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- दमन की घातक अनदेखी;...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पाकिस्तान में हिंदू होना अभिशाप है। एक यंत्रणा है और सामाजिक अपराध भी। हिंदू और सभी गैर-मुस्लिम पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हैं, लेकिन उनका उत्पीड़न लगातार जारी है। पाकिस्तान की संसदीय समिति ने हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार और जबरदस्ती के धर्मांतरण पर सनसनीखेज रिपोर्ट दी है। सीनेटर अनवार उल हक की अध्यक्षता में गठित समिति ने स्वीकार किया है कि पाकिस्तानी सरकार धार्मिक अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने में पूरी तरह विफल रही है। समिति ने इसकी जांच के लिए सिंध प्रांत के कई क्षेत्रों का दौरा भी किया है। हक ने जबरन धर्मांतरण के आरोप को सही पाया है। इसमें बहला-फुसला कर कराए गए धर्मांतरण भी हैं। समिति ने सुझाव भी दिया है कि हिंदू लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन रोका जाना चाहिए। संसदीय समिति की रिपोर्ट गंभीर है। यह अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के लिए भी गंभीर चुनौती है। पाकिस्तान में हिंदू उत्पीड़ित किए जा रहे हैं। उनकी संख्या भी लगातार घट रही है। वर्ष 1941 की जनगणना के अनुसार अविभाजित भारत के पाकिस्तान वाले क्षेत्र में 14 प्रतिशत हिंदू थे और बांग्लादेशी क्षेत्र में 28 प्रतिशत। अब पाकिस्तान में हिंदू आबादी लगभग 1.5 प्रतिशत ही रह गई है। इस आधार पर अगले 65-70 वर्ष में पाकिस्तान में नाम के ही हिंदू बचेंगे।
पाकिस्तान की सेना, पुलिस और समाज का दृष्टिकोण हिंदू विरोधी है
पाकिस्तान स्वाभाविक राष्ट्र नहीं है और न ही संविधान शासित राज्य। उसकी सेना, पुलिस और समाज का दृष्टिकोण हिंदू विरोधी हैं। हिंदुओं और भारतवासियों से घृणा करना उनकी प्रकृति है। वहां ईशनिंदा कानून है। अल्लाह और पैगंबर के विरुद्ध टिप्पणी का अर्थ जीवन से हाथ धोना है। पुलिस ऐसे फर्जी आरोप लगाकर गैर-मुस्लिमों का उत्पीड़न करती है। अल्पसंख्यक अपनी संस्कृति, आस्था और विश्वास के अनुसार जीवनयापन नहीं कर सकते। लड़कियां उठा ली जाती हैं। उनका धर्मांतरण होता है। घर के लोगों की कोई नहीं सुनता। लड़कियों से जबरिया सहमति के बयान दिलाए जाते हैं। ये मामले पाकिस्तानी जनजीवन का हिस्सा हैं। हिंदू परिवार और लड़कियां मुख्य निशाने पर हैं।
संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार चार्टर पाक को मान्य नहीं
गैर-इस्लामी विश्वास के लिए पाकिस्तान में कोई जगह नहीं। संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार चार्टर पाक को मान्य नहीं है। कन्याओं के अपहर्ता और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़कों का एलान स्पष्ट है कि 'इस्लाम कुबूल करो या मरो।' पाकिस्तान में इन दो में से किसी एक विकल्प की ही अनिवार्यता है। इतिहासवेत्ता सर जदुनाथ सरकार ने 'हिस्ट्री ऑफ औरंगजेब-खंड तीन' में लिखा है, 'एक गैर-मुस्लिम इस्लामी राज्य का नागरिक नहीं हो सकता। वह इस्लामी राज्य में एक इकरारनामे के तहत रहता है। उसे राजनीतिक-सामाजिक अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है।' वर्ष 2001 में तालिबान ने भी ऐसी घोषणाएं की थीं।
तालिबान ने धमकी दी थी कि हिंदू नया मंदिर नहीं बना सकते, पुराने मंदिर की मरम्मत नहीं कर सकते
तालिबान ने धमकी दी थी कि हिंदू विशेष प्रकार की पगड़ी पहनकर ही भ्रमण कर सकते हैं। वे नया मंदिर नहीं बना सकते। पुराने मंदिर की मरम्मत नहीं कर सकते। कई प्रतिष्ठित इस्लामी विद्वानों ने भी 'इस्लाम कुबूल करो या मरो' के सिद्धांत को सही ठहराया था। प्रख्यात शरीय व्याख्याता अबु हनीफा ने बीच का रास्ता निकाला था कि दोनों शर्तों में किसी एक को न मानने पर गैर-मुस्लिम नागरिक 'जिम्मी' की तरह रह सकते हैं। जिम्मी इस्लामी देशों के गैर मुसलमानों की हैसियत बताने वाली संज्ञा है। जिम्मी या गैर मुस्लिम को इस्लामी राज्य का संरक्षण नहीं मिलता है। पाकिस्तानी अल्पसंख्यक जिम्मी से भी गए-गुजरे हैं।
