सम्पादकीय

संसदीय शब्द

Admin2
20 July 2022 10:53 AM GMT
संसदीय शब्द
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संसद या विधानमंडलों में समय-समय पर अनेक शब्दों को असंसदीय श्रेणी में डाला जाता रहा है, ताकि सदन में भाषा की शुचिता बने रहे। इसके पीछे ध्येय यही होता है कि सदन में भाषा मर्यादित रहे और ओछी भाषा का उपयोग कोई न करे। ऐसी ही कवायद के तहत लोकसभा सचिवालय ने असंसदीय शब्द 2021 शीर्षक के तहत ऐसे शब्दों और वाक्यों का नया संकलन तैयार किया है, जिनको 'असंसदीय अभिव्यक्ति' की श्रेणी में रखा गया है। इसका मतलब यह हुआ कि सांसद इन शब्दों के इस्तेमाल से बचेंगे और अगर ऐसा कोई शब्द उनके मुंह से निकल गया, तो सदन की दर्ज कार्यवाही से उसका लोप कर दिया जाएगा। आमतौर पर सांसद असंसदीय सूची में दर्ज शब्दों के इस्तेमाल से बचते ही हैं, लेकिन ऐसे शब्दों का इस्तेमाल सदन में पैदा माहौल की वजह से भी होता है। असंसदीय शब्दों के इस्तेमाल से बचने के लिए सबसे जरूरी है कि अच्छे परिवेश में चर्चा हो, तो शब्दों की शुद्धता और शुचिता भी कायम रहेगी।

खैर, जिन शब्दों को इस बार असंसदीय करार दिया गया है, उनमें से कुछ शब्द पहले ही कुछ राज्य विधानमंडलों में असंसदीय करार दिए गए थे। जैसे, छत्तीसगढ़ विधानसभा की कार्यवाही से हटाए गए कुछ शब्द हैं, बॉब कट हेयर, गरियाना, अंट-शंट, उचक्के, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, इन शब्दों का इस्तेमाल अब संसद में भी नहीं हो सकेगा। राजस्थान विधानमंडल से कुछ शब्द लिए गए हैं, कांव-कांव करना, तलवे चाटना और तड़ीपार। झारखंड विधानसभा में कई घाट का पानी पीना मुहावरा असंसदीय है, तो उसे संसद की स्याह सूची में शामिल कर लिया गया है। लोकसभा अध्यक्ष को यह अधिकार है कि वह ऐसी सूची जारी कर सकते हैं। ध्यान रहे, लोकसभा में कामकाज की प्रक्रिया एवं आचार के नियम 380 के मुताबिक, अगर अध्यक्ष को लगता है कि चर्चा के दौरान अपमानजनक या असंसदीय, अभद्र या असंवेदनशील शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, तो वे सदन की कार्यवाही से उन्हें हटाने का आदेश दे सकते हैं। शब्द ही नहीं, कुछ वाक्यों को भी असंसदीय करार दिया गया है। इसके बाद वाकई सांसदों को अध्ययन करना पडे़गा और बहुत संभलकर अभिव्यक्ति करनी पड़ेगी। आलोचना के लिए संसदीय शब्द चुनने पड़ेंगे। आलोचना के कुछ प्रचलित शब्दों या वाक्यों के घटने या हटने से सत्ता पक्ष और कभी विपक्ष, दोनों को असुविधा भी होगी।
ऐसे शब्दों की सूची लंबी है, जिन्हें असंसदीय करार दिया गया है। क्या असंसदीय करार दिए गए शब्दों के विकल्प भी बताए गए हैं? वैसे शब्दों की शुचिता और सूची पर भी संसद में बहस हो सकती है, उससे यह देश जान पाएगा कि किसी शब्द को आखिर असंसदीय क्यों करार दिया जा रहा है? यह कोई छिपी बात नहीं है कि राजनीति वैसे भी गिने-चुने या घिसे-पिटे सौ-दो सौ शब्दों का ही इस्तेमाल करती है। संसद में भाषाविदों की कमी होती जा रही है? क्या इन शब्दों के असंसदीय करार दिए जाने के बाद सदन का कामकाज और सुधर जाएगा? क्या सभी सांसद इस सूची की पालना करेंगे? गौर कीजिए, तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने करारा हमला बोलते हुए कह दिया है कि मैं इन शब्दों का इस्तेमाल करूंगा, चाहे मुझे निलंबित कर दिया जाए। मतलब, संसद में ही नहीं, कुछ विधानसभाओं में भी ऐसे शब्दों के इस्तेमाल की संभावना रहेगी, जिन्हेंअसंसदीय करार दिया गया है। अच्छा होता, यदि इस मोर्चे पर आम सहमति बन जाती।
सोर्स-livehindustan
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