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भारतीय दर्शन एवं लोक जीवन में पेड़-पौधों में जीवन की मौजूदगी मानी जाती है
डॉ॰ विजय अग्रवाल
भारतीय दर्शन एवं लोक जीवन में पेड़-पौधों में जीवन की मौजूदगी मानी जाती है, ठीक हमारें अपने जीवन की ही तरह. हाल ही में "बेसिक एण्ड एप्लाइड इकोलॉजी" जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि ध्वनि प्रदूषण का सीधा विपरीत प्रभाव पौधों के विकास पर पड़ता है. यहाँ तक कि इससे उनमें तनाव तक बढ़ जाता है. लेकिन यहाँ मैं इससे भी आगे के उन प्रयोगों के निष्कर्ष की चर्चा करने जा रहा हूँ, जिनसे सिद्ध हुआ है कि पौधे मनुष्य के भावों एवं विचारों तक से बहुत गहरे में प्रभावित होते हैं.
एक वैज्ञानिक हुए हैं – वेकस्टर. उन्होंने एक यह प्रयोग किया कि कागज के छह टुकड़े लिए. पाँच टुकड़ों पर कुछ नहीं लिखा और एक टुकड़े पर लिखा – 'इस कमरे में जो दो पौधे हैं, उनमें से एक पौधे को उखाड़ना है, नष्ट करना है और पैरों से रौंद डालना है.' वेकस्टर ने कागज के छहों टुकड़े कमरे में रख दिए. फिर उसने छह व्यक्तियों की आँखों में पट्टी बाँधकर उनसे कहा कि 'कमरे में जाओ और एक-एक टुकडा उठा लो.'
छहों व्यक्ति कमरे में गए और उन्होंने एक-एक टुकड़ा उठा लिया. एक व्यक्ति के हाथ में वह लिखा हुआ एक कागज आया. अब सभी ने आँखों की पट्टियाँ खोलकर अपने-अपने पर्चे पढ़े. जिसके कागज पर कुछ लिखा था, वह व्यक्ति कमरे में गया. उसने एक पौधे को उखाड़ा और पैरों से रौंदकर उसे नष्ट कर दिया. वैज्ञानिक को भी पता नहीं था कि यह काम इन छह व्यक्तियों में से किसने किया है. अब वेकस्टर ने एक-एक करके छह व्यक्तियों को कमरे में जाने के लिए कहा. कमरे में जो पौधा बचा हुआ था, उस पर पोलोग्राफ (पौधे की हरकतों का चित्रांकन करने वाला यंत्र) लगा दिया गया. पहला व्यक्ति गया. पौधे पर कोई प्रतिक्रिया अंकित नहीं की. ज्यों ही पौधे को उखाड़ने वाला व्यक्ति कमरे में प्रविष्ट हुआ, पौधा काँप उठा. उसके कंपन पोलोग्राफ पर अंकित होने लगे. उस ग्राफ को देखकर वेकस्टन ने जान लिया कि उस व्यक्ति ने ही पौधे को नष्ट किया है.
देखा आपने कि मनुष्य नहीं जान सका कि पौधे को किसने उखाड़ा था, लेकिन उस पौधे में इतनी तीव्र संवेदनशीलता थी कि वह जान गया.
वैज्ञानिक वेकस्टर ने एक दूसरा प्रयोग भी किया. सभी पौधों पर पोलोग्राफ लगा हुआ था. वह एक प्रयोग कर रहा था. प्रयोग करते-करते उसके मन में यह बात आई कि जलती हुई मशाल मँगाकर उस पौधे को जला डालो. जैसे ही उसके मन में यह बात आई, ग्राफ की सुई घूमने लगी. वह दूसरे पौधे के पास पहुँचा. उसका भी ग्राफ घूमने लगा. वह मशाल लेने के लिए दूसरे कमरे में गया, लेकिन उसका मन बदल गया. उसने सोचा कि उस पौधे को नही जलाऊँगा. यह सोचकर जब वह फिर से उन्हीं पौधों के पास गया, उनके ग्राफ की सुई स्थिर थी. वहाँ कोई हलचल नहीं हुई. यानी कि पौधे व्यक्ति की भावनाओं को समझकर उसके अनुकूल प्रतिक्रिया देने की विलक्षण क्षमता रखते हैं. व्यक्ति के भावों के अनुसार उनके चारों ओर अलग-अलग रंगों के प्रकाश का घेरा बनता है. वनस्पतियां इन आभा-मंडलों का एहसास कर लेती हैं.
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि पौधे केवल व्यक्ति के शरीर से निकलने वाली किरणों का ही अनुभव नहीं करते, बल्कि स्वयं इस तरह की किरणें निकालते भी हैं. सोवियत रूस के इलेक्ट्रॉनिक विशेषज्ञ किरलियान तथा उनकी वैज्ञानिक पत्नी वेलेन्टीना ने फोटोग्राफी की एक विशेष विधि का आविष्कार किय
उस विधि के द्वारा प्राणियों और पौधों के आसपास होने वाली सूक्ष्म विद्युतीय गतिविधियों का छायांकन किया जा सकता है. उन्होंने जब एक पौधे की तत्काल तोड़ी गई पत्ती की सूक्ष्म गतिविधियों की फिल्म खींची, तो उन्हें कुछ विस्मयकारी परिणाम देखने को मिले. पहले चित्र में पत्ती के चारों ओर चमकती झिलमिलाहटों और तेज प्रकाश के मण्डल दिखाई दिये. दस घण्टे बाद लिए गए छायाचित्रों में यह आलोक मण्डल कमजोर पड़ गया था. अगले दस घण्टों के बाद लिए गए छायाचित्रों में आलोक मण्डल पूरी तरह गायब हो चुका था. इसका अर्थ यह हुआ कि पत्तियों की अब मौत हो चुकी थी. ठीक इसी प्रकार किरलियान दंपत्ति ने एक रुग्ण पत्ती की फिल्म उसी विधि से ली. उसमें आलोक मण्डल शुरू से ही कम था, जो जल्दी ही समाप्त हो गया.
विभिन्न प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि वनस्पतियों को यदि स्नेह से स्पर्श किया जाए, तो वे रोमांचित हो उठते हैं. यदि उनके सामने खड़े होकर प्रार्थना की जाए, तो वे हर्षित हो उठते हैं. यहाँ तक देखा गया है कि यदि उन्हें संगीत सुनाया जाए, तो उनके बढ़ने की गति तेज हो जाती है.
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Rani Sahu
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