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- नए संसद भवन का तोता
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आए दिन देश की राजधानी के पक्षी परेशान होने लगे हैं। जिस तरह देश निरंतर तरक्की कर रहा है, दिल्ली के पक्षियों के लिए अपने जीने के निशान खोजने मुश्किल हो रहे हैं। वे तरक्की का आसमान ऊंचा होते देखकर इसलिए भी परेशान हैं कि नीचे धरती पर इनसान कितना उड़ रहा है। यह उनके अस्तित्व का सवाल बन गया, इसलिए उन्होंने भी अपनी संसद बुलाने का फैसला किया। दरअसल यह फैसला देश की पुरानी संसद के आसपास उड़ते रहे पक्षियों का था। वे यह भी चाहते थे कि जिस तरह देश की पुरानी संसद के बाद नए भवन की आलीशान शुरुआत हुई, उसी तरीके से वे भी नई लोकतांत्रिक इमारत के ऊपर उड़ें। हद तब हो गई जब दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों के पक्षी भी ख्वाहिश करने लगे कि उनका एकाधिकार संसद भवन पर हो। कुछ पक्षी मंदिरों से आए थे। उन्होंने साधु-संत समाज को संसद में पहुंचते देखा था, तो स्वाभाविक रूप से वे भी इसे अपना कार्य क्षेत्र बनाना चाहते थे। जिन पक्षियों ने माफिया की सांठगांठ में प्रशासन को चलते देखा था, वे अपने पंखों से संसद भवन तक को कब्जे में लेना चाहते थे। कनॉट प्लेस के पक्षी चालाक थे। वे अतीत से आज तक देश के इतिहास को बदलते हुए देखते रहे थे, लिहाजा उन्होंने मान लिया था कि इतिहास को सदा-सदा बदलने के लिए नए संसद भवन से बेहतर ठिकाना और कहां होगा। दिल्ली में तमाम सरकारी कार्यालयों, मंत्रालय भवनों और सांसदों के रिहायशी इलाकों में रहने वाले पक्षियों को तो पहले से ही आभास था, सो उन्होंने एक बड़ी पक्षी शृंाखला नए संसद भवन के आसपास बना रखी थी ताकि संसद पर मंडराने का उनका अधिकार सदा-सदा के लिए स्थापित हो सके। अब दिल्ली में पक्षियों के दो बड़े वर्ग बन चुके थे। एक वे जो नए संसद भवन तक उडऩे का लोकतांत्रिक आधिपत्य चाहते थे और दूसरे वे जो सरकारी कार्य संस्कृति के साथ पुरानी संसद तक अपनी उड़ान पूरी करते रहे थे। ये खुद को सत्ता मानते हुए दूसरे पक्षियों को विपक्षी मान चुके थे, लिहाजा दिल्ली इस बहाने आसमान में उड़ते पक्ष और विपक्ष के स्वरूप को अब पक्षियों में भी देखने लगी है। नए संसद भवन पर पक्षी विवाद बढ़ता गया, तो तथाकथित सत्ता के पक्षी एक तरफ तो विपक्ष के दूसरी तरफ हो गए। सरकारी कोठियों, भवनों तथा सत्ता के सांसदों के रिहायशी इलाकों में दाना चुगते रहे पक्षी तरह-तरह के आरोप लगाकर नव आगुंतकों को नए संसद भवन तक आने से रोकने लगे।
दूसरे पक्षी पुराने संसद भवन के ठीक ऊपर अपनी संसद बुला चुके थे। उन्हें लगता था कि नई संसद को छूना उनके दाएं पंख का काम है, पर वे इस दूरी को पाट नहीं पा रहे थे। अंतत: उनके बीच बैठा एक तोता सामने आया। वह पहले लोकतंत्र-लोकतंत्र रटता रहा था, लेकिन अब यह भूल कर संसद-संसद रट रहा था। पक्षी खुश हुए कि वह उन्हें नए संसद भवन पर बैठने का कोई तिकड़म बता देगा। तोता अनुभवी था, पुराने संसद भवन में चोंच लड़ाते सांसदों को देख चुका था, इसलिए तपाक से बोला, ‘चोंच लड़ाने में माहिर हो जाओगे तो दुनिया लोहा मान जाएगी। देखो! आगे बढऩे के लिए या तो राजा चाहिए या भगवान।’ भगवान का नाम सुनते ही मंदिरों से आए पक्षी खूंखार हो गए। वे अपना-अपना गोत्र बताने लगे। समझदार तोता शीघ्र ही पलटी मार गया। उसने देखा कि इस देश में राजा बनना आसान है। उसने अपनी गपोड़शंखी प्रवृत्ति के जरिए बता दिया कि उसके अंदर ही राजा बनने की क्षमता और महारत हासिल है। पक्षी सुन रहे थे और वह सुना रहा था। नीचे नए संसद भवन का उद्घाटन हो रहा था और ऊपर तोते को पक्षियों ने राजा मान लिया। वह केवल उड़ारी मारता और पक्षी उसका अनुसरण करते हुए समझते कि वे भी इस संसद के भागीदार हैं। अंतत: तोता नए संसद भवन के ऊपर उडऩे की वजह से ही पक्षियों का राजा बन गया। उसे सिर्फ यही सोचना होता है कि किस तरह उड़ा जाए। जब वह उड़ता है, तो बाकी पक्षी अपने पंख दबा लेते हैं, यही उसके राजा घोषित होने की निशानी है।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu
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