सम्पादकीय

संसद सत्र : भारतीय कृषि की स्थिरता का सवाल

Neha Dani
22 Dec 2021 1:56 AM GMT
संसद सत्र : भारतीय कृषि की स्थिरता का सवाल
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न्यूनतम कीमतों की अपनी मांगों का सामंजस्य स्थापित करें।

दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों ने हाल ही में उन तीन कृषि कानूनों के खिलाफ अपने विरोध प्रदर्शन को स्थगित कर दिया है, जिनके बारे में मोदी सरकार ने दावा किया था कि इनसे भारत के कृषि क्षेत्र में सुधार होगा। संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान इन तीनों कानूनों को निरस्त कर दिया गया।

किसानों की सबसे विवादास्पद मांग उनके कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने वाले कानून की मांग है, जो केंद्र सरकार द्वारा चुनिंदा कृषि उत्पादों के लिए घोषित न्यूनतम मूल्य है, जिस पर लेन-देन को किसानों के लिए लाभकारी माना जाता है।
हालांकि इन विवादास्पद कृषि कानूनों के फायदे और नुकसान पर बहुत कुछ कहा गया है, लेकिन भारतीय कृषि को पारिस्थितिक और आर्थिक रूप से टिकाऊ बनाने के लिए जिस दिशा में जाने की जरूरत है, उसके बारे में कम ही चर्चा हुई है।
यह एक महत्वपूर्ण बहस है, सिर्फ इसलिए नहीं कि ये कृषि कानून भारतीय कृषि को आकार देते, बल्कि इसलिए भी कि इन कानूनों के लागू होने के कुछ साल पहले कृषि क्षेत्र में कृषि व्यवसाय प्रेरित विकास की दिशा में बदलाव होना शुरू हो गया था। इन तीन कानूनों का उद्देश्य केवल इस बदलाव की गति को बढ़ाना था।
कृषि क्षेत्र में कृषि व्यवसाय प्रेरित विकास के लिए यह बदलाव भारत में तकनीक-उद्यमी विकास की ओर झुकाव की निरंतरता में देखा जा सकता है, जो पिछले दशक में शुरू हुआ है, और जो स्टार्ट-अप की संख्या से स्पष्ट है।
कृषि-तकनीक स्टार्ट-अप में निवेश को बढ़ावा देने के लिए समर्पित मंच थिंकएग के अनुसार, 2018 और 2020 के बीच भारत में नई प्रौद्योगिकी-आधारित कृषि फर्मों ने लगभग 1.5 अरब डॉलर का रिकॉर्ड पूंजी निवेश आकर्षित किया, जिसमें से अधिकांश अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से था।
अब देश भर में लगभग 1.4 करोड़ किसानों के साथ संपर्क करने वाले 600 से अधिक कृषि-तकनीकी स्टार्ट-अप मौजूद हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा कोविड प्रतिबंधों ने किसानों की आवाजाही को घटा दिया और कृषि-तकनीकी फर्मों की गतिविधियों पर उनकी निर्भरता को बढ़ा दिया।
अब सवाल उठता है कि कृषि-व्यवसाय प्रेरित विकास मॉडल क्या भारतीय कृषि और किसानों के लिए लाभप्रद होगा। औद्योगिक कृषि के पंडितों ने दशकों से तर्क दिया है कि भावी कृषि की किसी भी अवधारणा को पारिस्थितिक स्थिरता पर केंद्रित करने की आवश्यकता है, जिसे कृषि अर्थव्यवस्था के साथ प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के सतत उपयोग के रूप में समझा जाता है। क्या कृषि-व्यवसाय प्रेरित मॉडल भारतीय कृषि में पारिस्थितिक स्थिरता को बढ़ावा दे रहा है?
अपने फील्ड वर्क के दौरान मैंने भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में से एक कृषि क्षेत्र के कृषि-तकनीकी उद्यमियों एवं निवेशकों से बातचीत की। ज्यादातर कृषि-तकनीक फर्मों ने कृषि आपूर्ति शृंखलाओं पर ध्यान केंद्रित किया है, जैसे कि किसानों को घर पर कृषि रसायन का वितरण और दिन-प्रतिदिन के फसल संचालन और खेती की स्थिरता सुनिश्चित करने के बजाय कृषि उत्पादों के बाजार लिंकेज को सुनिश्चित करना।
