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पार्कर की सूरज से यह मुलाकात अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक अविश्वसनीय और असाधारण कीर्तिमान है
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने हाल ही में यह जानकारी दी है कि सूर्य के रहस्यों को सुलझाने के उद्देश्य से 2018 में लांच किए गए पार्कर सोलर प्रोब को सूरज को स्पर्श करने या छूने में कामयाबी मिली है. पार्कर सूर्य के इतना करीब पहुंचने वाला इकलौता मानव निर्मित मशीन है. यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में प्रोफेसर जस्टिन कास्पर के मुताबिक 'पहला और सबसे नाटकीय समय वह रहा, जब पार्कर सूरज के बाहरी वातावरण (कोरोना) में 5 घंटे तक नीचे रहा'. पार्कर की सूरज से यह मुलाकात अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक अविश्वसनीय और असाधारण कीर्तिमान है.
पृथ्वी को जीवन प्रदान करने वाला तारा
प्राचीन काल से ही इंसान सूर्य से परिचित रहा है. आदिमानव ने देखा होगा कि सूरज नियमित रूप हर रोज सुबह उगता है और शाम को अस्त हो जाता है. आदिमानवों ने यह भी अंदाजा लगा ही लिया होगा कि अगर सूरज नही उगा तो काला अंधकार छा जाएगा और हर चीज काली और ठंडी हो जाएगी और इससे मानव जीवन का भी अंत हो जाएगा. इसलिए प्राचीन काल के लोगों ने सूर्य को देवता का दर्जा देकर उसकी पूजा शुरू कर दी.
वैज्ञानिक प्रगति की बदौलत आज हम जानते हैं कि सूर्य सामान्य, लेकिन दैनिक जीवन से गहरा संबंध रखने वाला बेहद महत्वपूर्ण तारा है. हालांकि अभी भी जनसाधारण की निगाह में सूर्य आसमान में टंगा हुआ धधकता आग का एक विशाल गोला है, आस्था का प्रतीक है. बहरहाल, इस तारे से आने वाला प्रकाश ही हमारी पृथ्वी को जीवन प्रदान करता है. इसलिए सूर्य को अगर पृथ्वी का वास्तविक देवता कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
अगर किसी से यह प्रश्न पूछ लिया जाता है कि हमसे सबसे नजदीकी तारा कौन-सा है तो वह अटकलें लगाना शुरू कर देता हैं. वैसे तो आम लोगों की निगाह में अभी भी सूर्य महज देवता है, लेकिन जब सूर्य के रहस्यों से पर्दा उठा तो पता चला कि सूर्य हमारी आकाशगंगा मिल्की-वे में मौजूद तकरीबन 200 अरब तारों में से एक साधारण तारा है. हालांकि सूर्य हमे बाकी तारों की तुलना में कहीं ज्यादा चमकीला दिखाई देता है क्योंकि यह पृथ्वी से बाकी तारों की अपेक्षा ज्यादा नजदीक है. मगर इसकी नजदीकी ही इसे सबसे महत्वपूर्ण तारा बनाती है. वैज्ञानिकों ने सूर्य की इसी नजदीकी का भरपूर फायदा उठाया है.
सालों के अनुसंधान और अवलोकन के बाद वैज्ञानिकों ने सूर्य से जुड़ी कई अहम जानकारियाँ इकट्ठी कर ली हैं, जिनके जरिए सूर्य की संरचना को ठीक से समझा जा सकता है. सूर्य से संबंधित अनुसंधानों ने आज काफी प्रगति कर ली है, जिनकी मदद से वैज्ञानिक सूर्य तथा पृथ्वी के बीच के संबंधों को समझ पा रहे हैं. लेकिन हम सूर्य के उन हिस्सों को अभी भी सही ढंग से नहीं समझ पाए हैं जो सीधे तौर पर पृथ्वी पर से नहीं दिखाई देते. इस वजह से सूर्य से जुड़ी कई गुत्थियाँ आज भी अनसुलझी हैं.
