सम्पादकीय

जीएसटी में पेट्रोल व डीजल?

Subhi
12 Nov 2021 1:55 AM GMT
जीएसटी में पेट्रोल व डीजल?
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केन्द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मन्त्री श्री नितिन गडकरी का यह मत कि पेट्रोल व डीजल को माल व सेवा कर...

आदित्य नारायण चोपड़ा: केन्द्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मन्त्री श्री नितिन गडकरी का यह मत कि पेट्रोल व डीजल को माल व सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाने से उपभोक्ताओं के लिए दोनों उत्पाद सस्ते होंगे और केन्द्र व राज्यों की राजस्व वसूली बढे़गी, पूरी तरह तार्किक है मगर सवाल यह है कि इसका फैसला कौन करेगा? जाहिर है कि इस बारे में फैसला जीएसटी परिषद ही ले सकती है जिसकी अध्यक्ष केन्द्रीय वित्तमन्त्री होती है और राज्यों के वित्तमन्त्री जिसके सदस्य होते हैं। जीएसटी प्रणाली लागू होने के बाद राज्यों के आय स्रोत नाम मात्र के रह गये हैं क्योंकि उन्होंने अपने सभी वित्तीय अधिकार परिषद की मार्फत केन्द्र को दे दिये हैं। स्वतन्त्र भारत में इस व्यवस्था को आजादी के बाद का सबसे बड़ा शुल्क संशोधन कानून इसीलिए बताया गया था क्योंकि वित्तीय स्रोतों का अधिकार क्षेत्र संसद से बाहर जीएसटी परिषद के पास चला गया था। इसी वजह से संसद में इस बारे में संविधान संशोधन करा कर यह प्रणाली चालू की गई थी। जीएसटी एक मायने में पूरे भारत में राजस्व उगाही की एेसी केन्द्रीकृत प्रणाली है जिसके तहत भारत के हर राज्य में किसी भी वस्तु के एक समान दाम रहते हैं और उत्पादन करने वाले राज्य व खपत करने वाले राज्य के बीच का अंतर समाप्त हो जाता है। पेट्रोल या डीजल के उत्पादन में भारत का हिस्सा बहुत ही कम है और 80 प्रतिशत से ऊपर इसका आयात करके ही मांग की आपूर्ति होती है। यह मांग हर साल बढ़ती जा रही है जिससे आयात भी उसी अनुपात में बढ़ रहा है। इसे देखते हुए इस पर लगाये गये केन्द्रीय शुल्क व राज्य शुल्क की उगाही में भी यथानुरूप बढ़ोेत्तरी हो रही है। अतः यह स्पष्ट है कि केन्द्र व राज्य सरकारें बिना कुछ करे-धरे ही पेट्रोल व डीजल को राजस्व उगाही का सरल साधन मानती हैं। यदि ये दोनों वस्तुएं जीएसटी के दायरे में आ जाती हैं तो इन पर अधिकतम शुल्क की दरें एक बार तय हो जाने पर प्राप्त राजस्व का केन्द्र व राज्य आपस में नियमानुसार बंटवारा करेंगे। एेसा करने से प्रति वर्ष पेट्रोल व डीजल की मांग बढ़ने से राजस्व उगाही में वृद्धि होगी। इसका मतलब यह हुआ कि कच्चे तेल की अन्तर्राष्ट्रीय कीमतों के उतार- चढ़ाव का समायोजन जीएसटी के तहत लागू शुल्क दरों में होता रहेगा। कच्चे तेल के सस्ता या महंगा होने से जो प्रभाव राजस्व उगाही पर पड़ेगा वह केन्द्र व राज्यों को एक समान रूप से वहन करना होगा। मगर कच्चे तेल का भाव अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ने