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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। समाज की गुणवत्ता नागरिकों के कर्तव्य पालन का परिणाम होती है। आधुनिक भारतीय समाज पूर्वजों के सचेत कर्तव्य पालन का परिणाम है। समाज का नियमन समाज द्वारा ही होता है। राज व्यवस्था का जन्म बाद में हुआ है। महाभारत में अति प्राचीन समाज का उल्लेख है कि 'तब न राजा था न राजदंड था। सभी नागरिक स्वयं सामाजिक नियमों का पालन करते थे।' फिर समाज में अराजकता बढ़ी। राज व्यवस्था का जन्म हुआ। प्राचीन भारत में विधि और नियम के उल्लंघन पर दंड का प्रविधान था। अब भी है, लेकिन कर्तव्य पालन ही आदर्श समाज की धुरी है। आदर्श समाज के नागरिक कर्तव्य पालन करते हैं। कर्तव्य पालन से समाज और राज प्रदत्त अधिकार भी मिलते हैं। संप्रति भारतीय समाज के बड़े वर्ग द्वारा कर्तव्य पालन का मखौल उड़ाया जा रहा है। कोरोना वैश्विक महामारी है। इसका अभी तक कोई उपचार नहीं खोजा जा सका है। लोग मर रहे हैं तो भी यहां मास्क और शारीरिक दूरी के नियम की अवहेलना हो रही है। शुरुआती दौर में प्रधानमंत्री द्वारा लॉकडाउन की घोषणा के समय अल्पकालीन संयम दिखा। उसके बाद से इस नागरिक कर्तव्य की अवहेलना हो रही है। गर्मियों में लू चलती है। लोग देह ढक लेते हैं। इसी तरह शीत ऋतु में जरूरी वस्त्र भी पहन लेते हैं, लेकिन प्राणलेवा कोरोना के प्रोटोकाल का मजाक उड़ाया जा रहा है।
कोरोना प्रोटोकाल का पालन कराने के लिए सरकारें कठोर निर्णय ले रही हैं
सरकारें परेशान हैं। कई राज्य कोरोना प्रोटोकाल का पालन कराने के लिए कठोर निर्णय ले रहे हैं, लेकिन इसका प्रभाव नहीं दिखाई पड़ता। भारतीय समाज प्राचीनकाल से ही विधि और मर्यादा के अनुशासन में रहा है, मगर आश्चर्य है प्राणहंता चुनौतियों के सामने हम साधारण संयम भी बरतने को तैयार नहीं।
दिल्ली सहित अनेक राज्यों में वायु प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक
पर्यावरण प्रदूषण की स्थिति भी भयावह है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित अनेक राज्यों में वायु प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक है। दीपावली के अवसर पर पटाखों पर रोक के निर्देश जारी हुए थे। यह सब हमारे ही स्वास्थ्य की दृष्टि से किया गया था, लेकिन इस निर्देश की भी अवहेलना हुई। हरियाणा और पंजाब राज्यों में किसानों द्वारा खेतों में ही पराली जलाने का काम होता रहा है। धीरे-धीरे यही लत पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बुंदेलखंड और अवध क्षेत्रों तक फैल गई है। सरकारें चिंतित हैं। पराली जलाने वाले नागरिक कर्तव्य नहीं निभाते।
लोगों में कर्तव्य पालन की प्रवृत्ति घटती जा रही
हमारे संविधान में प्रत्येक नागरिक को मूल अधिकारों की प्रतिभूति है। साथ ही अनुच्छेद 51 (क) में मूल कर्तव्य भी हैं कि 'प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें। वन, झील, नदी और वन्य जीवों की भी रक्षा करें।' इस अनुच्छेद में अनेक कर्तव्य हैं, परंतु उनकी निरंतर अवहेलना है। सभ्य समाज के नागरिक संस्कृति, संविधान और विधि का स्वत: पालन करते हैं। दुनिया के अन्य समाजों की तरह भारतीय समाज भी आदिम मानव सभ्यता से आधुनिक सभ्यता तक आया है। समाज का सतत विकास हुआ है। अतीत में वैदिक समाज का इतिहास है। इस समाज में समता थी। समाज के सदस्यों में कर्तव्य पालन की होड़ थी। वैदिक पूर्वजों ने दायित्व बोध वाले नागरिक गढ़े थे। अथर्ववेद में सामाजिक विकास के सूत्र हैं। बताते हैं कि पहले परिवार संस्था का विकास हुआ। परिवार नाम की