सम्पादकीय

पंडित राजन मिश्र जी की पुण्यतिथि: बनारस घराने की शान पद्मभूषण पंडित राजन मिश्र, अमर रहेगी उनकी प्रतिभा

Gulabi Jagat
24 April 2022 2:24 PM GMT
पंडित राजन मिश्र जी की पुण्यतिथि: बनारस घराने की शान पद्मभूषण पंडित राजन मिश्र, अमर रहेगी उनकी प्रतिभा
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पंडित राजन मिश्र जी की पुण्यतिथि
मीनाक्षी प्रसाद।

"चाहे हो अनंत से फासले
या हो दूरियाँ जिस्मों की ।
तुम नाम वहां जब लेते हो
दिल जैसे ये सुन लेता है।।"
ये उद्गार हैं पद्मभूषण पंडित साजन मिश्रा की अपने जीवन के राम, ज्येष्ठ भ्राता और गुरु, पद्मभूषण स्व. पंडित राजन मिश्रा जी के लिए। रिश्ते मानवीय भावनाओं का प्रतीक हैं। खून के रिश्ते भी सम्मान और भावनाओं से जब सींचे जाते हैं तब कहीं जाकर यह रिश्ते अटूट बनते हैं। जब मंच पर आसीन होकर दोनों भाई गायन शुरू करते थे तो मानो सारा वातावरण चंदन की खुशबु से भर जाता, चाहे वो ख्याल हो, ठुमरी हो, टप्पा हो या फिर भजन।
उनके गायन की निपुणता पर बात करना तो मुझ जैसे कलाकार के लिए मूर्खता ही मानी जाएगी, पर एक मनोविज्ञान की छात्रा की हैसियत से मैं ये कहती हूँ कि जब पंडित राजन मिश्रा जी अपना अंश समाप्त करते और उसके बाद पंडित साजन मिश्राजी अपना अंश गाना शुरू करते तो राजन मिश्रा जी के चेहरे की प्रसन्नता और अपने अनुज के लिए गहरा प्रेम देखते ही बनता था।
किसी भी संगीत की गोष्ठी की सफलता सिर्फ गायक के उत्तम गायन से नहीं होती, गायक के संगतकारों से तालमेल, यदि युग्म गायन है तो दोनों गायकों के परस्पर तालमेल और श्रोताओं से जुड़ पाने की क्षमता, उनके परिधान, बातचीत की कौशल आदि बातों पर भी निर्भर करती है। इन दोनों के कार्यक्रम में ये सारे गुण मानों एक स्वाभाविक रूप से बहती हुई नदी की तरह मंच से सभागार में बैठे श्रोताओं की तरह प्रवाहित होते थे।
एक ही आत्मा के दो शरीर
एक बार मैं पंडित राजन मिश्रा जी का साक्षात्कार कर रही थी, तो मैंने पूछा कि इस दुनिया की छोटी- से- छोटी इकाई भी अपना पृथक अस्तित्व रखना चाहती है, क्या कभी आप लोगों में व्यक्तिगत वैचारिक विभिन्नता की वजह से तालमेल बिठाने में परेशानी नहीं होती है?
तब मानो एकदम से बोल पड़े कि हमारा संबंध सिर्फ एक परिवार में जन्म लेने (खून का रिश्ता) या एक परिवेश में पले - बढ़े होने या जीवन में आगे बढ़ने के समान अवसर पाने के आधार पर नहीं टिका है, ये कई जन्मों का संबंध है और इस संबंध में एक ही आत्मा दो शरीर में निवास कर रही है जिसकी डोर प्रभु के हाथों में हैं। अर्थात् आपके लाइफ वायर को ऊर्जा पाने के लिए किसी ना किसी स्रोत (सॉकेट) से तो जुड़ना ही होगा। फिर थोड़ी देर शांत होकर कहते हैं>
मैं शारीरिक रूप से तुमलोगों के बीच रहूं या नहीं, पर अपने भाई के जरिए हमेशा गाता रहूंगा और उस वक्त इस रिश्ते से पूर्ण न्याय होगा। उन्होंने फिर कहा की आज कल लोग इतने भौतिकवादी हो गए हैं की दिल से कहीं ज्यादा जिंदगी में दिमाग का प्रयोग करते हैं। पर संगीत तो आपके मन के परतों को खोलती है, और आपके दबी भावनाओं को उजागर करती है, और उन्हें यथोचित उपचार भी प्रदान करती है। इसके जरिए हम पूरी दुनिया में शांति स्थापित कर सकते हैं।
जीवन पर चर्चा
सन् 1951 ई. में हनुमान जयंती के दिन बनारस घराने के मशहूर सारंगी वादक पंडित हनुमान प्रसाद मिश्र और उनकी पत्नी विदुषी गगन किशोरी जी के आंगन में एक खूबसूरत यशस्वी बालक ने जन्म लिया जो आगे चलकर भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया में पद्मभूषण पंडित राजन मिश्रा के नाम से मशहूर हुए।
हिन्दुस्तान के मशहूर सारंगी वादक पंडित गोपाल मिश्र जी राजन मिश्रा जी के सगे चाचा थे। इस वर्ष उनकी 101वीं जयंती मनाई जा रही है। हम उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम करते हैं। इनसे बड़ी एक बहन भी हैं जिनका नाम इंदुमति देवी है, जो मेरी गुरु विदुषी सविता देवी जी की बचपन की सहेली थीं।