जहां तक कृषि स्थिरता की बात है, तो वे इसे प्रत्यक्ष प्रभाव के बजाय बायप्रोडक्ट के रूप में देखते हैं। भारत सरकार सक्रिय रूप से कृषि में तकनीक-उद्यमी विकास को बढ़ावा दे रही है। मसलन, कृषि मंत्रालय ने भारतीय कृषि के डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने के लिए इंडिया डिजिटल इकोसिस्टम ऑफ एग्रीकल्चर (आईडिया) नामक एक मसौदा जारी किया है। सवाल यह है कि क्यों?
पहली बात तो यह है कि, तकनीकी-उद्यमितावाद के समर्थक तकनीकी भविष्यवाद और नवउदारवाद की विचारधाराओं से प्रेरित हैं। अपने फील्डवर्क के दौरान, मैंने लगातार 1990 के दशक के दौरान शुरू हुई भारतीय कृषि के उदारीकरण की अधूरी प्रक्रिया के बारे में नीति निर्माताओं और कृषि अर्थशास्त्रियों के बीच स्पष्ट निराशा देखी।
नीति आयोग के एक कृषि अर्थशास्त्री रमेश चंद ने दिसंबर 2019 में तर्क दिया कि किसानों की आर्थिक बेहतरी के लिए कृषि क्षेत्र में आमूल-चूल बदलाव की आवश्यकता है, जिसे 1991 के सुधार एजेंडे में पीछे छोड़ दिया गया था। आईडिया दस्तावेज में यह भी दावा किया गया है कि भारतीय कृषि को 'उच्च स्तर की दक्षता और उत्पादकता' तक ले जाने के लिए डिजिटलीकरण महत्वपूर्ण है।
इन बयानों में अंतर्निहित तथ्य यह है कि भारतीय कृषि अक्षम है और निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी, निर्यात-उन्मुख विकास, और डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग से अधिक दक्षता आएगी। उन्हें यह एहसास नहीं है कि अतीत में प्रौद्योगिकी प्रेरित विकास ने अत्यधिक समस्याओं को जन्म दिया है, जिनसे भारतीय कृषि आज जूझ रही है, जैसे मिट्टी का क्षरण, भूजल की कमी और कीड़ों के हमलों की बढ़ती आवृत्ति।
दूसरी बात यह है कि दूरसंचार और अंतरिक्ष जैसे अन्य क्षेत्रों में विकास के क्रम में कृषि विकास को समझने की ओर झुकाव है। यह माना जाता है कि डिजिटलीकरण कृषि को अन्य क्षेत्रों की तरह ही बदल देगा।
अंत में, प्रमुख औद्योगिक सामाजिक-तकनीकी व्यवस्था सुधारों की वैकल्पिक समझ (जैसे प्राकृतिक खेती) की दिशा में किसी भी कदम का कड़ा विरोध करती है, जैसा कि आंध्र प्रदेश के एक हालिया अध्ययन से पता चला है।
हाल ही में, आंध्र प्रदेश में कृषि के स्थायी रूपों में बदलाव के लिए दुनिया के सबसे बड़े प्रयोगों में से एक राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी और इंडस्ट्रियल इनपुट (बीज, उर्वरक, कीटनाशक) के आपूर्तिकर्ताओं की आलोचनाओं का शिकार बन गया, जो देश की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालेगा।
प्रौद्योगिकी और प्रगति पर निर्भरता से उत्पन्न प्रभावी संरचनाओं को प्राकृतिक खेती जैसे विकल्पों से मुकाबला करने की आवश्यकता है, जो कृषि नौकरशाही में शामिल कुछ लोगों को विज्ञान और प्रगति के विपरीत लग सकता है।
हालांकि यह प्रश्न बना हुआ है कि अगर स्थायी कृषि के भविष्य के बारे में सोचने के वैकल्पिक तरीकों में निवेश नहीं किया जाता, तो यह कैसे होगा। इसका एक संभावित तरीका यह है कि किसान देश में कृषि में सार्थक बदलाव के लिए इन वैकल्पिक कृषि भविष्य के साथ न्यूनतम कीमतों की अपनी मांगों का सामंजस्य स्थापित करें।

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