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- स्वतंत्रता के 75वें...
संजय गुप्त : संसद में विपक्षी दलों ने अपने ओछे आचरण से न केवल देश के विकास में रोड़ा बनने का काम किया, बल्कि लोकतंत्र को शर्मसार भी किया-और वह भी ऐसे समय जब 75वां स्वतंत्रता दिवस करीब था। इससे दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं हो सकता कि जब हम अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने का उत्सव मना रहे हैं, तब हमारी संसदीय राजनीति कलुष भरी दिख रही है। हमारे राष्ट्र निर्माताओं और संविधान के रचनाकारों ने शायद ही राजनीति के वैसे स्वरूप की कल्पना की हो, जैसा आज देखने को मिल रहा है। स्वतंत्रता का 75वां दिवस संसदीय राजनीति के नीति-नियंताओं के लिए आत्ममंथन का अवसर बनना चाहिए। उन्हें इस पर विचार करना चाहिए कि आखिर वे संसदीय लोकतंत्र को किस दिशा में ले जा रहे हैं और देश की जनता को क्या संदेश दे रहे हैं? संसद के मानसून सत्र में जो कुछ देखने को मिला, वह यह नहीं प्रकट करता कि हमारी राजनीति लोकतांत्रिक तौर-तरीकों को सबल बनाने का काम कर रही है। यह ठीक नहीं कि जब राजनीति को देश को दिशा देने का दायित्व कहीं अधिक जिम्मेदारी से निभाना चाहिए, तब वह इसके विपरीत काम करती दिख रही है।