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वे कल आए तो उम्मीद से अधिक खुश दिखे। जाहिर था, आज फिर किसी के हिस्से की खुशी अपने खाते में क्रेडिट कर आए होंगे। अपने स्वार्थ के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। यहां तक कि अपने बाप की पगड़ी तक अपने सिर रख अपने बाप का सिर मजे से नंगा करके रख दें। और ऊपर से फतवा ये कि उनसे बढ़कर नैतिकताओं का हिमायती कोई नहीं। 'यार, ले मुंह मीठा कर', बड़े अपनापे से कहते वे मेरे मुंह में जबरदस्ती कहीं से किसी के मुंह का चुराकर लाया लड्डू सगर्व डालने का अभिनय करते बोले। वैसे जो औरों के मुंह से लड्डू चुराता हो वह दूसरों के मुंह में लड्डू क्या खाक डालेगा? 'किस खुशी में?' 'जनता को एक और सुविधा देते हुए सरकार ने घोषणा की है कि अब सरकारी नौकरी के लिए चरित्र प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं रही। चलो, इसी बहाने कम से कम उम्मीदवार के पास एक बेकार का कागज तो कम हुआ। वरना, मर जाओ कभी पुलिस वाले के तो कभी पंचायत प्रधान, तहसीलदार और पता नहीं किस-किस के पैरों में नाक रगड़ते कि साहब, हम भी अपकी तरह के चरित्रवान हैं। एक ठो चरित्र प्रमाणपत्र चाहिए था। सरकारी नौकर होना चाहता हूं।' चरित्र अपने पास हो या न, पर जो कागज का अनफोल्डिड पुर्जा हो तो उसके बाद कहीं कोई डर नहीं होता। आदमी बेझिझके कहीं भी हमाम में उतर सकता है अपने दम के हिसाब से। कोई ज्यादा ही चूं चां करे तो दे मारा उसके मुंह पर अपना लेमिनेटिड करवाया ऑरिजनल चरित्र प्रमाणपत्र। बंदा ऑरिजलन हो या न, पर डॉक्यूमेंट ऑरिजनल होने चाहिएं बस! फिर जहां दाव लगा बघार दी शेखी। हमें क्या समझ रखा है यार तूने? जीवन में न सही, तो न सही, पर कागजों में तो हम भी गदराता चरित्र रखते हैं। आदमी में उतनी पावर नहीं होती, जितनी कंबख्त इन कागज के पुर्जो में होती है। कागजों के बिना जीव अस्तित्वहीन है।