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- संसद की अग्नि-परीक्षा
एक बार फिर संसद की अग्नि-परीक्षा होगी। सवाल लोकतंत्र-गणतंत्र के सबसे बड़े, पावन मंदिर की गरिमा और उसके औचित्य का है। हम बीते अढाई दशकों से संसदीय कार्यवाही के साक्षी रहे हैं। हंगामा और गतिरोध को भी लोकतांत्रिक अधिकार का हिस्सा मान लिया गया है, लेकिन जो दृश्य बीते मॉनसून सत्र के दौरान देखने पड़े हैं, उनके मद्देनजर लगता है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष में नफरत की हद तक संबंध-विच्छेद हो गए हैं। यह भारत की संवैधानिक विरासत नहीं है। संविधान सभा के दौरान संविधान संबंधी विमर्श और फिर प्रारूप-लेखन के मुद्दों पर डॉ. भीमराव अंबेडकर और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जवाहर लाल नेहरू के विचारों का कड़ा विरोध किया था। विपक्ष के दोनों शिखर नेता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भी आलोचक थे, लेकिन नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने, तो खुद उन्होंने अंबेडकर और श्यामा प्रसाद को पहली राष्ट्रीय सरकार में कैबिनेट मंत्री की पेशकश की थी। दोनों क्रमशः कानून और उद्योग-वाणिज्य मंत्री बने। सत्ता और विपक्ष के दरमियान मतभेदों के बावजूद ऐसा सामंजस्य भी था। अब तो विपक्ष के 16 दलों ने 'संविधान दिवस' समारोह का ही बहिष्कार किया।
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