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यह अपने आप में विचित्र विचार है कि किसी व्यक्ति को अंगदान करने से इसलिए वंचित कर दिया जाए कि उसने अतीत में कोई अपराध किया था। न इसे कानूनी कसौटियों के मूल्यांकन के आधार पर उचित माना जा सकता है, न मानवीय दृष्टिकोण से। लेकिन केरल में यह मामला एक विडंबना के तौर पर सामने आया था कि वहां अंग प्रत्यारोपण प्राधिकरण समिति ने एक व्यक्ति की आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर उसके अंगदान के आवेदन को खारिज कर दिया था। निश्चित तौर पर यह फैसला विरोधाभासी विचारों और पूर्वाग्रहों से संचालित था, जिसमें किसी व्यक्ति के बारे में प्रचलित धारणा के मुताबिक मान लिया जाता है कि उसका सभ्य और मानवीय दुनिया में कोई उपयोग नहीं रहा। जबकि अपराध और दंड की समूची व्यवस्था का मूल सुधार की बुनियाद पर टिका होता है, जिसमें बड़े अपराधियों को भी खुद में बदलाव लाने का मौका मिलने का विचार निहित है। ऐसे में अतीत में अपराध करने वाला कोई व्यक्ति अगर अपने जीवन की यह उपयोगिता समझने के पायदान पर आ गया है कि उसके शरीर के अंग से किसी की जान बच सकती है तो इससे बेहतर सुधार और क्या होगा!