संस्था में सभी सदस्यों के कर्तव्य निश्चित थे। अधिकार की कोई आवश्यकता नहीं थी। माता-पिता का कर्तव्य संतति का पालन-पोषण था। इस तरह पुत्र को उन्नति करने का अधिकार स्वत: मिलता था। यह सामाजिक विकास का प्रथम चरण था। आगे कहते हैं कि 'विमर्श के लिए लोगों का एकत्रीकरण होने लगा। इससे सभा का विकास हुआ। इससे नागरिक कर्तव्य निभाने और दूसरों को दायित्व बोध के लिए प्रेरित करने वाले लोग सभा के योग्य बने। वही सभ्य कहलाए।' सभ्यता का मूल तत्व है कर्तव्य पालन, लेकिन कर्तव्य पालन की यह प्रवृत्ति लगातार घटती गई।
हम भारत के लोग अपने और समाज के स्वास्थ्य के लिए कर्तव्यों का पालन नहीं करते
ब्रिटिश सत्ता के साथ ब्रिटिश शिक्षा आई। हम पर ब्रिटिश सभ्यता का प्रभाव पड़ा। ब्रिटिश नागरिक अपने देश में कर्तव्य पालन के प्रति सजग थे और हैं, पर हम भारतीय उनसे अधिकार ही सीख पाए। हमने कर्तव्य प्रधान अपनी परंपरा और संस्कृति की उपेक्षा की। सभी प्राकृतिक शक्तियां कर्तव्य पालन करती हैं। सूर्य, पृथ्वी और समुद्र भी नियमों में सक्रिय हैं। जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमें निजी और सामूहिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। भारतीय समाज का बड़ा वर्ग विधि पालन करता है, पर एक ढीठ वर्ग द्वारा नागरिक कर्तव्यों की अवहेलना हो रही है। अभी देश ने सूर्य की प्रार्थना का छठ पर्व मनाया। कोरोना के दृष्टिगत शारीरिक दूरी व मास्क लगाने के निर्देश दोहराए गए, पर लोग अपनी ही राह चले। मूलभूत प्रश्न है कि कोरोना जैसी प्राणहंता महामारी व जानलेवा प्रदूषण देखते हुए भी हम भारत के लोग अपने और समाज के स्वास्थ्य के लिए नागरिक कर्तव्यों का पालन क्यों नहीं करते? संस्कृति पर्व और उत्सव हमारे चित्त को गैर-जिम्मेदार क्यों बनाते हैं?
कर्तव्य पालन में ही समाज की गुणवत्ता है
सुख, स्वास्थ्य और आनंद सभी मनुष्यों की अभिलाषा है। दुनिया के सभी समाजों ने सबको सुखी बनाने के लिए अपने ऊपर अनेक कर्तव्य अधिरोपित किए हैं। सामाजिक समझौता सिद्धांत के प्रवर्तक हॉब्स ने सभी मनुष्यों के मध्य एक अनुबंध का उल्लेख किया है कि 'हम अपने ऊपर शासन करने के अधिकार इस सभा-समाज को देते हैं। यदि आप सब भी अपने ऊपर शासन करने के अधिकार इस सभा को स्थानांतरित करें।' यह सभ्यता के विकास की प्राचीन मंजिल है। आत्मानुशासन में ही नागरिक कर्तव्य पूरे होते हैं और कर्तव्य पालन में ही समाज की गुणवत्ता है।
हम भारत के लोग अपने और समाज के स्वास्थ्य, समृद्धि के लिए नागरिक कर्तव्यों का पालन नहीं करते
हम भारत के लोग एक प्राचीन समाज, संस्कृति और राष्ट्र हैं। हमारी सभ्यता और संस्कृति सदियों से निरंतर गतिशील-विकासशील है। दुनिया 21वीं सदी में है। दर्शन और विज्ञान ने इसे और ज्ञानवान और जनोपयोगी बनाया है। हम अपनी संस्कृति पर गर्व करते हैं। करना चाहिए भी, पर हम भारत के लोग अपने और समाज के स्वास्थ्य, रिद्धि, सिद्धि, समृद्धि और लोकमंगल के लिए नागरिक कर्तव्यों का पालन क्यों नहीं करते? यह प्रश्न भारत के सभी चिंतकों के लिए चुनौती है। समाजशास्त्रियों व मनोविज्ञानियों के लिए शोध का विषय है।
कर्तव्यपालन का मखौल बनाने का आचरण सभ्य नहीं
सरकारें अपने संवैधानिक दायित्व निर्वहन कर रही हैं। वे विधायिका के प्रति जवाबदेह हैं, पर नागरिक कर्तव्य न पालन करने के लिए किसी के समक्ष जवाबदेह नहीं हैं। कर्तव्यपालन का मखौल बनाने का आचरण सभ्य नहीं है। क्या हम स्वयं से ही अपनी आत्मघाती स्वच्छंदता संबंधी औचित्य का प्रश्न पूछ सकते हैं। यदि हां तो यह स्वयं के लिए और लोकमंगल के लिए भी उपयोगी होगा।