सम्पादकीय

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती विशेष: एकात्म मानववाद के प्रणेता जिसने जनसंघ को दिशा दी..!

Rani Sahu
25 Sep 2021 7:42 AM GMT
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती विशेष: एकात्म मानववाद के प्रणेता जिसने जनसंघ को दिशा दी..!
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हमारी हर जन कल्याणकारी योजना का लक्ष्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना है

देवानंद कुमार। हमारी हर जन कल्याणकारी योजना का लक्ष्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना है। "समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के लिए योजनाएं बननी चाहिए" बीते कुछ सालों में आपने यह शब्द कई बार अखबारों में तथा टीवी और भाषणों में सुना होगा पर कभी सोचा है कि आखिर कौन वह व्यक्ति है? जो समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने के विचार को सामने लाया जिसे बीजेपी ने अपना मिशन बना लिया वह व्यक्ति है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय और जीवन
आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्मदिन है, जो पूरे देश में एकात्म मानववाद की विचारधारा से प्रसिद्ध हुए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को जयपुर के निकट धानकिया गांव में उनके नाना के घर पर हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था, जो उत्तर प्रदेश के नगला चंद्रभान फरह, मथुरा के निवासी थे। उनकी माता का नाम रामप्यारी था। 1937 में जब वे कानपुर से बी.ए. कर थे, अपने सहपाठी बालूजी महाशब्दे की प्रेरणा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आए। उन्हें संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का सान्निध्य भी कानपुर में ही मिला।
उपाध्याय जी ने पढ़ाई पूरी होने के बाद संघ का दो वर्षों का प्रशिक्षण पूर्ण किया और संघ के जीवनव्रती प्रचारक हो गए। वे आजीवन संघ के प्रचारक रहे। संघ के माध्यम से ही उपाध्याय जी राजनीति में आए। 21 अक्टूबर 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में 'भारतीय जनसंघ' की स्थापना हुई।
1952 में इसका भारतीय जनसंघ का प्रथम अधिवेशन कानपुर में हुआ। दीनदयाल उपाध्याय इस दल के महामंत्री बने। इस प्रथम अधिवेशन में पारित 15 प्रस्तावों में से सात प्रस्ताव उन्होंने प्रस्तुत किए थे। डॉ. मुखर्जी ने उनकी कार्यकुशलता और क्षमता से प्रभावित होकर एकबार कहा था-
यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाएं, तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूं।
राजनीति के अलावा उनकी साहित्य में भी उनकी गहरी रुचि थी। वर्ष 1940 में जब मुस्लिम लीग द्वारा 'पाकिस्तान प्रस्ताव' लाहौर में पारित किया गया तथा द्वितीय विश्वयुद्ध जो 1 सितंबर 1939 को जर्मनी के द्वारा पोलैंड पर आक्रमण से शुरू हुआ था इस युद्ध में में ब्रिटेन की हालत अत्यंत कमजोर होने पर ब्रिटेन ने भारतीयों का सहयोग पाने के लिए 8 अगस्त 1940 को वायसराय लिनलिथगो ने 'अगस्त प्रस्ताव' की घोषणा की जिसमें भारत के लिए डोमिनियन स्टेटस मुख्य लक्ष्य था। उस समय 1940 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने लखनऊ से 'राष्ट्रधर्म' नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू कर पूरे देश में राष्ट्र के कर्तव्य, राष्ट्र के लक्ष्यों के प्रति लोगों को जागरूक किया।
उन्होंने साप्ताहिक पांचजन्य और दैनिक स्वदेश जैसी पत्रिकाओं की भी शुरुआत की जो भारतीय संस्कृति और सभ्यता की न सिर्फ परिचारक बल्कि ध्वजवाहक भी हैं, तो वही राष्ट्र चिंतन नामक पुस्तक उनके भाषणों का संग्रह है। दो योजनाएं,राजनीतिक डायरी तथा एकात्म मानववाद जिसे अंग्रेजी में इंटीग्रल ह्यूमैनिज्म कहा गया उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकें है।
