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- टीके की उपलब्धता में...
भरत झुनझुनवाला: देश कोरोना संक्रमण के जिस कहर से जूझ रहा है, उसमें उम्मीद की एक बड़ी किरण यही है कि हमारे पास कोरोना रोधी टीके उपलब्ध हैं। वैसे तो सरकार ने अब कई विदेशी टीकों को भी हरी झंडी दिखा दी है, इसके बावजूद भारतीय टीकाकरण अभियान का दारोमदार मुख्य रूप से दो वैक्सीनों-सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा एस्ट्राजेनेका के साथ विकसित कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन पर है। इन टीकों का अपना एक अर्थशास्त्र भी है। सीरम के अनुसार एक टीके की बिक्री पर आधी रकम उसे रायल्टी के रूप में एस्ट्राजेनेका को देनी पड़ती है। यह उसके लिए घाटे का सौदा है। इसलिए वह राज्यों को अपना टीका 300 रुपये और निजी क्षेत्र को उससे अधिक दाम पर बेचना चाहती है ताकि केंद्र सरकार को 150 रुपये में बेचने पर हुए घाटे की भरपाई कर सके। इसमें से 75 रुपये तो उसे एस्ट्राजेनेका को रायल्टी की मद में देने पड़ेंगे। यह रायल्टी हमें इसलिए देनी पड़ रही है, क्योंकि हमने विश्व व्यापार संगठन यानी डब्ल्यूटीओ के अंतर्गत उत्पाद पेटेंट कानून स्वीकार किया हुआ है। इसके अंतर्गत विदेशी कंपनी द्वारा पेटेंट किए गए किसी भी उत्पाद को हम अपने देश में नहीं बना सकते। पेटेंट कानून के कारण वैक्सीन महंगी है और संपूर्ण विश्व को उपलब्ध भी नहीं हो पा रही। यदि हम पेटेंट कानून के दायरे में न होते तो सीरम के अलावा अन्य कंपनियां भी इस टीके को बना सकती थीं।