सम्पादकीय

प्रदर्शन के मायने

Subhi
30 Nov 2022 5:46 AM GMT
प्रदर्शन के मायने
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रविवार को चीन में कोरोना के चालीस हजार मामले दर्ज हुए। लगातार पांचवें दिन बेजिंग में करीब चार हजार नए मामले सामने आए। इसे देखते हुए वहां की सरकार ने अपनी ‘कोरोना शून्य नीति’ के तहत पूर्णबंदी लागू कर दी है। मगर लोग इससे खुश नहीं हैं।

Written by जनसत्ता; रविवार को चीन में कोरोना के चालीस हजार मामले दर्ज हुए। लगातार पांचवें दिन बेजिंग में करीब चार हजार नए मामले सामने आए। इसे देखते हुए वहां की सरकार ने अपनी 'कोरोना शून्य नीति' के तहत पूर्णबंदी लागू कर दी है। मगर लोग इससे खुश नहीं हैं।

पूर्णबंदी के दौरान शंघाई की एक रिहाइशी इमारत में आग लग गई, जिसमें कई लोग झुलस कर मर गए। उसके बाद लोगों का आक्रोश फूटा और वे सरकार के खिलाफ नारे लगाते हुए सड़कों पर उतर आए। हालांकि पुलिस प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने की कोशिश कर रही है, मगर विरोध प्रदर्शन बढ़ता ही जा रहा है। हालांकि चीन में कोरोना के नए उभार से सबक लेने की जरूरत है कि इसका विषाणु समाप्त नहीं हुआ है और इससे बचने के तमाम एहतियाती उपायों का पालन जरूरी है। सरकारों को भी इसे लेकर सतर्क रहने की जरूरत है।

मगर चीन में उभरे ताजा आक्रोश के पीछे कोरोना की पूर्णबंदी महज एक बहाना है। दरअसल, लोग अब सरकार के कामकाज के तरीके से परेशान हो चुके हैं। उन्हें लगता है कि उनकी आजादी छीनी जा रही है। यही कारण है कि चीन में पहली बार ऐसा हो रहा है कि वहां के लोग सीधे राष्ट्रपति से इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।

चीन की अर्थव्यवस्था कोई अच्छी स्थिति में नहीं है। इसके बावजूद वहां पूर्णबंदी लागू किए जाने के बाद स्थिति और खराब होने की आशंका है। खराब अर्थव्यवस्था में लोगों का जीवन मुश्किलों से भरता जाएगा। इसके अलावा सबसे अधिक रोष राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीतियों और उनके कामकाज को लेकर है। वे तीसरी बार सत्ता में आए हैं और लगभग सारी शक्तियां उन्होंने अपने हाथ में केंद्रित कर ली हैं।

इस तरह लोकतांत्रिक प्रक्रिया बाधित महसूस की जाने लगी है। नागरिकों के अधिकार सिकुड़ते गए हैं और वहां का कम्युनिस्ट शासन किसी राजशाही की तरह चलाया जाता नजर आने लगा है। वहां के लोग प्रदर्शन करते हुए नारे भी लगा रहे हैं कि हमें शासक चाहिए, बादशाह नहीं। जब सरकारें नागरिक स्वतंत्रता को बाधित करती हैं, तभी इस तरह गुस्सा फूटता है, वरना कोरोना से निपटने में वहां के लोगों को सहयोग करने में भला क्या गुरेज हो सकता था!

चीन में जिस तरह से अत्याधुनिक तकनीक के जरिए निगरानी तंत्र मजबूत किया गया है, उसमें किसी भी व्यक्ति की गतिविधियों पर हर वक्त नजर रखी जा सकती है। यह जानते हुए भी लोग सड़कों पर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, तो जाहिर है वे किसी भी प्रकार की यातना सहने को तैयार हैं।

ऐसा नहीं कि चीन में इससे पहले व्यवस्था के खिलाफ प्रदर्शन नहीं हुए, मगर यह प्रदर्शन इसलिए उन सबसे भिन्न है कि इसमें सीधा निशाना राष्ट्रपति पर साधा जा रहा है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में नागरिक अधिकारों को बंधक बना कर शासन चलाने की कोशिश करने पर इसी तरह गृहयुद्ध की स्थिति पैदा होती है। चीन के नागरिकों का आरोप है कि उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तक छीन ली गई है।

इसलिए वे प्रदर्शन के दौरान कोरा कागज लेकर उतर रहे हैं। अब पूरी दुनिया की नजर इस बात पर है कि शी जिनपिंग अपनी नीतियों को लेकर लचीला रुख अपनाते हैं या नहीं। अगर वे इन प्रदर्शनों को दमन के जोर पर दबाने का प्रयास करेंगे, तो इसके और भयावह रूप लेने की आशंका जताई जा रही है।


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