सम्पादकीय

बर्मिंघम में परचम

Subhi
10 Aug 2022 5:40 AM GMT
बर्मिंघम में परचम
x
इस बार बर्मिंघम में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के खिलाड़ियों ने एक बार फिर अपना परचम लहरा कर साबित कर दिया कि दुनिया में वे किसी से कहीं कम नहीं हैं। बाईस स्वर्ण पदकों के साथ भारत चौथे स्थान पर रहा।

Written by जनसत्ता: इस बार बर्मिंघम में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के खिलाड़ियों ने एक बार फिर अपना परचम लहरा कर साबित कर दिया कि दुनिया में वे किसी से कहीं कम नहीं हैं। बाईस स्वर्ण पदकों के साथ भारत चौथे स्थान पर रहा। खेल के आखिरी दिन भी भारत ने स्वर्ण पदक जीत नया इतिहास रचा। बैडमिंटन, भारोत्तोलन, मुक्केबाजी और कुश्ती जैसे खेल में उपलब्धियां दमदार रहीं।

बैडमिंटन में तो कहने ही क्या! पीवी सिंधु और लक्ष्य सेन ने तो स्वर्ण पदक जीते ही, सात्विक साइराज और चिराग शेट्टी की जोड़ी ने भी स्वर्ण पदक कब्जा कर भारतीय बैडमिंटन को नए मुकाम पर पहुंचा दिया। पीवी सिंधु की यह उपलब्धि इसलिए भी यादगार बन गई कि उनका यह पदक देश का दो सौ वां स्वर्ण पदक बन गया। इसके अलावा सिंधु ने 2014 में चैंपियन रही मिशेल को हरा कर अपना पुराना हिसाब भी चुकता कर लिया। इसी तरह भारोत्तोलन में मीराबाई चानू और कुश्ती में साक्षी मलिक ने अपना झंडा गाड़ा। मुक्केबाजी में निकहत जरीन, नीतू गंघास और कुश्ती में विनेश फोगाट ने स्वर्ण पदक जीत बता दिया कि खेल की दुनिया में भारत की बेटियां कैसे नए कीर्तिमान बना सकती हैं!

देखने की बात यह है कि इस बार राष्ट्रमंडल खेलों में दिग्गज खिलाड़ियों ने तो देश का मान बढ़ाया ही, उन खिलाड़ियों ने भी पदक तालिका में देश को जगह दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिनके बारे में हम ज्यादा नहीं जानते। साथ ही उन खिलाड़ियों ने भी एक नया रास्ता दिखाया जिन्होंने अपनी शुरुआत तो किसी और खेल से की थी, पर बाद में खेल को बदल लिया। मिसाल के तौर पर मणिपुर की बिंदिया ने 2008 से 2012 तक ताइक्वांडो में हाथ आजमाया था, पर बाद में भारोत्तोलन को चुना और इस बार रजत पदक जीत नई उम्मीदें जगा दीं।

रांची की लवली चौबे पहले धाविका थीं, पर बाद में लान बाल्स में कदम रखा और तीन साथियों के साथ इस बार स्वर्ण जीत करिश्मा कर दिया। मिजोरम के उन्नीस साल के जेरेमी लालरिननुंगा ने राष्ट्रमंडल खेल में पहली बार में ही भारोत्तोलन में स्वर्ण पदक जीत सबको हैरत में डाल दिया। जबकि छह साल की उम्र से ही उन्होंने मुक्केबाजी का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया था। और पंजाब की हरजिंदर कौर को कैसे भूला जा सकता है जिन्होंने शुरुआत तो कबड्डी से की थी, लेकिन बाद में भारोत्तोलन को चुना और इस बार कांस्य जीता। इन सभी खिलाड़ियों ने इस बात की मिसाल कायम की है कि दूसरे किसी खेल का चुनाव करके भी उसमें भविष्य बनाया जा सकता है। इसके अलावा टेबल टेनिस में चालीस साल के अचंता शरत कमल ने सोलह साल बाद स्वर्ण जीत कर साबित कर दिया कि खेल में उम्र कहीं आड़े नहीं आती।

पदकों के लिहाज से देखें तो भारत इस बार बाईस स्वर्ण पदकों सहित इकसठ पदकों के साथ चौथे स्थान पर रहा है। जबकि पिछली बार गोल्डकोस्ट में आयोजित खेलों में छब्बीस स्वर्ण पदकों सहित कुल छियासठ पदक जीत तीसरे स्थान पर था। याद किया जाना चाहिए कि 2010 में दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने अड़तीस स्वर्ण पदक सहित एक सौ एक पदक जीते थे और दूसरे स्थान पर रहा था। खेलों में हमारी यह उपलब्धि संतोषजनक ही नहीं, बल्कि काबिले तारीफ है। पर साथ ही यह सवाल भी उठता ही है कि आखिर कमी कहां रह जाती है कि हम शीर्ष को नहीं छू पाते। इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है।


Next Story