सम्पादकीय

एथनाल से पैट्रोल के दाम थमेंगे

Gulabi
7 Jun 2021 3:31 PM GMT
एथनाल से पैट्रोल के दाम थमेंगे
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प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पुणे में 'एथनाल' मिश्रित पैट्रोल पंप का उद्घाटन करके साफ कर दिया है कि आने वाले समय में पैट्रोल व डीजल की बढ़ती कीमतों को थामने का यही एकमात्र रास्ता होगा। इसी मार्ग से भारत पैट्रोलियम पदार्थों के आयात को कम करके घरेलू बाजार में मोटर-वाहन ईंधन के मूल्यों में कमी कर सकता है। फिलहाल भारत 80 प्रतिशत के लगभग कच्चे पैट्रोलियम तेल का आयात करके घरेलू मांग को पूरा करता है। हकीकत यह है कि भारत का जितना कुल वार्षिक बजट होता है उसकी लगभग आधी धनराशि के करीब का भारत को पैट्रोलियम पदार्थों का आयात करना पड़ता है (कोरोना काल को छोड़ कर)। यह स्थिति भयावह इसलिए है कि भारत एक विकास की ओर अग्रसर अर्थव्यवस्था है और इसका वाणिज्यिक निर्यात पिछले कुछ वर्षों से आनुपातिक रूप से नहीं बढ़ रहा है। इसकी विकास दर लगातार कम हो रही है। भारत का विदेश व्यापार घाटा बढ़ने का प्रमुख कारण कच्चे तेल व सोने का भारी मिकदार में आयात होना है। भारत पूरी दुनिया में स्वर्ण धातु का सबसे बड़ा आयातक देश भी है। बेशक सोने का कोई विकल्प नहीं हो सकता मगर पैट्रोलियम ईंधन के विकल्प की खोज में भारत समेत वे अन्य देश भी प्रयासरत रहे हैं, जिनमें इसका उत्पादन बहुत कम होता है। इन्हीं वैज्ञानिक प्रयासों से यह पाया गया कि यदि पैट्रोल में 20 प्रतिशत एथनाल मिलाया जाये तो वाहनों की कार्यक्षमता पर कोई असर नहीं पड़ता और उनकी इंजिन टैक्नोलोजी में ज्यादा सुधार की जरूरत नहीं पड़ती। यही देखते हुए सबसे पहले 1999 से 2004 तक सत्ता में रही वाजपेयी सरकार के दौरान पैट्रोल में एथनाल मिश्रित करके इसे बेचने की योजना पर श्री राम नाइक के पैट्रोलियम मन्त्री रहते काम शुरू किया गया था। इसके बाद मनमोहन सरकार ने भी इस योजना पर काम जारी रखा औऱ पैट्रोल व एथनाल की 'ब्लेंडिग' को गति दी जिससे आयात कम हो सके। शुरू में इसका अनुपात पांच प्रतिशत के लक्ष्य पर रखा गया परन्तु विगत वर्ष मोदी सरकार ने 2022 तक इसे बढ़ा कर दस प्रतिशत कर दिया। अब प्रधानमं​त्री ने घोषणा की है कि 2025 तक पैट्रोल में 20 प्रतिशत एथनाल मिलाया जायेगा। जाहिर है इससे पेट्रोल की कीमतें कम होंगी। डीजल में भी इसका मिश्रण किया जायेगा। मगर इसके लिए दस प्रतिशत मिश्रण 2030 तक होगा।


