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- अर्थव्यवस्था की गुलाबी...
नव वर्ष में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अप्रैल 2022 से शुरू होने वाले वित्त वर्ष के लिए बजट पेश करेगी। बजट पेश किए जाने से एक दिन पूर्व आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा। इस सर्वेक्षण के माध्यम से देश के आर्थिक प्रदर्शन की तस्वीर सामने आएगी। वैसे हर पखवाड़े या हर माह आने वाली खबरों से हमें हालात का पता चलता रहता है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी राष्ट्रीय आय के पहले अग्रिम अनुमान के मुताबिक अर्थव्यवस्था में वृद्धि देखने को मिल रही है। अनुमान के अनुसार देश की आर्थिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 2021-22 में 9.2 फीसदी रहने का अनुमान है। विभिन्न क्षेत्रों खासकर कृषि, खनन और विनिर्माण क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन से वृद्धि दर कोविड-पूर्व स्तर को भी पार कर लेने की उम्मीद है। अनुमान के मुताबिक अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में वृद्धि देखने को मिली है। पिछले वित्तीय वर्ष में कोविड-19 महामारी के चलते उसकी रोकथाम के लिए लगाए गए सख्त लॉकडाउन से जीडीपी वृद्धि दर में 7.3 फीसदी की गिरावट आएगी। स्थिर मूल्य पर वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद 2021-22 में 147.54 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में यह 135.13 लाख करोड़ रुपए था। यद्यपि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी वृद्धि अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जताए गए 9.5 फीसदी के जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान से कुछ कम है लेकिन अच्छी खबर यह है कि चालू वित्त वर्ष मेेें कृषि वृद्धि दर 3.9 फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि महामारी से गुजरे पिछले वित्तीय कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 3.6 फीसदी रही थी। महामारी के दौरान तमाम प्रतिबंधों के बावजूद एक मात्र सैक्टर कृषि ही रहा, जिसने अर्थव्यवस्था को सहारा दिये रखा। वहीं विनिर्माण, खनन, उत्खनन, व्यापार, होटल, परिवहन, संचार तथा प्रसारण से जुड़े सेवा क्षेत्र में वृद्धि की सम्भावना है। कुल मिलाकर तस्वीर काफी गुलाबी है लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं और एजैंसियों के अनुमान अलग-अलग हो सकते हैं।इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी गहरी खाई में है और महामारी के चलते लोगों की इच्छाएं काफी घट चुकी हैं। आय कम होने से लोग उतना ही सामान खरीदते हैं जिनकी जरूरत ज्यादा होती है। करोड़ों लोग महामारी के चलते बेरोजगार हो गए और उनकी क्रय क्षमता काफी घट गई। भारतीय अर्थव्यवस्था उपयोग पर आधारित है। अर्थव्यवस्था का चक्र सामान की खपत से ही गति पकड़ता है। महामारी के दौरान मुश्किल भरी आर्थिक स्थिति में उपभाेग का कम होना स्वाभाविक है। सरकार भी 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन बांटती आ रही है। कोरोना काल में एक बड़ी समस्या पहले से ही अधिक गहरा गई है। देश के टॉप दस फीसदी लोगों के पास देश का 58-60 प्रतिशत धन है। भारत का मध्यम वर्ग बुरी तरह से आहत है। इसी वर्ग पर सभी देशों की कम्पनियों की नजरें रहती हैं। टॉप दस प्रतिशत लोगों में से एक फीसदी के पास अकेले 22 फीसदी राष्ट्रीय आय है, जबकि सबसे निचले आधे लोगों के पास राष्ट्रीय आय का केवल 13 फीसदी हिस्सा है। तमाम विषमताओं के बावजूद कर संग्रहण के मोर्चे पर संतोषजनक खबर है। इस बार बड़ी संख्या में लोगों ने आय का लेखा-जोखा जमा कराया है। आय कर विभाग के आंकड़ों के अनुसार अब तक 4.86 करोड़ से अधिक लोगों ने इन्कम टैक्स रिटर्न भरी है। महामारी की वजह से ब्यौरा देने की अंतिम तिथि 31 दिसम्बर करने से भी लोगों को फायदा हुआ है। पिछले वित्त वर्ष में प्रत्यक्ष करों के सकल संग्रहण में 60 फीसदी से अधिक वृद्धि संकेत देती है कि लोगों की आर्थिक स्थिति सुधरी है। नवम्बर माह में जीएसटी का संग्रहण 1.31 लाख करोड़ रुपए हुआ जो किसी भी महीने में हुआ दूसरा सबसे बड़ा कर संग्रहण है। इस वर्ष निर्यात में भी बड़ी प्रगति हुई है। पिछले वर्ष सरकार की ओर से कल्याणकारी योजनाओं में बड़े खर्च के साथ हर स्तर पर उद्यमियों और उद्योगों को राहत पैकेज देने के लिए कई तरह की पहलें की गई थीं।वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने बहुत बड़ी चुुनौतियां हैं। कोरोना के नए वैरियंट की चिंताएं बढ़ी हुई हैं। चिंता की बात अर्थव्यवस्था पर दबाव है, खास कर पूर्ण लॉकडाउन की स्थिति में रेहड़ी-पटरी, किराना, मॉल और अन्य कामगारों की स्थिति खराब हो जाएगी। बहुत अच्छी फसल की उम्मीद के बावजूद ग्रामीण अर्थव्यवस्था दबाव में है। वित्त मंत्री के सामने प्राथमिकता स्पष्ट है। महामारी से जूझने के लिए स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत बनाना, टीकाकरण की गति बढ़ाना, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं को सफल बनाना, निर्यात क्षेत्र पर अधिक ध्यान देना और आम आदमी को राहत देना, रोजगार के अवसर सृजित करना, उद्योग जगत में निजी निवेश बढ़ाना आदि अनेक प्राथमिकताएं हैं। भारत को अभी बहुत काम करना है। उम्मीद है कि इस वर्ष भारत मजबूती के साथ आत्मनिर्भता की ओर बढ़ेगा।