सम्पादकीय

चित्र चरित्र और प्रमाणपत्र

Rani Sahu
26 April 2022 7:19 PM GMT
चित्र चरित्र और प्रमाणपत्र
x
वे कल आए तो उम्मीद से अधिक खुश दिखे। जाहिर था, आज फिर किसी के हिस्से की खुशी अपने खाते में क्रेडिट कर आए होंगे

वे कल आए तो उम्मीद से अधिक खुश दिखे। जाहिर था, आज फिर किसी के हिस्से की खुशी अपने खाते में क्रेडिट कर आए होंगे। अपने स्वार्थ के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। यहां तक कि अपने बाप की पगड़ी तक अपने सिर रख अपने बाप का सिर मजे से नंगा करके रख दें। और ऊपर से फतवा ये कि उनसे बढ़कर नैतिकताओं का हिमायती कोई नहीं। 'यार, ले मुंह मीठा कर', बड़े अपनापे से कहते वे मेरे मुंह में जबरदस्ती कहीं से किसी के मुंह का चुराकर लाया लड्डू सगर्व डालने का अभिनय करते बोले। वैसे जो औरों के मुंह से लड्डू चुराता हो वह दूसरों के मुंह में लड्डू क्या खाक डालेगा? 'किस खुशी में?' 'जनता को एक और सुविधा देते हुए सरकार ने घोषणा की है कि अब सरकारी नौकरी के लिए चरित्र प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं रही। चलो, इसी बहाने कम से कम उम्मीदवार के पास एक बेकार का कागज तो कम हुआ। वरना, मर जाओ कभी पुलिस वाले के तो कभी पंचायत प्रधान, तहसीलदार और पता नहीं किस-किस के पैरों में नाक रगड़ते कि साहब, हम भी अपकी तरह के चरित्रवान हैं। एक ठो चरित्र प्रमाणपत्र चाहिए था। सरकारी नौकर होना चाहता हूं।' चरित्र अपने पास हो या न, पर जो कागज का अनफोल्डिड पुर्जा हो तो उसके बाद कहीं कोई डर नहीं होता। आदमी बेझिझके कहीं भी हमाम में उतर सकता है अपने दम के हिसाब से। कोई ज्यादा ही चूं चां करे तो दे मारा उसके मुंह पर अपना लेमिनेटिड करवाया ऑरिजनल चरित्र प्रमाणपत्र। बंदा ऑरिजलन हो या न, पर डॉक्यूमेंट ऑरिजनल होने चाहिएं बस! फिर जहां दाव लगा बघार दी शेखी। हमें क्या समझ रखा है यार तूने? जीवन में न सही, तो न सही, पर कागजों में तो हम भी गदराता चरित्र रखते हैं। आदमी में उतनी पावर नहीं होती, जितनी कंबख्त इन कागज के पुर्जो में होती है। कागजों के बिना जीव अस्तित्वहीन है।

कोई भी विशुद्ध चरित्र तब तक कोई मायने नहीं रखता जब तक दिखाने के लिए उसके पास कागज का टुकड़ा न हो। कागज पूरे तो आपका भगवान भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते। हां पलिस वाले सौ दो सौ के लिए उसके बाद भी आपका चालान कर दें तो उसकी कोई गारंटी नहीं। इसीलिए तो अनुभवी जीव चरित्र के बदले चरित्र प्रमाणपत्रों को संभाल कर रखने का उपदेश देते हैं। उनका अनुसरण करना या न करना हमारी मर्जी। अतैव, सफल जिंदगी जीने के लिए जिंदगी में चरित्र न संभले तो न सही, पर चरित्र प्रमाणपत्र जरूर संभाल कर रखिएगा। न जाने किस मोड़ पर किस चरित्रहंता से सामना हो जाए?…और उनकी दरियादिली कि सौ दो सौ लेकर भी चरित्र प्रमाणपत्र दे दें तो सोचो बंदा नेक है, भगवान से डरने वाला है। जो अपने चरित्र को सौ दो सौ रुपए में आपके हाथों पर रख रहा है। जो भगवान से नहीं डरते, वे पैसे भी खा जाते हैं और काम भी नहीं करते। पट ले कोई उनका जो पटना हो। 'वैसे पावरीले और इनके खासों को चरित्र प्रमाणपत्र की जरूरत ही क्या? वे तो कहीं भी हों, अपने जीते जागते चरित्र प्रमाणपत्र खुद ही होते हैं। सेल्फ अटेस्टिड, सेल्फ जेनेरेटिड। दूध दूध का धुला हो या न, पर वे दूध के धुले ही होते हैं। जिस दिन बंदा पावर में शामिल हो गया, समझो उसका दुग्धाभिषेक हो गया। चरित्र प्रमाणपत्र की जरूरत तो उन्हें है जो उनके घरों में बेगार करते हैं', मैंने कहा तो उन्होंने इधर-उधर देखा। जब उन्हें लगा कि हम दोनों के सिवाय वहां कोई तीसरा नहीं तो उन्होंने मेरे दिल पर हाथ रख राहत की सांस ली। खालिस इत्र और धवल चरित्र ऐसे ही होते हैं भाई साहब!
अशोक गौतम
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story