सूर्य के रहस्यों पर से पर्दा उठाने के लिए वैज्ञानिक पिछले पांच-छह दशकों से प्रयासरत हैं. इसके लिए अनेक सैटेलाइट-स्पेसक्राफ्ट भी अंतरिक्ष में लांच किए गए हैं. लेकिन पार्कर सोलर प्रोब उन सबसे इस मायने में पूरी तरह से अलग है कि यह सूर्य के बेहद करीब जाकर उसका अध्ययन कर रहा है.
एक अभूतपूर्व अंतरिक्ष अभियान
नासा ने 12 अगस्त 2018 को केप कैनावेरल, फ्लोरिडा से डेल्टा-4 हैवी रॉकेट से सूर्य के वातावरण को गहराई से समझने के उद्देश्य से एक ऐसे मिशन को लांच किया जो पहले कभी नहीं हुआ था – 'पार्कर सोलर प्रोब मिशन'. सूर्य की तेजस्विता, अत्यधिक तापमान और उसके चारों ओर निर्मित चुंबकीय क्षेत्र वैज्ञानिकों की पहुंच को सीमित कर देता है, इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए पार्कर प्रोब को भेजा गया.
7 लाख किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पार्कर सौरमंडल से गुजरते हुए 15 करोड़ किलोमीटर की लंबी यात्रा करने के बाद सूर्य के सबसे बाहरी वातावरण (कोरोना) में इसी साल 28 अप्रैल को दाखिल हुआ था. अब तकरीबन साढ़े सात महीने बाद यान से प्राप्त डेटा का विश्लेषण कर नासा के वैज्ञानिकों ने अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन की हालिया बैठक में इस जानकारी को सार्वजनिक किया है.
अत्याधुनिक थर्मल इंजीनियरिंग का एक उत्कृष्ट नमूना
सूर्य के सबसे बाहरी वातावरण कोरोना का तापमान तकरीबन 11 लाख डिग्री सेल्सियस है और अंदर का तापमान तो करोड़ों डिग्री सेल्सियस में है! इतना भीषण तापमान कुछ ही सेकंडों में धरती पर पाए जाने वाले सभी चीजों को पिघला सकती है इसलिए इस भीषण गर्मी का मुक़ाबला करने के लिए पार्कर में 2.4 मीटर की दो कार्बन फाइबर शीटों के बीच साढ़े 11 सेंटीमीटर मोटी कार्बन मिश्रित फोम मैटीरियल से बने हीट शिल्ड्स का इस्तेमाल किया गया है और सूरज की रोशनी को रिफ्लेक्ट करने के लिए इन शिल्ड्स पर व्हाइट पेंट किया गया है.
सूर्य की भीषण गर्मी से पार्कर के उपकरणों को जलने से बचाना वैज्ञानिकों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती थी. इसलिए इसके उपकरणों को हाइ मेल्टिंग प्वांइंट या उच्च गलनांक वाले धातुओं जैसे – टंगस्टन, रीनियम नियोबियम, सैफायर, मॉलिबिडनम, क्रोमियम आदि के मिश्रण से बनाया गया है. पार्कर अपनी इन्हीं विशेषताओं की बदौलत अत्याधुनिक थर्मल इंजीनियरिंग का एक बेजोड़ नमूना बन गया है.
सबसे तेज रफ्तार से उड़ने वाला स्पेस प्रोब
पार्कर इतिहास का सबसे तेज रफ्तार से उड़ने वाला स्पेस प्रोब है. इसकी गति 4 लाख 30 हजार मील प्रति घंटा है. इसका मतलब यह है कि पार्कर महज एक सेकंड में कश्मीर से कन्याकुमारी तक की दूरी का 242 बार चक्कर लगाने में सक्षम है! पार्कर अपने सात साल के जीवनकाल में सूर्य के इर्द-गिर्द 24 बार यात्रा करेगा और शुक्र से 7 बार मुलाक़ात करेगा. शुक्र के साथ हुए पिछले मुलाक़ात और सूर्य की 8वीं यात्रा ने पार्कर को सूर्य के काफी करीब पहुंचा दिया था.