से घरेलू बाजार में इसके भाव बढ़ने से नहीं रोका जा सकेगा। जिसको देखते हुए राजस्व उगाही में भी वृद्धि होगी। दूसरा मसला यह है कि राज्य सरकारें इस व्यवस्था के लिए राजी होती हैं या नहीं ? अधिसंख्य राज्य सरकारें यह व्यवस्था नहीं चाहती हैं क्योंकि एेसा करने से उनकी सीमित आर्थिक शक्ति और कम हो जायेगी और वे पूर्णतः केन्द्र से अपने हिस्से के आवंटन पर आश्रित हो जायेंगी। राज्यों के पास इसके अलावा आय साधन का दूसरा स्रोत मदिरा या नशीले पदार्थ जैसे शराब आदि बचते हैं जिन पर वे अपनी मर्जी के मुताबिक शुल्क लगा सकते हैं। यह भी स्पष्ट है कि राज्यों को अपना खर्चा चलाने के लिए जितनी धनराशि की जरूरत समयानुसार पड़ती है उसकी भरपाई केवल जीएसटी के हिस्से से ही मोटे तौर पर होती है। पेट्रोल-डीजल व मदिरा पर लगाये गये शुल्क की वसूली करके राज्य सरकारें आकस्मिक खर्चों को भी पूरा करती हैं। दूसरे उन्हें केन्द्र से अपना हिस्सा प्राप्त करने के लिए बार-बार मनुहारें करनी पड़ती हैं। एेसी सूरत में फौरी खर्चे चलाने के लिए पेट्रोल व डीजल अथवा मदिरा शुल्क उनकी मदद में खड़े हो जाते हैं। यह स्थि​ित तब और खराब हो जाती है जब किसी राज्य में सूखा या बाढ़ आ जाये अथवा उसे किसी अन्य आपदा का सामना करना पड़े। केन्द्र से उसे इस मद में तब तक मदद नहीं मिल सकती जब तक वह राष्ट्रीय आपदा घोषित न हो जाये। दूसरे अर्थों में राज्य सरकारों की वित्तीय नकेल केन्द्र के हाथ में होने से प्रादेशिक सरकारें कभी-कभी स्वयं को लाचार भी समझने लगती हैं जबकि संविधान के तहत राज्य सरकारों के अधिकार और कर्त्तव्य निर्दिष्ट हैं। इसे देखते हुए अधिसंख्य राज्य सरकारें राजस्व उगाही के वे सरल साधन अपने हाथ में रखना चाहती हैं जिससे उनकी आकस्मिक अ​ार्थिक आवश्यकताओं की आपूर्ति उनके दम पर ही होती रहे। संपादकीय :आम आदमी का खास सम्मान!चारधाम सड़क व राष्ट्रीय सुरक्षानेपाल सेना प्रमुख की भारत यात्राऐसी भी बहुएं होती हैअंसल बिल्डरों को कैदअफगानिस्तान पर सुरक्षा बैठकभारत की राजनीतिक प्रशासनिक व्यवस्था बहुदलीय है और हर राज्य में अलग राजनीतिक पार्टी की सरकार हो सकती है मगर जीएसटी लागू होने से राजनीतिक विभिन्नता की वजह से मतभेद उभरने पर विराम लगा है और केन्द्र की जिम्मेदारी भी इस प्रकार बढ़ी है कि वह हर राजनीतिक दल की प्रादेशिक सरकार को एक ही नजर से देखे। इसी वजह से जीएसटी परिषद मंे दो-तिहाई वोट राज्य सरकारों को दिये गये और एक-तिहाई वोट केन्द्र सरकार को दिये गये और नियम बनाया गया कि हर फैसला सर्वसम्मति से ही हो। इसे देखते हुए पेट्रोल व डीजल यदि जीएसटी के दायरे में लाने का फैसला परिषद द्वारा किया जाता है तो वह पेट्रोल व डीजल के दामों पर भी आंशिक लगाम लगा सकेगा और इस मुद्दे पर होने वाली राजनीति भी बन्द हो सकेगी।

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