अब सवाल यह है कि एथनाल बनता कहां है और कैसे बनता है। यह सर्वविदित है कि इसका उत्पादन गन्ने के रस से भी किया जा सकता है। भारत में चीनी मिलों की अपार संख्या है जहां गन्ने का ही उपयोग होता है। इन मिलों में ही सहायक उत्पाद के रूप में इसका उत्पादन होगा। इसके असर से गन्ना उत्पादक किसानों की आय बढ़ने का रास्ता भी खुलेगा। इसके साथ ही अन्य कृषि कचरे से भी एथनाल का उत्पादन किया जा सकता है। संसद की पैट्रोलियम विभाग की स्थायी समिति ने भी सुझाव दिया था कि एथनाल मिश्रण की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाते रहना चाहिए। मगर ये सब दीर्घकालीन उपाय हैं। निश्चित रूप से इससे भारत में पैट्रोल की कीमतों पर असर होगा और भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर होता चला जाएगा। मगर फौरी तौर पर हम क्या करें जिससे आम जनता को लगातार बढ़ती कीमतों से राहत मिले। अब पैट्रोल की कीमतें 100 रुपए प्रति लीटर के आसपास घूम रही हैं। पैट्रोल व डीजल की कीमतों को यदि हम जीएसटी के घेरे में लाते हैं तो राज्यों के आय स्रोत पूरी तरह सूख जायेंगे और उनकी वित्तीय हालत और ज्यादा बिगड़ेगी।

दूसरा रास्ता यही बचता है कि इस पर केन्द्रीय शुल्कों में कमी की जाये, खास कर उत्पाद शुल्क पर। फिलहाल इसकी कीमतें अन्तर्राष्ट्रीय बाजार से बंधी हुई हैं और प्रतिदिन इसके भाव तय होते हैं। एक प्रकार से पैट्रोल मुद्रा में परिवर्तित हो चुका है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा डालर से इसके भाव बंधे होते हैं और इसमें उतार-चढ़ाव आने का सीधा असर इसके दामों पर पड़ता है। ठीक सोने की भी यही स्थिति है। सोने के रोजाना भाव भारत के सर्राफा व्यापारी अन्तर्राष्ट्रीय भाव देख कर खुद ही तय कर लेते हैं। यही स्थिति अब पैट्रोलियम उत्पादक कम्पनियों की है परन्तु विकास की ओर अग्रसर अर्थव्यवस्था में यह प्रणाली अन्य बाजार मूलक तत्वों को भी प्रभावित करती है, खास तौर पर उपभोक्ता मूलक सामग्री को इसमें सेवा क्षेत्र व कृषि क्षेत्र भी शामिल होता है। पैट्रोल का उपयोग मूलतः उत्पादशील गतिविधियों में होता है जबकि सोने का उपयोग निठल्ले निवेश में होता है। इस अंतर को भी हमें समझना पड़ेगा। अतः पैट्रोलियम पदार्थों पर उत्पाद शुल्क को तार्किक बनाने की मांग अक्सर उठती रहती है। कुछ दक्षिण एशियाई देशों ने पैट्रोल व डीजल की कीमतों का मूल्य पैमाना (प्राइस बैंड) तय किया हुआ है जिसके अनुरूप वे उत्पाद शुल्क की दर में घट-बढ़ करते रहते हैं उससे अर्थव्यवस्था के मानकों पर असर नहीं पड़ पाता। इस बारे में हमें गंभीरतापूर्वक अध्ययन करना चाहिए। इसका अर्थ होता है कि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत घटने-बढ़ने का असर उपभोक्ताओं पर नहीं पड़ेगा। सरकार यह देखेगी कि यदि तेल की कीमत गिरती है या बढ़ती है तो वह उत्पाद शुल्क में तद्नुरूप परिवर्तन करके उपभोक्ताओं को प्राइस बैंड के तहत न्यूनतम व अधिकतम दाम पर पैट्रोल सुलभ करायेगी और इस क्रम में यदि तेल कम्पनियों को घाटा होता है तो वह उसकी भरपाई अगले वर्ष प्राइस बैंड तय करके करेगी। हमारे देश में विशेषज्ञों की कमी नहीं है। हर मु​सीबत का कोई न कोई रास्ता होता है।

आदित्य नारायण चोपड़ा


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