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Pankaj Chaturvedi's blog: Trees alone will not reduce carbon emissions
भारत पहले ही संयुक्त राष्ट्र को आश्वस्त कर चुका है कि 2030 तक हमारा देश कार्बन उत्सर्जन की मौजूदा मात्रा को 33 से 35 फीसदी घटा देगा, लेकिन असल समस्या तो उन देशों के साथ है जो अपनी आर्थिक प्रगति की गति के मंथर होने के भय से पर्यावरण के साथ इतने बड़े खिलवाड़ को थामने को राजी नहीं हैं। अभी तक यह मान्यता रही है कि पेड़ कार्बन डाईऑक्साइड को सोख कर ऑक्सीजन में बदलते रहते हैं।
सो, जंगल बढ़ने से कार्बन का असर कम होगा। यह एक आंशिक तथ्य है। कार्बन डाईऑक्साइड में यह गुण होता है कि यह पेड़ों की वृद्धि में सहायक है। लेकिन यह तभी संभव होता है जब पेड़ों को नाइट्रोजन सहित सभी पोषक तत्व सही मात्रा में मिलते रहें। यह किसी से छिपा नहीं है कि खेतों में बेशुमार रसायनों के इस्तेमाल से बारिश का बहता पानी कई गैरजरूरी तत्वों को लेकर जंगलों में पेड़ों तक पहुंचता है और इससे वहां की जमीन में मौजूद नैसर्गिक तत्वों का गणित गड़बड़ा जाता है। तभी शहरी पेड़ या आबादी के पास के जंगल कार्बन नियंत्रण में बेअसर रहते हैं।
यह भी जान लेना जरूरी है कि जंगल या पेड़ वातावरण में कार्बन की मात्रा को संतुलित करने भर का काम करते हैं, वे न तो कार्बन को संचित करते हैं और न ही उसका निराकरण। दो दशक पहले कनाडा में यह सिद्ध हो चुका था कि वहां के जंगल उल्टे कार्बन उत्सर्जित कर रहे थे। कार्बन की बढ़ती मात्रा दुनिया में भूख, बाढ़, सूखे जैसी विपदाओं का न्यौता है।
भारत में मौजूद प्राकृतिक संसाधन व पारंपरिक ज्ञान इसका सबसे सटीक निदान है। छोटे तालाब व कुएं, पारंपरिक मिश्रित जंगल, खेती व परिवहन के पुराने साधन, कुटीर उद्योग का सशक्तिकरण कुछ ऐसे प्रयास हैं जो बगैर किसी मशीन या बड़ी तकनीक के ही कार्बन पर नियंत्रण कर सकते हैं।

Rani Sahu
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