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हिमाचल प्रदेश की अधिकांश आबादी गांव में रहती थी। वहां पर सवेरे-शाम वर्षों पहले विद्यार्थी अपने अभिभावकों के साथ कृषि व अन्य घरेलू कार्यों में सहायता करता
हिमाचल प्रदेश की अधिकांश आबादी गांव में रहती थी। वहां पर सवेरे-शाम वर्षों पहले विद्यार्थी अपने अभिभावकों के साथ कृषि व अन्य घरेलू कार्यों में सहायता करता था। विद्यालय आने-जाने के लिए कई किलोमीटर दिन में पैदल चलता था। इसलिए उस समय के विद्यार्थी को किसी भी प्रकार के फिटनेस कार्यक्रम की कोई जरूरत नहीं थी। आज का विद्यार्थी घर के आंगन में बस पर सवार होकर विद्यालय के प्रांगण में उतरता है। पढ़ाई के नाम पर ज्यादा समय खर्च करने के कारण फिटनेस के लिए कोई समय नहीं बचता है। अधिकांश स्कूलों के पास फिटनेस के लिए न तो आधारभूत ढांचा है और न ही कोई कार्यक्रम है। आज का विद्यार्थी फिटनेस व मनोरंजन के नाम पर दूरसंचार माध्यमों का कमरे में बैठ कर खूब दुरुपयोग कर रहा है। ऐसे में विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास की बात मजाक लगती है…
पिछले साल मार्च के अंतिम सप्ताह से कोरोना के कारण शुरू हुआ बंद विद्यार्थियों के लिए अब तक जारी है। पिछले शिक्षण सत्र में कोई भी खेल या अन्य गतिविधियों का आयोजन नहीं हो पाया है। इस सत्र में भी कोई प्रतियोगिता होती दिखाई नहीं देती है। इस समय में खेल मैदान व जिम तक ज्यादा समय बंद ही रहे हैं। इसलिए युवाओं व किशोरों के स्वास्थ्य का कौन रखवाला है। इस विषय पर शिक्षा के कर्णधारों व अभिभावकों का सोचना अनिवार्य हो जाता है। किसी भी सभ्यता या देश को इतनी क्षति युद्ध या महामारी से नहीं होती है जितनी तबाही नशे के कारण हो सकती है। आज जब देश के अन्य राज्यों सहित हिमाचल प्रदेश में भी नशा युवा वर्ग पर ही नहीं किशोरों तक चरस, अफीम, स्मैक, नशीली दवाओं तथा दूरसंचार के माध्यमों के दुरुपयोग से शिकंजा कस रहा है। इसलिए सरकार, स्कूलों व अभिभावकों को इस विषय पर सचेत हो जाना चाहिए । यदि विद्यार्थी किशोरावस्था में नशे से बच जाता है तो वह फिर युवावस्था आते-आते समझदार हो गया होता है। इसलिए विद्यालय स्तर पर माध्यमिक से वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों को विभिन्न विद्याओं में व्यस्त रखने के साथ-साथ शारीरिक फिटनेस की तरफ मोड़ना बेहद जरूरी हो जाता है। मानव का सर्वांगीण विकास शिक्षा के बिना अधूरा है। शिक्षा की परिभाषा में साफ-साफ लिखा है कि यहां शारीरिक व मानसिक दोनों तरह से बराबर विद्यार्थियों का विकास करना है, जिससे वे आगे चलकर जीवन को सफलतापूर्वक खुशहाल जी सकें। शारीरिक विकास के लिए खेलों के माध्यम से फिटनेस कार्यक्रम बहुत जरूरी हो जाता है। खेल ही वह माध्यम है जिसके द्वारा विद्यार्थी को नशे से दूर रखा जा सकता है।