दीनदयाल उपाध्याय को भारतीय जनसंघ का आर्थिक नीति का रचनाकार माना जाता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का भारतीय संस्कृति में बहुत ज्यादा विश्वास था। वे मानते थे कि भारत में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की संस्कृति एक ही हैं।
उनके शब्दों में कहे तो-
भारत में रहने वाला और इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा।
1963 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर लोकसभा के उपचुनाव में वे खड़े हुए परंतु उसमें वे जीत नहीं पाए। दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि भारत के लिए एक स्वदेशी आर्थिक मॉडल विकसित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है जिसमें व्यक्ति केंद्र में हो। उनके इस दृष्टिकोण ने इस अवधारणा को समाजवाद और पूंजीवाद से अलग बना दिया।
एकात्म मानववाद को 1965 में जनसंघ के आधिकारिक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में अपनाया गया था। यहां पर एक बात गौर करने वाली है कि दीनदयाल उपाध्याय जी के बताए गए रास्ते तथा सिद्धांतों की चर्चा साम्यवाद और समाजवाद की तुलना में बेहद कम हुई है। जबकि उनके हर सिद्धांत में समाज के सबसे निचले, दबे कुचले व्यक्ति केंद्र में पाया जाता है। इस कारण यह आवश्यक है कि उनके विचारों को और सहज तथा सरल भाषा में लोगों तक पहुंचाया जाए ताकि लोग न सिर्फ दीनदयाल जी को जाने बल्कि उनके विचारों और सिद्धांतों को भी समझे वे देश के नवनिर्माण के बजाय देश के पुनर्निर्माण पर विशेष जोर देते थे।
भारतीय चिंतन परंपरा और पंडित दीनदयाल उपाध्याय
भारतीय चिंतन परंपरा में दीनदयाल उपाध्याय जी का विशेष स्थान है क्योंकि उन्होंने पाश्चात्य दर्शन के जगह भारतीय जीवन पद्धति में समाहित एकात्म मानववाद को आधुनिक ढंग से प्रस्तुत किया कहा कि पश्चिम में कहा जाता है कि ऑनेस्टी इस द बेस्ट पॉलिसी परंतु भारतीय जीवन दर्शन यह कहता है-
ऑनेस्टी इज नॉट ए पॉलिसी बट प्रिंसिपल अर्थात् हमारे यहां सत्य निष्ठा नीति नहीं बल्कि सिद्धांत है। उन्होंने राज्य का आधार धर्म माना है। उनका कहना था कि सिर्फ दंड के सहारे राज्य को नहीं चलाया जा सकता। राज्य को चलाने के लिए धर्म की भी आवश्यकता पड़ती है और धर्म के साथ ही उन्होंने अर्थ पर भी जोर दिया था क्योंकि बगैर अर्थ के धर्म टिक नहीं पाता है।
उन्होंने भारत की आर्थिक नीति पर भी किताबें लिखी है जो इस प्रकार हैं-
भारतीय अर्थ नीति: विकास की एक दिशा
भारतीय अर्थ नीति का अवमूल्यन
श्रेष्ठ नेता वही होता है जो उन सिद्धांतों का पालन खुद करें जो वह दूसरों के लिए कहता है पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी सादा जीवन व्यतीत करते थे और अपने कार्यकर्ताओं को भी यही कहा करते थे कि दो धोती, दो कुरते और दो वक्त का भोजन ही उनकी संपूर्ण आवश्यकता है।
वर्तमान समय में केंद्र सरकार ने उनके सम्मान में मुगलसराय जंक्शन का नाम दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन कर दिया गया।16 फरवरी 2020 को वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय मेमोरियल सेंटर खोला और देश में उनकी सबसे ऊंची प्रतिमा उपाध्याय की 63 फुट की प्रतिमा का अनावरण किया।
आज जब हमारे देश में किसी योजना को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने और उस अंतिम व्यक्ति तक लक्षित करके योजनाएं बनाई जाती है तो मानो ऐसा लगता है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का सपना पूरा हो रहा है। आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जयंती पर हम सभी को उनके विचारों से प्रेरणा लेना चाहिए।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
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