पाक: प्रतिवर्ष 1,000 महिलाओं का धर्मांतरण, प्रतिवर्ष 5,000 हिंदू पाक छोड़ने को मजबूर किए जा रहे
अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के लिए पाकिस्तान की स्थिति गंभीर रूप में विचारणीय है। दक्षिण एशिया मानवाधिकार समूह के अनुसार वहां प्रतिवर्ष 1,000 महिलाओं का धर्मांतरण हो रहा है। पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के अनुसार प्रतिवर्ष 5,000 हिंदू पाकिस्तान छोड़ने के लिए मजबूर किए जा रहे हैं। उत्पीड़न और धर्मांतरण ईसाइयों का भी हो रहा है, परंतु उनके लिए अमेरिकी और यूरोपीय संगठन आवाज उठाते हैं। यह अच्छी बात है, लेकिन संसदीय समिति की भयावह रिपोर्ट के बावजूद भारत के कथित सेक्युलर प्रगतिशील हिंदू उत्पीड़न पर मौन हैं। हिंदू कन्याओं की चीत्कार और दुख उन्हें विचलित नहीं करते। वे रोहिंग्या मुसलमानों पर विलाप करते हैं, लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश के उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को राहत देने के लिए बने नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए का विरोध करते हैं।
जहां हिंदू सभ्यता का विकास हुआ, उसी सिंधु क्षेत्र में हिंदू उत्पीड़न जारी
भारत की सभ्यता-संस्कृति का विकास सिंधु घाटी में हुआ था। ऋग्वेद में सिंधु नदी और क्षेत्र के गीत हैं। इसी का विकास हड़प्पा सभ्यता है। यह दुखद है कि जहां हिंदू सभ्यता का विकास हुआ, उसी सिंधु क्षेत्र में हिंदू उत्पीड़न जारी है। यहां हिंदुओं की समाप्ति की आशंका गहरा रही है। वहीं भारत में अल्पसंख्यकों की चर्चा बहुधा चलती है। यहां अल्पसंख्यक राष्ट्रप्रदत्त सभी अधिकारों का आनंद लेते हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कई प्रावधान किए। भारतीय अल्पसंख्यक सभी क्षेत्रों में बहुसंख्यकों की भांति अपने अधिकारों का उपभोग करते हैं। तब भी यहां के छद्म सेक्युलर अल्पसंख्यक उत्पीड़न के नारे लगाया करते हैं। उन्हें पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का भयावह उत्पीड़न नहीं दिखाई पड़ता।
अंतरराष्ट्रीय संविदा और संयुक्त राष्ट्र के संकल्प पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों पर क्यों लागू नहीं
अल्पसंख्यकों के हित में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिविल और राजनीतिक अधिकार संविदा अंगीकृत हुई थी। इसके अनुसार, 'जिन देशों में जातीय, धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक हैं, उन्हें अपने समूह के सदस्यों के साथ मिलकर अपनी संस्कृति का आनंद लेने, अपने धर्म को मानने और उस पर आचरण करने या अपनी भाषा का प्रयोग करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा।' अल्पसंख्यकों के प्रति विभेद का निवारण और उनके संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र के उप-आयोग का संकल्प (1950) भी पठनीय है, 'अल्पसंख्यकों की रक्षोपाय का उद्देश्य यही था कि जो बहुसंख्यक वर्ग लोकतांत्रिक व्यवस्था के जरिये शासन कर रहा है, वह अल्पसंख्यकों के साथ भेद न करे।' मूलभूत प्रश्न है कि, 'अंतरराष्ट्रीय संविदा और संयुक्त राष्ट्र के ये संकल्प, पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों पर क्यों लागू नहीं हैं?' इस उत्पीड़न पर भारत के कथित प्रगतिशील अपनी राय क्यों नहीं व्यक्त करते।
पाक में हिंदू सामान्य नागरिक सुविधाओं से वंचित पर वैश्विक समुदाय का मौन दुखदायी
पाकिस्तानी हिंदू, सिख या ईसाई सामान्य नागरिक सुविधाओं से भी क्यों वंचित हैं। उनके साथ जोर-जबरदस्ती जारी है। वैश्विक समुदाय का मौन दुखदायी है। सीएए इसी व्यथा का उपचार है। क्या भारत के सभी दल, चिंतक और मानवाधिकारवादी पाकिस्तानी अल्पसंख्यकों की व्यथा पर एकजुट होकर नहीं बोल सकते? अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को भी पाक में जारी हिंदू उत्पीड़न, कन्या अपहरण और बलात धर्मांतरण पर मुखर होना चाहिए। यह अंतरराष्ट्रीय कर्तव्य है।
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