पड़ोसी राज्य पंजाब एक समय तरक्की में देश का अग्रणी राज्य था। इस सबके पीछे कारण तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों की दूरगामी सोच थी। खेलों में उत्कृष्टता उस प्रदेश की तरक्की व खुशहाली का भी पैमाना होती है। पंजाब में हजारों प्रशिक्षक विभिन्न खेलों में खेल प्रशिक्षण के लिए नियुक्त होने के साथ-साथ खेल प्रशिक्षण के लिए आधारभूत ढांचा होना वहां के विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का प्रमुख कारण रहा था। बाद में जब पंजाब धीरे-धीरे खेलों से दूर हुआ तो पहले वहां आतंकवाद और फिर आजकल पंजाब नशे का अड्डा बना हुआ है। यही कारण है कि हर क्षेत्र में आज हरियाणा पंजाब से काफी आगे निकल गया है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने एशियाई, राष्ट्रमंडल व ओलंपिक खेलों में पदक विजेता होने पर खिलाडि़यों को करोड़ों रुपए के नगद ईनाम व सम्मानजनक नौकरी देकर हरियाणा में खेलों के लिए बहुत ही उपयुक्त वातावरण तैयार किया है। उसी का नतीजा है कि आज हरियाणा का हर किशोर व युवा किसी न किसी खेल के मैदान में नजर आता है। टोक्यो ओलंपिक में भी अधिकतर प्रतिनिधित्व व पदक हरियाणा के खिलाडि़यों ने जीते हैं। एथलेटिक्स में पहला स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा भी हरियाणा से है। हिमाचल प्रदेश इस समय शिक्षा के क्षेत्र में देश के अग्रणी राज्यों में गिना जाता है। पिछले कुछ दशकों से हिमाचल प्रदेश के नागरिकों की फिटनेस में बहुत कमी आई है। इसका प्रमुख कारण है विद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों के लिए किसी भी प्रकार के फिटनेस कार्यक्रम का न होना। रट्टे वाली पढ़ाई की होड़ में हम विद्यार्थियों की फिटनेस को ही भूल गए हैं। हिमाचल प्रदेश की अधिकांश आबादी गांव में रहती थी। वहां पर सवेरे-शाम वर्षों पहले विद्यार्थी अपने अभिभावकों के साथ कृषि व अन्य घरेलू कार्यों में सहायता करता था।
विद्यालय आने-जाने के लिए कई किलोमीटर दिन में पैदल चलता था। इसलिए उस समय के विद्यार्थी को किसी भी प्रकार के फिटनेस कार्यक्रम की कोई जरूरत नहीं थी। आज का विद्यार्थी घर के आंगन में बस पर सवार होकर विद्यालय के प्रांगण में उतरता है। पढ़ाई के नाम पर ज्यादा समय खर्च करने के कारण फिटनेस के लिए कोई समय नहीं बचता है। अधिकांश स्कूलों के पास फिटनेस के लिए न तो आधारभूत ढांचा है और न ही कोई कार्यक्रम है। आज का विद्यार्थी फिटनेस व मनोरंजन के नाम पर दूरसंचार माध्यमों का कमरे में बैठ कर खूब दुरुपयोग कर रहा है। ऐसे में विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास की बात मजाक लगती है। आज के विद्यार्थी के लिए विद्यालय या घर पर आधे घंटे के फिटनेस कार्यक्रम की सख्त जरूरत है। इसमें 15 से 20 मिनट धीरे-धीरे दौड़ना तथा विभिन्न कोणों पर शरीर के जोड़ों की विभिन्न क्रियाओं को पूरा करने के बाद शरीर को कूलडाऊन करना होगा। कई मिनटों तक शारीरिक क्रियाओं के करने से रक्त वाहिकाओं में रक्त संचार तेज हो जाता है। उससे हर मसल व अंग को उपयुक्त मात्रा में प्राणवायु मिलने से उसका समुचित विकास होता है। आज के विद्यार्थी को अगर कल का अच्छा नागरिक बनाना है तो हमें विद्यालय व घर पर उसके लिए सही फिटनेस कार्यक्रम देना होगा। जब तक कोरोना का कहर जारी है, तब तक घर या जहां भी स्थान मिले, वहां पर फिटनेस कार्यक्रम चलाना होगा। तभी हम सही अर्थों में अपनी अगली पीढ़ी को पूरी तरह शारीरिक व मानसिक रूप से शिक्षित करने का दम भर सकते हैं।
भूपिंद्र सिंह
राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक
ईमेलः[email protected]
Gulabi Jagat
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