सम्पादकीय

पंडित नेहरू ने ही रखी थी कृषि में सफलता की बुनियाद

Rani Sahu
27 May 2022 6:18 PM GMT
पंडित नेहरू ने ही रखी थी कृषि में सफलता की बुनियाद
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आज जब दुनिया के कई देश खाद्यान्न मामलों के संकट के चलते भारी तनाव और दुविधा में हैं

अरविंद कुमार सिंह

आज जब दुनिया के कई देश खाद्यान्न मामलों के संकट के चलते भारी तनाव और दुविधा में हैं तो भारत का अन्न भंडार भरा हुआ है. कोरोना संकट में हमने दूसरों को अनाज दिया है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से वार्ता में कहा था कि अगर विश्व व्यापार संगठन अनुमति दे तो भारत पूरी दुनिया को खाद्यान्न उपलब्ध करा सकता है. अप्रैल 2020 से करोड़ों लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है. सितंबर 2022 तक कुल 3.40 लाख करोड़ रुपए इस पर व्यय होगा.
भारत में कृषि की सफलता की बुनियाद इन्होंने रखी
आजादी मिली तो भारत अन्न मामलों में भयानक संकट में था. आज यह धान, गेहूं और दलहनों का प्रमुख उत्पादक देश है. फलों और सब्जियों के मामले में हम चोटी पर हैं. 2020-21 में हमारा खाद्यान्न उत्पादन 30.54 करोड़ टन था जबकि बागवानी उत्पादन 33.46 करोड़ टन.
आज पूरी दुनिया भारतीय कृषि की सफलता को देख चकित है. लेकिन इस सफलता की बुनियाद जिस व्यक्ति ने रखी थी वे थे हमारे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू. 27 मई, 1964 को उनका देहावसान हो गया लेकिन वे प्रासंगिक बने हुए हैं.
आजादी से लेकर अब तक की सफलता
1947 में जब आजादी मिली तो हमारी आबादी 35-36 करोड़ थी. तब हम 60 लाख टन गेहूं पैदा करते थे, जिसका दोगुने से ज्यादा गेहूं आज अकेले पंजाब अन्न भंडार को दे रहा है. 1943 में बंगाल के अकाल में 30 लाख से ज्यादा मौतें हुई थीं. तब 75 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर थे लेकिन हमारी उत्पादकता बहुत कम थी. बहुत सी खाद्य सामग्री विदेशों से मंगा कर पेट भरना पड़ता था.
सब कुछ प्रतीक्षा कर सकता है लेकिन कृषि नहीं- प्रधानमंत्री पंडित नेहरू
तभी जमीनी हकीकत को देखते हुए हमारे पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने कहा था कि सब कुछ प्रतीक्षा कर सकता है लेकिन कृषि नहीं. सबसे पहले हमें पर्याप्त मात्रा में आहार अवश्य चाहिए, उसके बाद दूसरी जरूरतें हैं. 1951 में बिहार और मद्रास जैसे प्रांतों में भयावह हालत थी और अमेरिका, चीन और रूस से मदद की गुहार लगानी पड़ी.
1947 से 1964 के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमंत्री काल में खेती-बाड़ी के विकास के लिए सभी संभव कदम उठाए गए. सरकार पहले जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधारों की दिशा में आगे बढ़ी.
जमींदारों और राजे-रजवाड़ों की मजबूत लॉबी बनती था कृषि सफलता का बाधा
तब जमींदारों और राजे-रजवाड़ों की मजबूत लॉबी के कारण इस राह में तमाम बाधाएं थीं लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ जमींदारी उन्मूलन हुआ और फिर भूमि सुधारों और चकबंदी ने खेती की तस्वीर बदलने में अहम भूमिका निभाई. आचार्य विनोबा भावे के भूदान यज्ञ को भी पंडित नेहरू ने समर्थन दिया.
पहली पंचवर्षीय योजना में खेती-बाड़ी को काफी रकम मिली और भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी, हीराकुंड, नागार्जुन सागर और गांधीसागर जैसी विशाल परियोजनाओं की आधारशिला रखी गई जिसने खेती-बाड़ी के कायाकल्प में ऐतिहासिक भूमिका निभाई. कई खाद कारखाने खुले और बीज विकास पर जोर दिया गया. 17 नवंबर 1960 को देश का पहला कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर में खुला.
नेहरू के प्रधानमंत्री काल में सारी प्रमुख योजनाएं संसद और राज्य सरकारों के साथ विचार-मंथन के बाद तैयार होती थीं. संसद में खेती-बाड़ी की दुर्दशा पर काफी चिंतन होता था.
पंडित नेहरू के निधन के बाद बाहर से मंगाया गया था अन्न
1950-51 में हमारी कृषि उपज 5.30 करोड़ टन थी जो 1960-61 तक 7.93 करोड़ टन हो सकी. 1964 में पंडित नेहरू के निधन के साल तमाम प्रयासों के बावजूद 266.25 करोड़ रुपया खर्च कर 62.70 लाख टन अन्न बाहर से मंगाया गया था.
1965 में लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री काल में भी विदेश से अन्न आना जारी रहा. इसी कारण शास्त्रीजी ने लाल किले से कहा था कि अनाज पैदा करना उतना ही जरूरी है जितना रक्षा का प्रबंध.
इंदिरा गांधी के समय क्या बना नया रिकॉर्ड
इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में अनाज उत्पादन 1967-68 में 28 प्रतिशत वृद्धि के साथ 9.5 करोड़ टन तक पहुंच गया और 1970-71 में 10.80 करोड़ टन अन्न उत्पादन के साथ एक नया रिकॉर्ड बना तथा विदेशों से अन्न मंगाना बंद हुआ. हरित क्रांति के चलते इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में हमारा अनाज उत्पादन 8 करोड़ टन से बढ़ कर 15 करोड़ टन तक पहुंचा.

सोर्स- lokmatnews

Rani Sahu

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