सम्पादकीय

छिलकों की छाबड़ी : डिग्री का खेल

Rani Sahu
25 April 2023 12:30 PM GMT
छिलकों की छाबड़ी : डिग्री का खेल
x

प्रधानमंत्री की डिग्री पर बवाल उठने से पहले मुझे लगता था कि डिग्री का खेल सिर्फ मौसम खेलता है। जब उसका मन होता है गर्मियों में पारा 50 डिग्री पर लाकर पटक देता है या सर्दियों में माईनस डिग्री से भी नीचे खींच लेता है। अनगिन आदमियों को अपनी डिग्री के जाल में उलझा कर मौसम हरारत या ठंड से मौत के आगोश में सुला देता है। पर आजकल तो पूरा देश डिग्री-डिग्री खेल में मस्त है। आम आदमी से लेकर नेता, चमचे, कर्मचारी और यहां तक कि जज भी डिग्री-डिग्री खेल रहे हैं। नौबत यहां तक आ पहुंची है कि जब भी कोई डिग्री का नाम लेता है, लोग संशय से इधर-उधर देखने लगते हैं। केन्द्र सरकार के मंत्री और विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के नेता एक स्वर में विरोधियों के खिलाफ हू-हू करने लगते हैं। संवैधानिक संस्थाएं व्यक्तिगत डिग्री की गरिमा बनाए रखने के लिए कदमताल करने लगती हैं। प्रधानमंत्री की डिग्री पर सवाल उठाने वाले आप के नेता का पाप तो हमेशा आँखों पर काली पट्टी बाँधे रखनी वाली न्याय की देवी ने ज़ुर्माना लगा कर धो दिया। पर संभव है कि आने वाले समय में आर्यावर्त में प्रधानमंत्री की डिग्री पर सवाल उठाने वालों पर देशद्रोह का मुकद्दमा ठुक जाए। पर डिग्री की डिग्री सत्ता अर्थात सरकारों की ताकत पर निर्भर करती है।
मंत्री केन्द्रीय हो तो उसका कोई बाल भी बींका नहीं कर सकता। अगर प्रदेश सरकार किसी छोटे-मोटे राजनीतिक दल की हो तो उसका कानून मंत्री भी संतरी बन कर रह जाता है। दिल्ली में आप पार्टी की सरकार के कानून मंत्री और केन्द्रीय शिक्षा मंत्री की मिसाल हमारे सामने है। पर मुई डिग्री की नाक है कि कटने के बाद भी नेता की नाक की तरह अकाट्य बनी हुई है। मुझे पूरा विश्वास है कि अगर भगवान श्रीराम लक्ष्मण को सूर्पणखा की नाक की तरह डिग्री की नाक काटने के लिए कहें तो अब वह कभी सफल नहीं हो पाएंगे। वर्तमान राष्ट्रीय परिवेश को देखते हुए इस बात की पूरी संभावना है कि डिग्री के महत्व को कायम रखने के लिए सरकार संस्कृति, पुराणवाद, राष्ट्रवाद, गौभक्ति, बुलडोजऱ, ईमानदारी और देशभक्ति पर राजनीति शास्त्र के एकमात्र वैश्विक कोर्स ‘एंटायर पॉलिटिकिस साईंस’ की तरह कोई नया डिग्री कोर्स आरम्भ करे।
प्रधानमंत्री ने एक बार जंगी जहाज़ को राडार की आँख से बचाने की तरकीब तो बताई थी, पर डिग्री बताना भूल गए थे। अगर लगे हाथ यह भी बता देते कि किस डिग्री पर जहाज़ को बादलों के बीच उड़ाने से उसे राडार की आँख से बचाया जा सकता है, तो उस साल के लिए फिजि़क्स के नोबेल प्राईज़ के हक़दार हो सकते थे। पर चिंता की कोई बात नहीं। युगपुरुष के पास नए-नए सुझावों और प्रयोगों की लम्बी फेरहिस्त है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि नोटबंदी, गंदे नाले की गैस से चाय-पकौड़े बनाने, हवा से पानी बरसाने, वैश्विक शांति क़ायम करने के उपाय जैसे हज़ारों उपयोगी सुझावों से वह शीघ्र ही किसी भी क्षेत्र या विषय में नोबेल पुरस्कार से अलंकृत होकर राष्ट्र को नई गरिमा और ऊर्जा से गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान करेंगे। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने नोबेल प्राईज़ मिलने पर कहा था कि वह इस पुरस्कार को ग्रहण करने के बाद शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं। पर इस बात की पूरी संभावना है कि हमारे प्रधानमंत्री नोबेल पुरस्कार दिए जाने के बाद नोबेल पुरस्कार शर्मिंदगी महसूस करे कि वह उन्हें नवाजऩे में इतनी लेट क्यों हो गया। हो सकता है किसी दिन प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम अपने सम्बोधन में देशवासियों से आग्रह करें कि जिस तरह कुछ अरसा पहले उन्होंने कोरोना को दीपक दिखाया था, उसी तरह डिग्री को दीपक दिखाएं या घोषणा कर दें कि अगर किसी विशेष दिन, ख़ास मुहूर्त में जो देशवासी ताली-थाली की तरह अपनी डिग्रियाँ हवा में तीन सौ साठ डिग्री में घुमाएंगे, उनकी डिग्रियों पर प्रश्न उठाने वालों पर देशद्रोह का मुकद्दमा दायर किया जाएगा।
पीए सिद्धार्थ
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story