सम्पादकीय

शांतिपूर्ण चुनाव

Rani Sahu
7 March 2022 5:38 PM GMT
शांतिपूर्ण चुनाव
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पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों में मतदान के आखिरी दौर का समापन किसी खुशखबरी से कम नहीं है

पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों में मतदान के आखिरी दौर का समापन किसी खुशखबरी से कम नहीं है। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में सातवें चरण का मतदान संपन्न होने के बाद अब सबकी नजर चुनाव परिणामों पर होगी, लेकिन वस्तुत: जिस कुशलता के साथ इस विशाल राज्य में मतदान के दौर संपन्न हुए हैं, उसकी प्रशंसा करनी चाहिए। चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों को अगर हम छोड़ दें, तो चुनाव कुल मिलाकर शांतिपूर्वक संपन्न हुए हैं। संघर्ष भले तीखा रहा हो, जुबानी हमले भी खूब हुए हैं, प्रतिष्ठा का प्रश्न भी बड़ा रहा है, लेकिन हिंसा की कोई ऐसी घटना नहीं हुई है, जिसे भुलाया न जा सके। कुछ जगहों पर जो झड़पें हुई हैं, उन्हें स्थानीय ही मानकर चलना चाहिए। शांतिपूर्वक मतदान का एक बड़ा कारण यह भी है कि बड़ी सभाओं से इस चुनाव में कमोबेश बचा गया है। शुरू में कोरोना की वजह से भी लोगों का परस्पर टकराव कम हुआ है। शांतिपूर्वक और शालीनता के साथ चुनाव प्रचार हमने देखा है। केंद्रीय मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को भी इस बार गलियों में पैदल वोट मांगते देखा गया है, तो इसका श्रेय महामारी को भी देना चाहिए। चुनाव आयोग अगर ढीला पड़ जाता, तो चुनाव में लोगों के बीच आक्रामकता को मौका मिलता।

गौर करने की बात है कि हर पार्टी को इस चुनाव में आगे अवसर नजर आ रहा है, इसलिए भी पार्टियों के कार्यकर्ताओं का संयम नहीं टूटा है। सांप्रदायिकता की चर्चा भी कमोबेश अपनी हद में रही है। लोग अगर अपनी खुशी जताते हुए मतदान करते पाए गए हैं, तो असंतुष्ट लोग भी मतदान से पीछे नहीं रहे हैं। जनता का विश्वास चुनाव पर न केवल बढ़ा है, बल्कि वे बनने वाली सरकारों से बहुत उम्मीदें लगाए हुए हैं। लोग चुनाव के प्रति सजग हैं, लेकिन मतदान प्रतिशत आशा के अनुरूप नहीं है। हमें एक बार सोचना चाहिए कि गोवा जैसे राज्य में मतदान प्रतिशत 78.94 प्रतिशत तक पहुंच सकता है, तो उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में मतदान 60 प्रतिशत के पार क्यों नहीं पहुंच सकता? इस बार उत्तराखंड में 65.4 प्रतिशत मतदान हुआ है, पर वहां भी मतदान क्रमश: घट रहा है। मतदान बढ़ाने के उपायों पर चुनाव आयोग को ज्यादा काम करना होगा। लोगों में भी जागरूकता की जरूरत है। लोग सरकारों को कोसते हैं, उनसे उम्मीद रखते हैं, लेकिन मतदान से क्यों बचते हैं?
मतगणना से पहले नेताओं को पूरे संयम का परिचय देना चाहिए। एग्जिट पोल के नतीजे सामने आ गए हैं, जिन पर दो दिन खूब चर्चा होगी। हालांकि, बौद्धिक विलास के लिए ऐसे सर्वेक्षण ठीक हैं, लेकिन वास्तविक तस्वीर 10 मार्च को ही सामने आएगी। सत्ता के प्रत्याशी नेताओं को भी किसी भी तरह के बड़बोलेपन से बचना होगा। जीते कोई भी, उसे जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना है। इस चुनाव में कुछ जगह हमने देखा है कि आम लोगों ने कैसे प्रत्याशियों का अनादर किया है। ऐसे अनादर से हमारे नेताओं को बचना चाहिए, इसके लिए जरूरी है कि मतदाताओं की भावनाओं और उम्मीदों का आदर किया जाए। जब मतदान संपन्न हो गया है, तो नेताओं को अपने वादों के प्रति भी सचेत होना चाहिए। जनसेवा के लिए सत्ता जरूरी नहीं है, सत्ता के बिना भी लोगों के बीच रहकर अपने आधार को मजबूत किया जा सकता है। चुनाव लड़ने और चुनाव जीतने वाले नेताओं पर सबकी नजर है।
Rani Sahu

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