सम्पादकीय

पेगासस जासूसी की जांच

Rani Sahu
28 Oct 2021 6:51 PM GMT
पेगासस जासूसी की जांच
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पेगासस जासूसी कांड की अब जांच होगी। सर्वोच्च न्यायालय ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है

पेगासस जासूसी कांड की अब जांच होगी। सर्वोच्च न्यायालय ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है और तीन विशेषज्ञ उसका सहयोग करेंगे। उनके अधिकार-क्षेत्र को भी कुछ परिभाषित किया गया है। सर्वोच्च अदालत के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आर.वी. रवींद्रन की अध्यक्षता में रॉ के पूर्व प्रमुख आलोक जोशी और साइबर प्रौद्योगिकी एवं सिस्टम के विशेषज्ञ डॉ. संदीप ओबेरॉय भी समिति के अन्य सदस्य हैं। नागरिकों की निजता के अधिकार के मद्देनजर सुप्रीम अदालत का यह हस्तक्षेप जरूरी था, ताकि निष्कर्ष तक पहुंचना संभव हो सके कि आखिर ऐसी जासूसी या निगरानी की ज़रूरत क्या थी? क्या इजरायल से पेगासस स्पाईवेयर खरीदा गया, तो आदेश किसने दिया था? क्या ऐसा करना कानूनन था और प्रक्रिया भी वैध थी? प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के अलावा जासूसी का डाटा किसी अन्य देश या संस्थान से भी साझा किया गया? आखिर भारत सरकार इस मुद्दे पर खामोश क्यों है? हालांकि 'राष्ट्रीय सुरक्षा' के मद्देनजर न्यायिक समीक्षा न किए जाने का आग्रह भारत सरकार ने अदालत से किया था, लेकिन सर्वोच्च अदालत का मानना है कि भारत सरकार विस्तार से स्पष्ट नहीं कर सकी कि पेगासस पर कुछ सवालों के जवाब देने से राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में कैसे पड़ सकती है?

अदालत हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ लेने की अनुमति सरकार को नहीं दे सकती, क्योंकि नागरिकों की निजता का अधिकार भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। मीडिया की स्वतंत्रता भी लोकतंत्र के लिए बेहद अहम है। पत्रकारों को अपने सूत्रों की पहचान और सुरक्षा का बचाव भी करना होता है। पेगासस जासूसी औसतन फोन टैपिंग से भिन्न है। स्पाईवेयर जासूसी का ऐसा हथियार है, जिसके जरिए फोन को हैक किया जा सकता है। फोन के भीतर घुसकर उसका पूरा डाटा ग्रहण किया जा सकता है। आपसी बातचीत, एसएमएस, बैंक खातों संबंधी ब्योरों तक पहुंचना संभव हो जाता है। यहां तक कि कोई साजि़शाना उपकरण या सिस्टम भी फोन में डाला जा सकता है। गौरतलब यह है कि इज़रायल में एनएसओ कंपनी समूह ही पेगासस स्पाईवेयर का निर्माण करता है और दुनिया में सिर्फ सरकारों को ही बेचता है। यहां भी राष्ट्रीय सुरक्षा के तर्क दिए जाते रहे हैं। इज़रायल में सत्ता-परिवर्तन हो चुका है। नई सरकार पेगासस के धंधे की जांच करवा रही है। एनएसओ में वहां की खुफिया एजेंसी मोसाद और सेना के पूर्व अधिकारी ही काबिज हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 17 मीडिया संगठनों ने अपनी संयुक्त जांच के आधार पर खुलासा किया है कि दुनिया में 50,000 से ज्यादा अति महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील ओहदेदारों, नेताओं, पत्रकारों के फोन में हैकिंग की गई है।
भारत में कथित तौर पर 300 से ज्यादा प्रमाणित फोन नंबर हैक किए जाने का दावा किया गया था। वे नंबर केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, न्यायाधीशों, मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों, विपक्ष के नेताओं, पत्रकारों आदि के हैं। अब जांच के जरिए समिति इस निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश करेगी कि क्या पेगासस का वाकई दुरुपयोग किया गया। निजता के अधिकार की सुरक्षा के लिए मौजूदा कानून के बेहतर अनुपालन या उसमें संशोधन के क्या उपाय किए जा सकते हैं, समिति यह भी सिफारिश करेगी। अवैध निगरानी की शिकायत नागरिक कर सकें, इसके लिए तंत्र कैसे बने। साइबर हमलों की जांच और उनके खतरों को आंकने के लिए स्वतंत्र एजेंसी बनाई जाए। ऐसी अनुशंसाएं की जा सकती हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खुफिया एजेंसियों द्वारा सर्विलांस जरूरी है। क्या लोकतंत्र में अंधाधुंध जासूसी की अनुमति दी जा सकती है? केंद्र और सुरक्षा के विशेषाधिकारों को पुनः परिभाषित किया जाना चाहिए। सवाल यह भी है कि देश के बाहर सक्रिय एजेंसियों से समिति पूछताछ कर पाएगी, तो यह कैसे संभव होगा? अधिकारों में यह स्पष्ट नहीं है। क्या डाटा भी मांग सकती है? कितने फोन हैक या टैप किए गए, इसका ब्योरा भी स्पष्ट नहीं है। समिति भारत सरकार में किनसे पूछताछ कर सकती है? क्या प्रधानमंत्री कार्यालय भी उसके दायरे में होगा? क्या जांच समिति के समानांतर संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में भी इस मुद्दे पर चर्चा की जा सकती है? बहरहाल जांच का निर्णय स्वागतयोग्य है। हमें उसके निष्कर्षों की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

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