सम्पादकीय

Pandit Shivkumar Sharma : पंडित शिवकुमार शर्मा ने जब संतूर से पहले रख दी थी तबला बजाने की अनोखी शर्त

Gulabi Jagat
10 May 2022 9:04 AM GMT
Pandit Shivkumar Sharma : पंडित शिवकुमार शर्मा ने जब संतूर से पहले रख दी थी तबला बजाने की अनोखी शर्त
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जिंदगी और मौत के बीच का खेल निराला है, एक सेकेंड में इंसान ‘हैं से था हो जाता है
शिवेन्द्र कुमार सिंह |
जिंदगी और मौत के बीच का खेल निराला है. एक सेकेंड में इंसान 'हैं से था हो जाता है. और इस एक कड़वे सच को स्वीकारने में काफी समय लगता है. अफसोस, आज के बाद पंडित शिवकुमार शर्मा (Pandit Shivkumar Sharma) के लिए 'था' शब्द इस्तेमाल करना होगा. ये अलग बात है कि उनका संगीत जीवन पर्यन्त है और आगे भी रहेगा. संगीत प्रेमियों के लिए मंगलवार का दिन भारी साबित हुआ. संतूर सम्राट पंडित शिवकुमार शर्मा नहीं रहे. भारतीय शास्त्रीय संगीत (Indian classical music) का एक चमकता सितारा अस्त हो गया. वो 84 साल के थे. पिछले कई दशक से पंडित शिवकुमार शर्मा और संतूर एक दूसरे के पर्याय बन चुके थे. उनके सफेद चमकते बाल, चेहरे की मुस्कान, संगीत की गहराई सब कुछ आध्यात्मिक था. उनका साज भी ऐसा था कि एक एक सुर दिलो दिमाग में कहीं गहरे जाता था और सुकून देता था.
पचास के दशक की बात है. साल था 1955, मुंबई में हरिदास सम्मेलन (Haridas Conference) का आयोजन था. शिवकुमार शर्मा तब सिर्फ 17 साल के थे. उन्हें भी उस कार्यक्रम में प्रस्तुति देनी थी. उन्हें श्रोताओं के लिए संतूर बजाना था. लेकिन कार्यक्रम के कुछ देर पहले ही शिव जी ने आयोजकों के सामने एक बड़ी शर्त रख दी. उन्होंने आयोजकों से कहा कि वो पहले तबला सोलो बजाएंगे और उसके बाद संतूर. आयोजकों के लिए मुसीबत ये थी कि उस कार्यक्रम में तबला बजाने के लिए उस्ताद अल्लारखा खां साहब, अनोखे लाल जी, सामता प्रसाद जी, पंडित किशन महाराज, हबीबुल्लाह खान साहब और अहमद जान थिरकवा जैसे बड़े-बड़े कलाकार पहले से ही मौजूद थे.
संतूर की तालीम पिता जी से मिली थी
बावजूद इसके आयोजकों को शिव जी की बात माननी पड़ी. तब जाकर उन्होंने मंच पर जगह ली. पहले आधे घंटे तबला बजाया. फिर तबले को एक तरफ रखा. संतूर उठाया और करीब एक घंटे तक संतूर बजाते रहे. ये एक ऐसा वाकया हो गया जो पंडित जी के जीवन में हमेशा उनके साथ रहा. वो अपनी हल्की मुस्कान के साथ बताते थे- "उस रोज कार्यक्रम में उस्ताद बड़े गुलाम अली खान साहब, उस्ताद अमीर खान साहब, उस्ताद मुश्ताक हुसैन खान, रसूलन बाई जी, केसरबाई जी, पंडित ओंकार नाथ ठाकुर, पंडित नारायण राव व्यास, पंडित विनायक राव पटवर्धन, सिद्धेश्वरी देवी जी, मोगूबाई कुर्देकर जैसे दिग्गज कलाकार शामिल थे. इतने नामी गिरामी कलाकारों के सामने जब एक के बाद एक तबला और संतूर बजा तो सुनने वालों ने वंस मोर वंस मोर की रट लगा दी थी."
