सम्पादकीय

घातक होती पैराग्लाइडिंग

Rani Sahu
9 March 2022 6:48 PM GMT
घातक होती पैराग्लाइडिंग
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न बीड़ की हवाओं का कसूर था और न ही बिलिंग के जुनून में कोई खोट था

न बीड़ की हवाओं का कसूर था और न ही बिलिंग के जुनून में कोई खोट था, फिर भी पैराग्लाइडिंग के इतिहास में और दो लोगों की मौत का हिसाब दर्ज हो गया। कुछ तो चेतावनियां नजरअंदाज हुई होंगी या लापरवाही के आलम में इतनी गुस्ताखी हो गई कि दो पायलटों का हुनर एक पर्यटक के रोमांच को लील गया और वहीं खुदकुशी करने जैसे मंजर में स्वागतकक्ष के सूचना पट्ट से एक सहयोगी पायलट का नाम हट गया। यह दृश्य गहन चिंता का विषय है। विडंबना यह है कि जिस स्थान में 'नई राहें और नई मंजिलें' ढूंढी जा रही हैं, वहां इस तरह के हादसे विभागीय चौकसी और कायदे-कानूनों की लापरवाही को इंगित करते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से अगर हिमाचल का सबसे श्रेष्ठ पैराग्लाइडिंग स्थल ही अपाहिज है, तो फिर पूरे प्रदेश में नित नए स्थानों पर होने जा रही पैराग्लाइडिंग का भविष्य क्या होगा। आश्चर्य यह कि साहसिक खेलों की निगरानी के कोई स्थायी मानक व प्रबंधन दिखाई नहीं देता। सतर्कता के अभाव में ऐसे आयोजन मात्र चांदी कूटने के अभिप्राय बन रहे हैं, जबकि ये पर्यटन की छवि से सीधे जुड़ते हैं। उड़ान भरने से पूर्व की पड़ताल व उसकी स्वीकृति देने के लिहाज से विभागीय उपस्थिति जब तक मौके पर नहीं होगी, ऐसे हादसों की कहानियां प्रदेश का नाम ही बदनाम करेंगी।

अकसर देखा यह जाता है कि दुखद घटनाओं पर लीपापोती करने के उद्देश्य से कुछ दिन के लिए पैराग्लाइडिंग बंद कर दी जाती है और फिर बिना किसी सुधार के चालू हो जाती है। आखिर कितने पायलट और कितने सैलानियों की मौत के बाद कोई तूफान उठेगा, जो मौजूदा व्यवस्था को दुरुस्त करेगा। ऐसे में सवाल यह भी कि बिलिंग से प्रोफेशनल पैराग्लाइडिंग की जरूरतें ही पूरी नहीं हुइर्ं, तो इस स्थल को सामान्य या पर्यटकों के मनोरंजन के लिए क्यों उपयुक्त माना जा रहा है। जिस स्थान से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पैराग्लाइडिंग प्रतियोगिताओं की चुनौतियों से माने हुए पायलट भी थर-थर कांपते हों, वहां पर्यटक के जीवन की डोर पतंग की तरह नहीं उड़ सकती। अतः केवल उन्हीं पर्यटकों को यहां से उड़ान भरने की मंजूरी मिलनी चाहिए जो इससे पूर्व किसी साधारण साइट से पैराग्लाइडिंग कर चुके हैं। बेहतर होगा अगर बीड-बिलिंग के समीप स्टेशन वन के रूप में गलू की साइट को भी महत्त्व दिया जाए ताकि थोड़ा अनुभव लेने के बाद ही पर्यटक बिलिंग की हवाओं और हाईट से वाकिफ हों। इसी के साथ बिलिंग साइट को विस्तार देते हुए अधोसंरचना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया जाए ताकि अलग-अलग स्टेशन बनाकर बाकायदा उड़ने के लिए भी लेन सुनिश्चित की जा सकंे।
पर्यटकों की बढ़ती रुचि और रोमांच की मांग को देखते हुए यह तय करना होगा कि कहीं कमाने की हड़बड़ी में आकाश टूट न जाए। ऐसे में सरकारी हस्तक्षेप से एक पद्धति तथा बुकिंग का जरिया बने, जिसके ऊपर व्यवस्थागत नियंत्रण हो। बिलिंग की क्षमता का निर्धारण करते हुए उड़ानंे तय की जाएं और इसी के साथ मौसम का स्पष्ट विवरण तथा हवाओं के रुख को मांपने के लिए उपकरणों का होना लाजिमी है। विडंबना यह भी है कि किसी भी आपात सहायता या बचाव की स्थिति में ऐसे बंदोबस्त नहीं हैं कि प्रारंभिक तौर पर ही जान बचाई जा सके। इसके लिए बीड़ के अस्पताल को स्तरोन्नत करके ऐसी दुर्घटनाओं की स्थिति में चिकित्सा की जरूरतें पूरी होंगी। हिमाचल को अगर साहसिक खेलों का मक्का बनना है, तो इसकी बारीकियां और अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं से अवगत होना पड़ेगा। केवल एक ढलान और लैंडिंग साइट देख कर पैराग्लाइडिंग के जोखिम नजरअंदाज नहीं होते, बल्कि यह हवा से जूझने का ऐसा करतब है जहां पायलटों का पूर्ण प्रशिक्षण तथा पैराग्लाइडर का सुरक्षित होना अति आवश्यक है। फिलहाल ऐसा दिखाई नहीं दे रहा कि बीड़-बीलिंग के हादसे को कोई गंभीरता से ले रहा है। यह सही है कि ढांचागत सुविधाओं के लिए पर्यटन विभाग आगे आ रहा है, लेकिन साहसिक रोमांच की निगरानी के लिए अलग से जिम्मेदार विभाग या एजेंसी चाहिए।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल

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