इसके बाद पार्कर द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों का जब विश्लेषण किया गया तब पता चला कि प्रोब सूर्य के बाहरी वातावरण (कोरोना) को छूने या स्पर्श करने में कामयाबी हासिल कर चुका है. तब उसकी दूरी सूर्य की सतह से महज 79 लाख किलोमीटर थी. नासा के साइंस मिशन बोर्ड के एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर थॉमस जुर्बुशेन के मुताबिक, 'तथ्य यह है कि पार्कर ने सूर्य को स्पर्श किया है, यह सोलर साइंस के लिए एक महत्वपूर्ण पल है और एक अविस्मरणीय उपलब्धि है.'
पार्कर ने पिछले महीने ही सूर्य के इर्द-गिर्द अपनी 10वीं यात्रा को पूरा किया है. पार्कर 2025 में सूर्य की सतह से बेहद करीब होगा. 2025 में सूर्य के सतह से इसकी दूरी तकरीबन 43 लाख किलोमीटर होगी. इसके बाद 612 किलोग्राम वजनी और 9 फुट 10 इंच लंबे इस स्पेस प्रोब का क्या होगा, इसके बारे में नासा ने अभी तक कोई भी जानकारी नहीं दी है.
क्या हासिल होगा इस मिशन से?
पार्कर का मकसद सूर्य और पृथ्वी के बीच के संबंधों को जानना-समझना है. यह विशेषकर सूर्य के उन पहलुओं पर अध्ययन कर रहा है, जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हम पृथ्वीवासियों के जीवन और समाज पर असर डालते हैं. साथ ही साथ सूर्य पर निरंतर नजर रखकर इसके कई रहस्यों को सुलझाने में वैज्ञानिकों की मदद कर रहा है. मोटे तौर पर इस मिशन का लक्ष्य सूर्य के बाहरी वातावरण (कोरोना) का भौतिक अध्ययन, सौर तूफानों, सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र और पृथ्वी के वातावरण पर इनसे पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना है.
सूर्य महज जीवन को सुचारु ढंग से चलाने के लिए प्रकाश और गर्मी ही नहीं देता है, बल्कि इससे हमें सौर पदार्थ का एक अदृश्य प्रवाह भी प्राप्त होता रहता है. इस अदृश्य प्रवाह में चार्जड पार्टिकल्स, हाइ एनर्जी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन और स्ट्रॉंग मैग्नेटिक फील्ड लाइंस शामिल हैं, जिन्हें 'सौर तूफान' या सोलर स्टोर्म के रूप में जाना जाता है.
हमारी पृथ्वी का ऊपरी वायुमंडल और इसका प्रोटेक्टिव मैग्नेटिक फील्ड सौर तूफानों को निरंतर झेलता रहता है, जिनका हमारी संचार प्रणालियों (जीपीएस, इंटरनेट आदि) और विद्युत सेवाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है, यहाँ तक इनकी वजह से ये प्रणालियां और सेवाएं ठप भी पड़ सकती हैं! पार्कर की मदद से वैज्ञानिक सौर तूफानों पर शोध करना चाहते हैं. इससे अन्तरिक्ष यात्रियों, उपग्रहों, संचार सेवाओं और विद्युत ग्रिडों की सुरक्षा के लिए एहतियात बरतने में मदद मिल सकती है. अस्तु!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
प्रदीप तकनीक विशेषज्ञ
उत्तर प्रदेश के एक सुदूर गांव खलीलपट्टी, जिला-बस्ती में 19 फरवरी 1997 में जन्मे प्रदीप एक साइन्स ब्लॉगर और विज्ञान लेखक हैं. वे विगत लगभग 7 वर्षों से विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं. इनके लगभग 100 लेख प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है.
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