सम्पादकीय

संसद सत्र एजेंडे के बिन

Deepa Sahu
8 Sep 2023 9:21 AM GMT
संसद सत्र एजेंडे के बिन
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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के कार्यालय और प्रवक्ता का कहना है कि संसद का सत्र 18-22 सितंबर को बुलाया गया है, लेकिन संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी समेत कई मंत्री और पार्टी प्रवक्ता इसे ‘विशेष सत्र’ करार दे रहे हैं। यह राष्ट्रपति के कथन और निर्णय में ‘अतिक्रमण’ है और महामहिम तथा केंद्र सरकार के बीच विरोधाभास भी है। हमने यह स्थिति पहली बार देखी और महसूस की है। विपक्ष में सोनिया गांधी और ‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं का भी मानना है कि सरकार ने संसद के ‘विशेष सत्र’ का निर्णय मनमुताबिक लिया है। विपक्ष को विश्वास में नहीं लिया गया। दरअसल भारत सरकार के परामर्श पर ही राष्ट्रपति ने संसद सत्र आहूत किया है। बहरहाल इस असमंजस से बाहर निकलते हुए हम मानते हैं कि पांच दिन का संसद सत्र बुलाया गया है। यदि यह ‘विशेष सत्र’ है, तो कमोबेश मोदी सरकार को स्पष्ट करना चाहिए था कि किस ‘विशेषता’ के तहत यह सत्र बुलाया गया है, जबकि मानसून सत्र 11 अगस्त को ही ‘अनिश्चितकाल के लिए स्थगित’ किया गया था। संसद का शीतकालीन सत्र भी नवम्बर के अंत अथवा दिसंबर के शुरू में बुलाया जाता है। उस दौरान कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, लिहाजा राजनीतिक दलों के केंद्रीय नेता भी चुनाव-प्रचार में व्यस्त होंगे। क्या इसी के मद्देनजर यह ‘विशेष सत्र’ बुलाया गया है? क्या शीतकालीन सत्र नहीं होगा? इन सवालों के संदर्भ में कहा जा सकता है कि संपूर्ण सत्र की तुलना में पांच दिवसीय सत्र पर्याप्त नहीं होता, क्योंकि विधायी कार्य लटके रहेंगे! चूंकि प्रस्तावित सत्र में ‘शून्यकाल’ और ‘प्रश्नकाल’ सरीखी संवैधानिक व्यवस्थाओं को अनुपस्थित रखा गया है, लिहाजा सवाल उठता है कि क्या सत्र वाकई ‘विशेष’ है? यदि ऐसा है, तो उसका विशेष एजेंडा सार्वजनिक करने में दिक्कत क्या है?

यह भी परंपरा रही है कि कोई विधेयक पेश करने से पहले कमोबेश विपक्ष के सदनीय नेताओं को मसविदा जरूर मुहैया कराया जाता रहा है, ताकि उसका समुचित अध्ययन वे कर सकें और संसद में अपने संशोधन पेश कर सकें। ‘विशेष सत्र’ का एजेंडा गोपनीय अथवा सनसनीखेज बनाने के लाभ क्या हैं? उससे सरकार की कौन-सी खुफियागीरी खंडित होगी? यदि ‘विशेष सत्र’ में ‘एक देश, एक चुनाव’ या ‘महिला आरक्षण बिल’ अथवा ‘भारत नामकरण’ सरीखे प्रस्ताव पेश किए जाने हैं, तो इनमें ‘विशेष जल्दबाजी’ की जरूरत क्या थी कि संसद सत्र आनन-फानन में बुलाना पड़ा? यदि सरकार ‘चंद्रयान-3’, ‘आदित्य एल-1’ और ‘जी-20 शिखर सम्मेलन’ सरीखी अमृत-काल की उपलब्धियों पर संसद का ‘शाबाश प्रस्ताव’ पारित कराना चाहती है, तो इस कार्य-सूची को सार्वजनिक करने में परेशानी क्या है? कौन-सी गोपनीयता भंग हो सकती है? दरअसल मोदी सरकार की यह प्रवृत्ति बन गई है कि वह अत्यंत सामान्य फैसले को भी सनसनीखेज बना कर पेश करती है। प्रधानमंत्री मोदी के ‘मन की बात’ वही जानते हैं, इस पर सरकार और भाजपा बड़ा ‘महान’ महसूस करती है। लोकतंत्र ऐसे नहीं चला करते। लोकतंत्र में सभी की भागीदारी और सोच बेहद जरूरी है। मौजूदा संदर्भ में हमें लगता है कि संसदीय कार्य मंत्री को भी जानकारी नहीं है कि ‘विशेष सत्र’ क्यों बुलाया गया है, लिहाजा वह टालू से जवाब दे रहे हैं। शायद प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि ‘जी-20 शिखर सम्मेलन’ के समापन के बाद ही कुछ घोषणा की जाए! हालांकि कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर शिकवा किया है कि ‘विशेष सत्र’ विपक्ष से पूछे बिना ही आहूत किया गया है। यह संसद की स्थापित परंपराओं के विरुद्ध है। अलबत्ता उन्होंने चर्चा के लिए 9 बिंदु सुझाए हैं। ये ऐसे बिंदु हैं, जिन पर मानसून सत्र के दौरान बहस हो सकती थी, लेकिन विपक्ष और सरकार अपने-अपने नियमों पर अड़े रहे और सत्र लगभग धुल गया। चूंकि मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था, लेकिन फिर भी महंगाई, बेरोजगारी, किसानी, मणिपुर और सांप्रदायिक हिंसा पर कोई ठोस बहस सामने नहीं आई। हालांकि सूचना मंत्री अनुराग ठाकुर ‘भारत नामकरण’ पर तमाम अफवाहों का खंडन कर चुके हैं, तो भी उम्मीद करते हैं कि अभी सत्र में 10 दिन शेष हैं। शायद सरकार सत्र की विशेषता का खुलासा कर दे!
by - divyahimachal.com
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