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जब टीवी चैनलों पर आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी
लगभग एक साल चले लंबे आंदोलन की जीत किसानों के हक में गई जब टीवी चैनलों पर आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी, जिनका विरोध किसान कर रहे थे और इन कानूनों को काले कानून कह रहे थे। इस घोषणा के बाद किसानों ने दिल्ली के आसपास बॉर्डरों पर जश्न तो मनाया, लेकिन घर वापसी की कोई घोषणा नहीं की। इससे सरकार का चिंतित होना जरूरी था क्योंकि उत्तर प्रदेश, पंजाब व उत्तराखंड में विधानसभा चुनावों की तैयारियां करनी थीं और इस फैसले को गोदी मीडिया की ओर से मास्टर स्ट्रोक साबित करना था, लेकिन यह न हुआ।
किसान नेताओं ने एकदम वापस जाने का फैसला नहीं किया बल्कि मांग उठाई कि पहले एमएसपी का फैसला कर ही दो साहब। बार-बार क्या आंदोलन करेंगे। यही नहीं, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी अति उत्साहित हुए और किसान नेताओं को वार्ता के लिए बुला लिया ताकि बॉर्डरों पर रास्ते खुलवा कर वाहवाही लूट सकें। बात वार्ता में अभी सिरे नहीं चढ़ी क्योंकि किसान नेता सबसे पहले आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज किए गए केसों की वापसी की प्रमुख मांग रख रहे हैं क्योंकि इस आंदोलन में हजारों किसान प्रदर्शनकारियों पर राज्य भर में केस दर्ज हैं । यदि इन्हें वापस लेने की घोषणा न की गई तो किसान नेताओं को डर है कि आरक्षण आंदोलन की तरह बाद में सरकार इन्हीं केसों को लेकर परेशान करती रहेगी। इसीलिए बॉर्डर पर किसानों ने अपने ही नेताओं के सामने प्रदर्शन कर अभी आंदोलन वापस न लेने की मांग की जिसे स्वीकार कर लिया गया और यह आंदोलन जारी रहेगा।
हालांकि प्रधानमंत्री ने तो कह दिया कि हम तो दिल दे ही चुके हैं, बस तेरी हां है बाकी, लेकिन किसान अभी 'हां कहने के मूड में नहीं हैं। इसीलिए अभी नेताओं के विरोध को जारी रखे हुए हैं। फिर चाहे वे राज्यपाल के प्रोग्राम हों या मुख्यमंत्री अथवा उपमुख्यमंत्री के प्रोग्राम। विरोध प्रदर्शन जारी रहेंगे। किसान आंदोलन वापस लेने के मूड में नहीं हैं।
-कमलेश भारतीय, साहित्यकार
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