पंडित राजन मिश्रा जी के जन्म के ठीक पांच वर्ष बाद उनके अनुज भाई पद्मभूषण पंडित साजन मिश्रा जी का जन्म हुआ। इन दोनों भाइयों को पिता पंडित हनुमान प्रसाद मिश्र और चाचा गोपाल प्रसाद मिश्र से तो संगीत की तालीम मिली ही, ये बनारस के हस्ताक्षर गायक ज्ञानाचार्य पंडित बड़े रामदास जी के भी गंडाबंध शागिर्द थे।
दोनो भाइयों ने अपने संगीत की प्रथम मंचीय प्रस्तुति 1967 में बनारस के प्रसिद्ध संकट मोचन मंदिर से आरम्भ किया और इसी कार्यक्रम से ये निर्धारित हो गया कि ये दोनों भाई हमेशा साथ-साथ मंचीय प्रस्तुति देंगे। ये गौर करने की बात है कि इनके दोनों भाइयों के जीवन में हनुमान जी की बड़ी कृपा रही है, पिता का नाम हनुमान प्रसाद मिश्रा, जन्म हनुमान जयंती के दिन और प्रथम प्रस्तुति भी संकट मोचन मंदिर यानी हनुमान जी के मंदिर से आरंभ हुई।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि "मेरे दो अनमोल रतन् एक हैं राम तो एक लखन।" बड़े भाग्यशाली थे वे माता-पिता जिन्हें ऐसे मेधावी और उच्च संस्कार के संतान की प्राप्ति हुई।
नाम के अर्थ को किया सार्थक
"राजन" सिर्फ एक नाम ही नहीं अपितु एक भाव है - राजसी होने का, निर्भय होने का और बुद्धिमत्ता का और वहीं "साजन" शब्द में समाहित भाव है - लोकप्रियता का, महानता का और सम्मानजनक होने का। दोनों नाम जब मिल जाते हैं तो किसी भी क्षेत्र में मनुष्य सम्मानजनक रूप से राज्य करता है जैसे संगीत के क्षेत्र में इन दोनों भाइयों ने किया।
कहते हैं हर सफल व्यक्ति के पीछे उसके परिवार का बहुत बड़ा हाथ होता है। आजकल की व्यस्त जिंदगी में लोगों के पास समय कम है इसलिए रिश्तों में गर्मजोशी भी कम हो रही है। हर व्यक्ति के स्वभाव में भिन्नता होती है जो उन्हें दूसरे से अलग पहचान दिलाती है, ऐसे में अच्छा पारिवारिक माहौल बनाए रखने के लिए हमेशा सभी सदस्यों के विशेष गुणों की प्रशंसा होनी चाहिए।
इसी सिद्धान्त पर आधारित है "मिश्र बन्धु" परिवार जहां आज भी सभी सदस्य एक रसोईघर में पके खाने का स्वाद लेते हैं और एक छत के नीचे रहते हैं। जिन घरों में ऐसा माहौल होता है वहां कई सारी बीमारियां यूं ही दूर हो जाती है। कैलिफोर्निया के एक शोध में ऐसा पाया भी गया है।
पंडित राजन मिश्रा जी अपने मजाकिया स्वभाव के लिए काफी मशहूर थे और वे कहते थे कि आज जब अंदर से खुश होते हैं तो आपका स्वभाव स्वतः खुशनुमा हो जाता है। उनकी इस उक्ति पर गौर किया जाए तो उस परिवार की महिलाओं की सूझबूझ, त्याग, ममता और परिवार को एकजुट करके रखने की प्रतिबद्धता सारे गुण अपने आप परिलक्षित हो जाते हैं।
पद्मभूषण से सम्मानित
सन् 2018 में इन दोनों भाइयों ने "भैरव से भैरवी तक" शीर्षक के तहत पूरे विश्व का भ्रमण किया "मिश्र बन्धु" को 2007 में पद्मभूषण के अलावा, 1998 में भारत सरकार द्वारा संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, 1994-1995 का गंधर्व नेशनल अवार्ड, तानसेन संगीत सम्मान 2012 से भी सम्मानित किया गया। मेरी लेखनी इस बात को लिखने को कतई राजी नहीं है कि गत् 25 अप्रैल 2021 को करोना महामारी काल में देश की इस महान विभूति ने अंतिम सांस लेकर हम सबको बहुत पीछे छोड़ दिया। आज उनकी प्रथम पुण्य तिथि पर हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए शत्-शत् नमन करते हैं।
इनके परिवार में इनके भाई साजन मिश्रा जी के परिवार के अलावा इनकी पत्नी, पुत्री अंजु, पुत्र रितेश और रजनीश मिश्रा (ये दोनों भाई भी अपने पिता और चाचा की तरह युग्म में गाते हैं) और भतीजे स्वरांश मिश्रा (पंडित साजन मिश्र जी के पुत्र) सब इनके द्वारा लगाए वटवृक्ष की शीतल छाया में संगीत की सेवा कर रहे हैं और देहरादून में "विराम" जैसे प्रतिष्ठित गुरुकुल को भी सफलतापूर्वक चला रहे हैं। पंडित राजन मिश्रा जी जैसी महान विभूति को शत्-शत् नमन। ऐसी विभूतियां किसी भी युग में एकाध ही पैदा होती हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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