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सोर्स- Jagran
सात राज्यों में पापुलर फ्रंट आफ इंडिया यानी पीएफआइ के ठिकानों पर नए सिरे से छापेमारी और इस दौरान अनेक संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया जाना यही बताता है कि इस संगठन का मकड़जाल कहीं अधिक मजबूत हो गया है। इसके पहले एक दर्जन राज्यों में इस संगठन के ठिकानों पर एनआइए और ईडी के छापों के दौरान सौ से अधिक लोगों को पकड़ा गया था। उस समय अनेक ऐसे आपत्तिजनक दस्तावेज मिले थे, जो यही बताते थे कि यह संगठन किसी आतंकी संगठन की तरह देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त है।
ऐसे संगठन के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई करने के साथ ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए, जिससे भविष्य में ऐसे समूह सिर न उठा सकें। पीएफआइ के बारे में एक लंबे समय से न केवल यह कहा जा रहा है कि यह प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का नया रूप है, बल्कि यह भी कि यह ऐसी गतिविधियों में लिप्त है, जिन्हें आतंकी हरकतों के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता।
हैरानी है कि ऐसे संगीन आरोपों से दो-चार होने के बाद भी उसके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई-और वह भी तब, जब रह-रहकर उसके सदस्यों के बारे में ऐसे तथ्य सामने आते रहे कि वे देश को अस्थिर-अशांत करने के षड्यंत्र में लिप्त हैं। कम से कम अब तो उसके खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की ही जानी चाहिए।
पीएफआइ के लोग न केवल विदेशों से अवैध तरीके से धन एकत्र कर रहे थे, बल्कि उसका इस्तेमाल कट्टरता, आतंक और अलगाव को हवा देने में कर रहे थे। अब तो यह भी स्पष्ट है कि यह संगठन हिंदू विरोधी भावनाओं को भड़काने के साथ सामाजिक ताने-बाने और कानून एवं व्यवस्था के समक्ष गंभीर चुनौतियां भी खड़ी कर रहा था। हिंदूफोबिया यानी हिंदुओं को खतरा बताकर उन्हें एक हौवे के रूप में चित्रित करना कोई नई-अनोखी बात नहीं। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि पीएफआइ इस काम में जुटा हुआ था।
वास्तव में हिंदूफोबिया को राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हवा दी जा रही है। इसका ताजा उदाहरण है इंग्लैंड के शहर लेस्टर में हुई हिंदू विरोधी हिंसा। लेस्टर के बाद बर्मिंघम में भी हिंदू विरोधी उन्माद की झलक मिली। ध्यान रहे कि कनाडा और अमेरिका में भी इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं, जो यह बयान करती हैं कि कई अंतरराष्ट्रीय ताकतें हिंदूफोबिया को बल देने में लगी हुई हैं।
कुछ समय पहले इसके संकेत तब मिले थे, जब ज्ञानवापी मामला सतह पर था। उस समय पाकिस्तान और अन्य देशों में सक्रिय भारत विरोधी ताकतों ने हिंदूफोबिया फैलाने का काम एकजुट होकर किया था। इसमें संदेह नहीं कि पीएफआइ के संबंध ऐसी कई ताकतों से हैं। इस संगठन के खिलाफ जितने और जैसे प्रमाण मिल चुके हैं, उन्हें देखते हुए उस पर पाबंदी लगाने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए।
Rani Sahu
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