सम्पादकीय

हिंसा का रास्ता

Subhi
18 March 2021 2:07 AM GMT
हिंसा का रास्ता
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अपने गंतव्य की ओर जाने के लिए सड़कों पर वाहन चलाता व्यक्ति क्या इतना उतावला और हिंसक हो सकता है

अपने गंतव्य की ओर जाने के लिए सड़कों पर वाहन चलाता व्यक्ति क्या इतना उतावला और हिंसक हो सकता है कि बेहद मामूली टक्कर या विवाद के बाद किसी की जान ले ले या फिर अपनी जान दे दे? कोई भी होशमंद व्यक्ति शायद ऐसा नहीं करेगा। लेकिन पिछले कुछ सालों के दौरान दिल्ली या दूसरे शहरों-महानगरों में यह स्थिति एक चिंताजनक प्रवृत्ति के रूप में उभरी है।

लगातार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जिसमें किसी साधारण बात या वाहनों में बिना नुकसान वाली टक्कर के बाद लोग जानलेवा हिंसा पर उतारू हो गए। मंगलवार को दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में एक स्कूटी और एक मोटरसाइकिल के बीच मामूली टक्कर से उपजे विवाद ने ऐसी हिंसक शक्ल ले ली, जिसमें दो युवकों की चाकू से गोद कर हत्या कर दी गई। स्थानीय इलाके में सीसीटीवी कैमरे लगे होने की वजह से इस हत्या में लिप्त एक नाबालिग सहित एक अन्य युवक को गिरफ्तार कर लिया गया। इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि इतनी साधारण बातों पर हुआ विवाद आखिर इस कदर जानलेवा अंजाम तक कैसे पहुंच जाता है!
ताजा घटना सड़क पर बेलगाम रोष से थोड़ी अलग इसलिए है कि जिन युवकों ने चाकू से गोद कर दो युवकों की हत्या कर दी, वे संभवत: ऐसी स्थिति पैदा होने पर जानलेवा हिंसा यानी जघन्य अपराध तक करने के लिए तैयार थे। लेकिन सच यह है कि सड़क पर वाहनों में मामूली टक्कर, गलत तरीके से आगे निकलने, रफ्तार आदि बहुत छोटी बातों पर हुए विवाद के हिंसक शक्ल अख्तियार कर लेने की घटनाएं अब आम हो चुकी हैं और ऐसा पढ़े-लिखे लोग भी करते पाए जाते हैं।
ऐसी घटनाओं की महज तात्कालिक रोष का नतीजा बता कर अनदेखी कर दी जाती है, मगर यह ध्यान रखने की जरूरत है कि शहरों-महानगरों में अब यह समस्या खतरनाक रूप लेती जा रही है। सड़क पर जा रहा कोई व्यक्ति खुद पर तो नियंत्रण रख सकता है, लेकिन दूसरे व्यक्ति के वाहन चलाने या उसके व्यवहार पर उसकी लगाम नहीं होती। नतीजतन, कई बार एक पक्ष शांति से विवाद को टालना भी चाहता है तो रोब या अकड़ की वजह से दूसरा पक्ष हिंसा पर उतर जाता है। सवाल है कि क्या कभी यह सोचा जाता है कि हादसों के अलावा सड़कों पर दौड़ती यह प्रवृत्ति भी लोगों के लिए बेहद खतरनाक और कई बार जानलेवा साबित हो रही है?
करीब तीन साल पहले सड़क पर बेलगाम होते गुस्से और बढ़ती हिंसक घटनाओं के मद्देनजर इस पर केंद्रित एक कानून बनाने की मांग उठी थी। लेकिन अफसोस की बात यह है कि ऐसी घटनाओं पर रोक के लिए अकेले कोई सख्त कानून भी शायद नाकाफी हो। दरअसल, यह लोगों के व्यवहार की समस्या है और इसकी जड़ें समाज में पल-बढ़ रही दूसरी वैसी स्थितियों से भी जुड़ी हैं, जिसमें विवेक और सूझ-बूझ के लिए जगह लगातार कम होती गई है।
किसी छोटी बात पर खुद पर काबू खोकर हिंसक हो जाने वाले व्यक्ति के पास यह समझ पाने का भी विवेक नहीं रह जाता है कि उसकी उत्तेजना और हिंसा के अंजाम में उसकी जान जा सकती है या फिर वह किसी की हत्या कर दे सकता है। उसके बाद कानूनी कार्रवाई की जद में उसकी बाकी जिंदगी भी बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। जाहिर है, इस मसले पर सख्त कानून के साथ-साथ व्यवहार और विवेक संबंधी विचारों से लैस जागरूकता कार्यक्रम भी व्यापक पैमाने पर चलाने की जरूरत है। विवेक का इस्तेमाल न केवल व्यक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा, बल्कि उसके बेहतर और सभ्य इंसान बनने में भी मददगार साबित हो सकता है।

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