सम्पादकीय

संवैधानिक पदों पर बैठे लोग राजनीति से ऊपर उठ कर काम करें

Subhi
19 July 2023 4:26 AM GMT
संवैधानिक पदों पर बैठे लोग राजनीति से ऊपर उठ कर काम करें
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Written by जनसत्ता: कोई न कोई मुद्दा लेकर दोनों अक्सर उलझे रहते हैं। सरकार कोई फैसला करती है और उपराज्यपाल उस पर रोक लगा देते हैं। उपराज्यपाल खुद सरकार के हिस्से का फैसला करने लगते हैं और दिल्ली सरकार उसे राजनीतिक रंग देकर उछालना शुरू कर देती है। आए दिन दोनों के झगड़े अदालत में खड़े मिलते हैं।

ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय ने आजिज आकर कहा है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग राजनीतिक कलह से ऊपर उठ कर काम करें। मगर इस नसीहत पर मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल कितनी गंभीरता दिखाएंगे, कहना मुश्किल है। ताजा विवाद दिल्ली विद्युत नियामक आयोग यानी डीईआरसी प्रमुख की नियुक्ति को लेकर पैदा हुआ है।

डीईआरसी प्रमुख का चयन दिल्ली सरकार ने कर दिया था, मगर उपराज्यपाल ने उस पर रोक लगा दी और केंद्र सरकार ने इस पद पर अपनी पसंद के व्यक्ति का चुनाव कर लिया। इसे लेकर दिल्ली सरकार अदालत में गई थी, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि दोनों पक्ष आपसी सलाह से इस मामले का निपटारा करें। मगर इसकी संभावना कम ही नजर आती है। दरअसल, केंद्र सरकार नहीं चाहती कि दिल्ली सरकार दो सौ यूनिट बिजली मुफ्त दे। इसलिए वह अपनी पसंद के व्यक्ति को इस पद की जिम्मेदारी सौंपना चाहती है।

डीईआरसी का गठन इसलिए किया गया था कि दिल्ली में एक से अधिक बिजली कंपनियां कारोबार कर सकें और उनमें प्रतिस्पर्धा बनी रहे, जिससे सस्ती दरों पर लोगों को बिजली मिल सके। बिजली दरों के निर्धारण और कंपनियों की गतिविधियों पर नजर रखने की जिम्मेदारी डीईआरसी को सौंपी गई थी। इसमें केंद्र का हस्तक्षेप आवश्यक नहीं था।

मगर पिछले दिनों केंद्र सरकार ने अध्यादेश जारी करके दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाली नियुक्तियों आदि से संबंधित अधिकार अपने हाथों में ले लिया था। उससे संबंधित याचिका पर सुनवाई अलग से चल रही है और सर्वोच्च न्यायालय ने उस मामले को संविधान पीठ के पास भेजने का संकेत दिया है।

हालांकि दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच लंबे समय से चली आ रही तनातनी को सुलझाने के लिए भी मामला संविधान पीठ के पास गया था और उसने फैसला दिया था कि नियुक्तियों और सरकारी कामकाज संबंधी फैसले लेने का अधिकार चुनी हुई सरकार के पास है और उपराज्यपाल बिना सरकार की सलाह के कोई फैसला नहीं कर सकते। उसी के बाद केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिए दिल्ली सरकार के वे अधिकार हस्तगत कर लिए।

जबसे दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार आई है, लगातार उपराज्यपाल के साथ उसकी तकरार चलती रही है। जितने भी उपराज्यपाल आए, सभी ने चुनी हुई सरकार के काम में अड़ंगा डालने का प्रयास किया। वर्तमान उपराज्यपाल के समय यह कुछ अधिक देखने को मिल रहा है। पिछले दिनों दिल्ली सरकार द्वारा सलाहकार के रूप में नियुक्त सभी संविदा कर्मियों को उपराज्यपाल ने नौकरी से निकाल दिया।

इस तरह छोटे-छोटे मामलों में भी उपराज्यपाल हस्तक्षेप करते देखे जाते हैं। इस पर आम आदमी पार्टी के नेता कई बार उनके खिलाफ कड़वे शब्दों का उपयोग करने से भी परहेज नहीं करते। इस तरह बेवजह अड़ंगे लगाने और छोटे-छोटे मामलों को राजनीतिक रंग देकर सड़कों पर उतरने से आखिरकार दिल्ली सरकार के कामकाज पर असर पड़ता है। इसका खमियाजा दिल्ली के लोगों को भुगतना पड़ता है। जिन वादों के साथ चुन कर सरकार आई थी, वे कब और कैसे पूरे होंगे, इसकी चिंता किसी को नहीं है।



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