सम्पादकीय

जिंदगी की मझधार में डूबते-उतराते लोग

Rani Sahu
7 Sep 2022 6:54 PM GMT
जिंदगी की मझधार में डूबते-उतराते लोग
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दुश्मन आपके दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है लेकिन दरवाज़ा खोल कर बाहर आना मना है। अब दुश्मन नाम की इस मौत की आशंका का कोई चेहरा है नहीं। इसलिए आपको हुकम मिला है कि इसे अपना चेहरा दिखाना नहीं, चाहे गमछे से ढंका हो या नकाब से। असली चेहरा नजऱ न आए। लगा था मौत के दरबार में सब चेहरे एक से हो गए, एक से डरे हुए और नकाबों में अपना मुंह छिपाते लोग। क्या इसी से बड़े-छोटे का भेद खत्म हो जाएगा? अब तक समाजवाद चिल्लाते हुए गला रूंध गया था। लो मौत के भय ने एक चपत लगाई, आयातित गाडिय़ां साइकिलों से बगलगीर होती नजऱ आने लगीं। लेकिन काश, ऐसा हो सकता। नकाब से लिपटे इन चेहरों ने तो नए अंदाज़ अपना लिए। असली चेहरे सामने क्या आने थे, नकली चेहरों ने फेसबुक, ट्विटर, व्ट्सएप पर अपनी नुमाइश सजा ली। कोई दार्शनिक बन गया, कोई उपदेशक, कोई सेहत उपदेशक बन कर आपको अपनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढऩे के नुस्खे दे रहा है। मुत्यु की निरंकुशता का दर्शन शस्त्र बघारते हुए दार्शनिकों ने अपने पीछे चेले-चाटों की कतार लगा ली। भय छूत का था, संक्रमण का था कि कहीं हमें अपनी गिरफ्त में न ले ले। लेकिन यह क्या हुआ? सोशल मीडिया पर नए लेखकों की सुनामी आ गई। यह सुनामी ज़ूम का प्रयोग करते हुए वैबिनार आयोजित कर रही है। पिछले दिनों महामारी के कारण पूर्णबंदी हो गई। बाज़ार, दुकान सब बंद।
कफ्र्यू लगा, अपना थोबड़ा बलमा सिपहिया को दिखायो तो वह बैंत बरसाता है। सडक़ पर उठक-बैठक करवाता है। मेंढक की तरह फुदकना सिखाता है। भले लोगों ने सोचा, 'इससे तो अच्छा है कि घरों में बंद हो जाओ।' वीडियो स्क्रीन से लेकर मोबाइल टीवी स्क्रीन तक अधोवस्त्र पहने नए योगियों को योगाभ्यास करते देखो। लगता था हवा में एक ही संदेश गूंजता है, 'कम खाओ, वजऩ घटाओ।' लाभ बताने वाले ने कहा कि यह संदेश फलीभूत हो गया तो अन्न संकट दूर हो जाएगा और वजऩ कम हो गया तो नीम-हकीमों का धंधा बंद करवा दोगे तुम लोग। लीजिए जो चाहा, वह सभी हुआ है इस देश में। पूर्ण बंदी का आकलन करने बैठे तो पता लगा, घरों में बंद हो गए महानुभावों ने अति उत्साह के साथ जनसंख्या बढ़ाने की नींव रखना शुरू कर दी है। कहां तो परिवार नियोजन के साथ जनसंख्या दर घटाने के मंसूबे थे और कहां अब महिला चिकित्सकों का आकलन बता रहा है कि महामारी की यह पूर्णबंदी इसी तरह लगी रही तो नौ महीनों के बाद दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश चीन नहीं, भारत कहलाएगा। वैसे भी आजकल जनगणना का वक्त तो आ ही गया।
अगले बरस इसके आंकड़े भी आ जाएंगे। उम्मीद है कि तब तक इस खाली समय बिताने के उत्साह के कारण भारत को दुनिया का सर्वाधिक आबादी वाला देश घोषित होने में कोई कठिनाई नहीं होगी। चीन तो अब भी वैसे ही कोरोना वायरस फैलाने का लांछन लेकर वुहान और अन्य इलाकों में हुई मौतों के आंकड़े छिपाने में लगा है। लेकिन यह महामारी के गुजर जाने और देश के खुल जाने के बाद का हाल है। अभी फिलहाल बंदी के दिनों की यह स्थिति है कि जमाखोरों, कालाबाज़ारियों और तस्करों ने अपना हाथ दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मधु-मदिरा की दुकानें खुल गई हैं। मधुशाला आपके दरवाज़े तक चली आएगी। अब शिकायत न कीजिएगा कि पेट की रोटी तो आपके वायदे के बावजूद द्वार तक आ न पाई। अब मधुशाला अपने हरकारों के कंधों पर सवार हो आपके घरों पर दस्तक देने के लिए तैयार हो गई। भोले हो, कब समझोगे बाबू? खाली पीली दस्तक और सोने की गिलासी में लिपटी दस्तक में अंतर होता है। यह अंतर आज का नहीं, हमेशा से रहा है।
सुरेश सेठ

By: divyahimachal

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