कहानी यहीं खत्म नहीं होती. आखिर में आयोजक बृजनारायण जी को स्टेज पर आना पड़ा. उनकी मुसीबत ये थी कि एक तरफ देश के तमाम बड़े बड़े दिग्गज कलाकार थे, दूसरी तरफ सिर्फ 17 साल का एक युवा लड़का. बृजनारायण जी ने तरकीब लगाई. उन्होंने कहा कि आज इस कलाकार को छोड़ दीजिए. बाकि लोगों को भी सुनना है. उस कार्यक्रम को याद करके पंडित शिवकुमार शर्मा कहते थे, मैं जब जब उस कार्यक्रम को याद करता हूं तो मुझे हंसी आती है. वो मेरी अपरिपक्वता थी.
इस जिद के पीछे की कहानी भी दिलचस्प है. पूरी दुनिया में संतूर वादक के तौर पर जाने गए पंडित शिवकुमार शर्मा जब सिर्फ पांच साल के थे तब से गायन और तबले की उनकी शिक्षा उनके पिताजी के पास ही शुरू हुई थी. संगीत तालीम की शुरूआत गायन से हुई थी, लेकिन उनका मन धीरे-धीरे तबला बजाने में ज्यादा लगने लगा था. अभी 10 साल की भी उम्र नहीं थी जब उन्होंने रेडियो में बच्चों के एक कार्यक्रम में तबला बजाया. इसके बाद जब वो 11-12 साल के थे तब उनके पिता जी ने उनसे कहाकि उन्हें संतूर सीखना चाहिए. दरअसल, संतूर की संगीत यात्रा में उनके पिता पंडित उमादत्त शर्मा का बड़ा योगदान है.
उसी वाकये ने फिल्मों में दिलाया काम
पंडित शिवकुमार शर्मा को शास्त्रीय संतूर वादक के अलावा एक कमाल के फिल्म संगीतकार के तौर पर भी जाना जाता है. बांसुरी के महान कलाकार पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के साथ उनकी जोड़ी शिव-हरि कहलाई और इस जोड़ी ने यश चोपड़ा के लिए एक से बढ़कर एक हिट फिल्मों का संगीत दिया. सिलसिला, चांदनी, लम्हें, डर जैसी लोकप्रिय फिल्मों में शिव-हरि ने संगीत दिया. ये बात कम ही लोग जानते हैं कि फिल्मी दुनिया में कदम रखने की शुरूआत भी उसी कार्यक्रम से हुई थी, जिसका किस्सा अभी आपने पढ़ा.
हुआ यूं कि उस रोज उस कार्यक्रम में महान फिल्मकार वी. शांताराम की बेटी मदुरा जी भी थीं. उन्होंने भी 17 साल के युवा कलाकार को पहले तबला और फिर संतूर बजाते सुना. उन्हें संतूर बहुत पसंद आया. उनके लिए ये नया अनुभव था. पंडित जी बताते थे- उन्होंने कहीं से फोन करके वी. शांताराम को बताया कि संतूर एक अनोखा साज है जो उन्होंने सुना है और फिल्म झनक झनक पायल बाजे में वी. शांताराम को उस इंस्ट्रूमेंट को इस्तेमाल करना चाहिए. उन्होंने फिर मेरे सामने ये प्रस्ताव रखा. मैंने उस वक्त अपने इम्तिहान का हवाला देकर प्रस्ताव को टाल दिया." पंडित शिवकुमार शर्मा उसे भी अपनी अपरिपक्वता ही मानते थे. लेकिन किस्मत का खेल चल रहा था. किस्मत ने शिव जी को फिर मौका दिया. इम्तिहान खत्म हुआ ही था कि एक रोज उनके पास राजकमल स्टूडियो से टेलीग्राम आया-कम टू बंबई. जाहिर है ये तार महान फिल्मकार वी शांताराम की तरफ से भेजा गया था. इस तरह संतूर फिल्म म्यूजिक में पहली बार इंट्रोड्यूस हुआ. चूंकि संतूर बिल्कुल नया साज था.
फिल्म के संगीत को लेकर वी शांताराम की संजीदगी भी समझनी होगी. फिल्म में महान कथक डांसर गोपीकृष्ण हीरो थे. सामता प्रसाद ने उस फिल्म में तबला बजाया था. उस फिल्म का टाइटिल सॉन्ग झनक झनक पायल बाजे उस्ताद अमीर खां साहब का गाया हुआ था. ऐसी फिल्म में इतने बड़े कलाकारों के बीच में पंडित शिवकुमार शर्मा ने संतूर बजाया. फिल्म झनक झनक पायल बाजे कमाल की हिट हुई. उसे तमाम पुरस्कारों से नवाजा गया. जिसमें राष्ट्रीय पुरस्कार भी शामिल है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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