाजा अब बहुत सारे लोगों को है। मगर ऐसे तमाम लोग हैं, जो जानते-बूझते हुए भी एकल इस्तेमाल में आने वाले प्लास्टिक को रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बनाए हुए हैं। सवाल है कि इसका खमियाजा आखिरकार किसे भुगतना होगा?